शुक्रवार, 3 मार्च 2017

बैंक में नगद निकासी पर शुल्क लगाने पर प्रतिक्रिया



लोग एक पॉश रेस्त्राँ जाते हैं । हजार दो हजार का खाने का बिल बनता है , लेकिन रेस्त्राँ पानी भी मुफ्त नहीं परोसती , बल्कि बिसलेरी या अन्य पैकेज्ड पानी लेने के लिए बाध्य करती है । यह किसी को आपत्तिजनक नहीं लगता है ।
लोग मिठाई के दूकान में जाते हैं । दूकान वाला डिब्बे का अलग से चार्ज लेता है । यह किसी को आपत्तिजनक नहीं लगता है ।
मॉल वाले पैकेजिंग के पैसे अलग से जोड़ते हैं , यह किसी को आपत्तिजनक नहीं लगता है ।
कोल्ड ड्रिंक वाला एमआर पी से दो रुपए ज्यादा ले लेता है , फ्रिज के चार्ज के नाम पर । यह किसी को गलत नहीं लगता है । लगता भी हो तो विरोध नहीं होता या उसका असर नहीं होता और मामला ऐसे ही चल रहा है ।
लेकिन जैसे ही बैंक ने तयशुदा सीमा से अधिक बार नकद लेन देन पर चार्ज वगानो का फैसला किया है , चहूँ ओर विरोध हो रहा है । कई जोक चल रहे हैं । कि बैंक वाले किडनी निकालने पर तुले हुए हैं । आदि । मैं मजाक को मजाक में लेने का हिमायती हूँ । बतौर बैंकर हँस कर टाल दूँगा । लेकिन कुछ बातें स्पष्ट करना चाहूँगा ।
- पहला लोगदों का पैसा सुरक्षित है । उनके निकासी पर कोई पाबंदी नहीं है । सिर्फ नगद/कैश की निकासी पर पाबंदी है । दोनों में फर्क है । खाते से खाते में अंतरण, चेक/नेट बैंकिंग, कार्ड , यूपीआई आदि से भूगतान पर कोई पाबंदी नहीं है ।
नकद लेन देन पर भी जो सीमा लगायी गयी है , वह व्यवहारिक है । जब बैंक का कम्प्यूटरीकरण नहीं हुआ था , तब भी बचत खातों में एक निश्चित संख्या से ज्यादा बार लेन देन करने पर चार्ज लगता था । एक निश्चित संख्या से अधिक चेक बुक लेने पर चार्ज लगता था, वरना फ्री होता था । केवायसी में ढील दे कर खोले गये जन धन खातों में भी शुरु से ही नगद रखने और निकासी पर पाबंदी है । ऐसा इन खातों का दुरुपयोग बिजनेस/मनी लॉन्ड्रिंग आदि के लिए न करने देने के लिए है । बचत खातों के लिए लक्ष्य समूह को इससे ज्यादा जरुरत नहीं पड़ती है ।
दूसरे - बैंक में जब भी कोई चार्ज लगता है , ग्राहकों को शिकायत होने लगती है । ऐसी शिकायतें उन्हें दूसरी जगहों मसलन रेल आदि पर नहीं होती हैं । वजह यह है कि वे बैंक में अपना पैसा रखते हैं तो उन्हें लगता है कि वे बैंक पर अहसान कर रहे हैं और उन्हें सारी सुविधाएँ मुफ्त मिलनी चाहिए । वह भी ब्याज के अलावा ।
दोनों अलग बाते हैं । जब लोग बैंक में पैसे रखते हैं तो उसके एवज में उन्हें ब्याज मिलता है । जब अन्य सेवाएँ दी जाती हैं तो उसके एवज में शुल्क लेना किसी भी तरह गलत नहीं है । शुरुआत में एटीएम, एसएसएस आदि को लोकप्रिय बनाने के लिए चार्ज नहीं लिया जाता था । लेकिन थर्ड पार्टी को तो बैंकों को पैसा देना ही पड़ता है । वह खर्च बैंक खुद वहन करती रही है । इसलिए धीरे धीरे उसका भार ग्राहकों पर देना उचित है । कई बार तो रिजर्व बैंक ने बैंकों की बाँह उमेठ कर चार्ज न लगाने के लिए मजबूर किया है - ग्राहक सेवा के नाम पर । यह हमेशा नहीं चल सकता है ।
स्पष्ट करने के लिए उदाहरण दूँगा । बैंक बचत खाताधारकों को 4 % की दर से भूगतान करती है । लेकिन चालू खााताधारकों जिसे व्यवसायी वर्ग इस्तेमाल करता है , को कोई ब्याज नहीं दिया जाता है । लेकिन उनके संव्यवहार ( ट्रांजेक्शन ) पर कोई लीमिट नहीं होती है । यह प्रावधान सेवा देने के खर्च को समायोजित करने के लिए है । बैंक ऐसे ही चलते हैं ।
उद्योगपति लॉबी , रिजर्व बैंक और सरकार के दवाब में बैंक ने ऋण पर ब्याज दर गिराए हैं । इससे बैंक का ब्याज द्वारा लाभ अर्जन घटा है । इसलिए बैंक के पास अन्य श्रोतों से आय बढ़ाने के बारे में सोचना अनिवार्य है । इसलिए यह जरुरी है कि जो सुविधाएँ मुफ्त दी जा रही थीं , उस पर शुल्क लगाया जाए ।
यह भी - बहुतों की भावना आहत हो जाएगी और देशद्रोही का तमगा मिल जाएगा, फिर भी - कहना जरुरी है कि भारतीयों को कोई चीज मुफ्त मिले तो बहुत गैर जिम्मेदाराना तरीके से इस्तेमाल करते हैं । मसलन जमा पर्ची / निकासी पर्ची मुफ्त है और ग्राहकों की सुविधा के लिए डेस्क पर खुले में रखी जाती है तो लोग एक पर लिखते हैं और चार फाड़ते हैं । बहुत सारे उदाहरण हैं । इसलिए चार्ज /शुल्क जरुरी है । हाँ इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि चार्च व्यवहारिक और उचित दर से लगाए जाएँ ।
पहले बैंकिंग सेवा पर समय और स्थान की कई पाबंदियाँ थीं । शुल्क तब भी लगता था - मसलन डिमांड ड्राफ्ट बनवाने के लिए । बैंक ने तकनीकि में भारी निवेश किया है ताकि स्थान और समय की बंदिश बैंकिंग पर न रहे । तकनीकि की वजह से आज बैंक और पैसा , अंतरण सेवाएँ 24*7 *52 उपलब्ध है ।और पहले की तुलना में बहुत सी सुविधाएँ दी गयी हैं । जो लोग 50 के आस पास के व्यवसायी हैं , उनसे पूछिए तो वे बेहतर ढंग से तब और अब का फर्क बता देंगे । बैंक एक व्यवसायी संस्थान है । सेवा प्रदाता है । तो सेवा का शुल्क तो लिया ही जाएगा । लोगों को शिकायत नहीं होनी चाहिए ।
जो लोग विरोध स्वरुप बैंक में रुपये न रखने की बात कह रहे हैं , वे नगद रखने का जोखिम मोल ले रहे होंगे और संभावित ब्याज भी गँवा रहे होंगे ।हिसाब लगाएँगे तो समझ में आएगा कि बैंक में पैसे रखना और इलेक्ट्रॉनिक लेन देन करना ही ग्राहकों के हित में है ।
नोट : विचार निजी है और किसी संस्थान से संबंधित नहीं है ।

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