मंगलवार, 28 फ़रवरी 2017

फिल्म "लिपिस्टिक अंडर माई बूर्का " पर सेंसर और फतवे के खिलाफ प्रतिक्रिया !


एक नयी फिल्म आयी है - लिपिस्टिक अंडर माई बुर्का !फिल्म महिला केंद्रित बतायी जा रही है और विदेशी फिल्म समारोहों में सराही भी जा रही है ।
पहले तो पहलाज निहलानी के संस्कारी सेंसर बोर्ड ने फिल्म सर्टिफाई ही नहीं की । दूसरे - कुछ मूल्लों ने फिल्म के खिलाफ फतवा दे दिया । यह उदाहरण है इस बात का कि कथित हिंदूत्ववादी हों या कट्टर मुस्लिम - कई मामलों में एक जैसे हैं - मसलन महिला विरोधी रुख अपनाने में ।
मजे की बात यह है कि जब से मुल्लों ने फतवा दिया है , भाजपाई/संघी शोर मचा रहे हैं कि अभिव्यक्ति के स्वतंत्रता के पैरोकर कहाँ हैं । जब तक सिर्फ पहलाज निहलानी फिल्म को रोक रहे थे , तब तक इन्हें फिल्म की परवाह नहीं थी । मूल्लों का फतवा आते ही इन्हें ध्रुवीकरण करने का मौका मिल गया है ।
इन्हें फिल्म से कोई मतलब नहीं है । वे इसपर भी ध्यान नहीं देंगे कि फतवे का कोई मतलब तब है जब फिल्म रिलीज होगी । फिल्म को सेंसर बोर्ड रिलीज ही नहीं होने देगी तो फिर क्या मतलब है फतवे का ?यहाँ गौरतलब है कि पहलाज निहलानी कोई वामपंथी /काँग्रेसी नहीं भाजपा समर्थित हैं । वे इस पर भी ध्यान नहीं देंगे कि फिल्म के समर्थन में कई आर्टिकल /पोस्ट/ब्लॉग लिखे जा चुके हैं । टाइम्स ऑफ इंडिया का आज का संपादकीय भी इसी पर है । लेकिन वे - कोई क्यों नहीं मूल्लों का विरोध करता है ।लोग मुस्लिम तुष्टिकरण करते हैं । सिर्फ हिंदूओं की भावना आहत करते हैं - आदि आरोप और प्रलाप करते रहेंगे । वे एक ऐसे बंद कमरे में रहते हैं जहाँ वे खुद को देखते हैं और सिर्फ अपनी आवाज सुनते हैं ।
मेरा स्पष्ट मानना है कि फिल्म का विषय कुछ हो , विरोध का मुद्दा कुछ भी हो - सेक्स , हिंसा, भाषा आदि , किसी भी फिल्म पर बैन नहीं लगना चाहिए । सेंसर बोर्ड को बैन करने का अधिकार नहीं होना चाहिए । विरोधियों को शांतिपूर्ण विरोध करने , फिल्म के खिलाफ लिखने , न देखने की अपील जारी करने आदि का हक है । लेकिन विरोध के नाम पर सिनेमाघरों में तोड़फोड़ , सिनेमा देखने जाने वालों को धमकाना , फिल्म निर्माता और अदाकारों को धमकाना आदि किसी भी किमत पर स्वीकार नहीं की जानी चाहिए । और ऐसे त्त्वों से सकख्ती से निपटा जाना चाहिए । चाहे वो कोई हों - शिवसेना हो , करणी सेना हो , मूल्ले हों , बजरंग दल हों ।
फिल्म किसी भी अन्य कला माध्यम की तरह अबाध सर्जनात्मक स्वतंत्रता की माँग करता है । आदर्श स्थिति मे्ं उसे दर्शक के टेस्ट और व्यवसायिक दवाब से भी मुक्त होना चाहिए । इसलिए सेंसर बोर्ड और अन्य व्यक्ति या संगठन जिनका इस कला माध्यम से कोई सरोकार नहीं है , उन्हें फिल्म को बाधित करने का कोई अधिकार नहीं है । किसी को फिल्म का विषय , ट्रीटमेंट पसंद नहीं है , मत देखिए । सिंपल !
फिल्म "लिपिस्टिक अंडर माई बूर्का " पर सेंसर और फतवे के खिलाफ प्रतिक्रिया !

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