शनिवार, 25 फ़रवरी 2017

बहुजनों मतों का विभाजन और भाजपा के पक्ष में जाना बहुजनों के हित में नहीं है ।

भाजपा समर्थक और कुछ अन्य विश्लेषक मान रहे हैं कि उत्तर प्रदेश चुनाव में गैर जाटव दलित और गैर यादव पिछड़े भाजपा की ओर जा रहे हैं । चूँकि राज्य का न वोटर हूँ , न वहाँ रहा हूँ , इसलिए जमीन पर क्या स्थिति है , मैंं नहीं कह सकता हूँ ।
लेकिन यदि यह सच है तो यह बहुजनों के लिए बुरा है । इसके दुष्परिणाम लंबे समय तक रहेंगे । और यहाँ मुझे राजनीति से ज्यादा समाज की फिक्र है । मैं बहुजनों की एकता का समर्थक हूँ । दलित और पिछड़े की बायनरी और उनका टकराव सिर्फ सवर्णों के हित में है , बहुजनों के हित में नहीं ।
यहाँ तो दलितों में जाटव और गैर जाटव , पिछड़ों में यादव और गैर यादव का द्वंद रचा जा रहा है ।
सामाजिक न्याय का दावा करने वाली कोई भी पार्टी एक जाति तक सीमित नहीं रह सकती । यदि रहती है और पुरे बहुजन समाज को जोड़ने का प्रयास नहीं करती है तो फिर वहाँ सामाजिक न्याय नहीं है । कोई पार्टी किसी समुदाय /जाति को बँधूआ मजदूर के तर्ज पर बँधूआ वोटर मान कर नहीं चल सकती । किसी पार्टी से नाराजगी/शिकायत हो सकती है , लेकिन दूसरे दल में जाने से पहले अपने दल से बारगेन तो ढंग से करलें।दूसरी पार्टी में जाना है तो उन्हीं से बारगेन करें । क्या कर सकते हैं हमारे व्यापक सामाजिक हित में ?
वैसे सामाजिक न्याय के मसले पर मैं बसपा को बेहतर पाता हूँ । मायावती और बसपा से शिकायतों हो सकती हैं , लेकिन इस चुनाव में दलितों और पिछड़ों के लिए वह बेहतर विकल्प है ।
भाजपा सिर्फ मुसलमानों का डर दिखा कर और जाटव-गैर जाटव , यादव और गैर यादव का द्वंद रच कर बहुजनों के बड़े तबके का वोट लेने में कामयाब होती है तो कहना पड़ेगा कि बहुजनों ने अपने हित को प्राथमिकता नहीं दी ।
पहले भी कहा है , भाजपा और संघ का कथित हिंदू राष्ट्र मुसलमानों से ज्यादा बहुजनों के

लिए खतरनाक है । जहाँ सारे खटकरम बहुजनों के जिम्मे और सारी मलाई सवर्ण चाभेंगे।
बहुजनों मतों का विभाजन और भाजपा के पक्ष में जाना बहुजनों के हित में नहीं है ।

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