शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2017

रामजस कॉलेज डीयू में विद्यार्थी परिषद की गुंडागर्दी पर प्रतिक्रिया

यह कोई नयी बात नहीं है । संघ और उसके अनुषंगी संगठन हमेशा से एक ऐसे अबौद्धिक समाज के निर्माण के लिए प्रयासरत हैं जहाँ आप सवाल नहीं कर सकते , बस आज्ञा पालन कर सकते हैं । जहाँ इतिहास के बजाए पुराण पढ़ाए जाएँगें । जहाँ विज्ञान वहीं तक मान्य है , जहाँ तक वह जीवन को सुगम बनाए और आस्था को पुष्ट करे । आस्था को चुनौती देती वैज्ञानिक चेतना उन्हें पसंद नहीं है ।
जब भी भाजपा - जो संघ का ही अनुषंगी संगठन है , सत्ता में होती हैं , उनके प्रयास तेज हो जाते हैं । विश्वविद्यालयों में संघ का एजेंडा विद्यार्थी परिषद लागू करती है । जिनका नारा - भले ही ज्ञान, शील और एकता हो, हरकतें ठीक विपरीत हैं ।
ज्ञान के नाम पर उनके पास गढ़ी हुई कहानियाँ है जो तर्क और तथ्य की कसौटी पर खड़ी ही नहीं उतरती । वे राष्ट्रवाद और परंपरा के नाम पर सबपर यही थोपना चाहते हैं । वे वाद विवाद संवाद के बजाए डंडे का सहारा लेते हैं । ज्ञान को कौन पूछता है ?
शील ऐसा है कि हर स्त्री जो उनसे सहमत नहीं है , रंडी है । उनके पास तर्क नहीं बस गाली है ।
एकता ऐसी कि उनके राष्ट्र में न मुसलमान हैं , न इसाई , न दलित । हैं तो दोयम दर्जे की नियति के लिए अभिशप्त ।
असहमति , मतभेद किसी का भी लोकतांत्रिक अधिकार है । लेकिन विचार/लेख/किताब का जवाब विचार/लेख/किताब से देने के बजाए सत्ता /बल के दम पर आवाज कुचलना सीधे सीधे आतंकवाद है । ये आतंकवादी है । भले ही प्राइमरी लेवल के - बम नहीं फोड़ रहे , विरोधियों की हत्या नहीं कर रहे , लेकिन डंडे, पत्थर , कानून का इस्तेमाल बखूबी कर रहे हैं । वे सत्ता , संस्थान आदि हर जगह पैठ बना चुके हैं या शिद्दत से लगे हुए हैं ।
जब आवाज को कुचलने के लिए आतंक का सहारा लिया जा रहा हो , तो उस समय बोलना सबसे जरुरी हो जाता है । बोलिए , लिखिए , लड़िए ! अगली बार जब वे मारने आय़ें तो पलटवार जरुर होना चाहिए । आत्मरक्षा का अधिकार कानून भी दोता है और समाज भी । ,

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