सोमवार, 27 फ़रवरी 2017

संवाद में संवेदनशीलता की आवश्यकता

कई बार मुझे लगता है कि सोशल मीडिया में संवाद करने की सहूलियत चाहे जितनी दी हो , लोग संवाद करने की कला यहाँ पर भूलते जा रहे हैं या जानबूझ कर अनदेखा करते हैं ।
यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि संवाद दोतरफा प्रक्रिया है । इसमें दोनों पक्षों को सक्रिय भाग लेना होता है और अपेक्षित संवेदनशीलता दिखानी पड़ती है । वरना या तो संवाद सूत्र टूट जाता है या झगड़ा होता है ।
सोशल मीडिया पर अधिकांश संवाद इसी लिए थोड़ी देर बाद अभद्र और अशालीन हो जाता है ।
वर्तमान विवाद - जहाँ एक शहीद सैनिक की पूत्री ने संदेश लगाया - पाकिस्तान डिड नॉट किल माय फादर , वार डिड ! यह एक बेहद मार्मिक अपील है । युद्ध में जिसने अपना पिता गवाँया हो , उनके लिए यह एक उच्च आदर्श है । वरना बदले की भावना से वशीभूत होना सामान्य प्रतिक्रिया होती । इसमें उनका अपमान करने , धमकियाँ देने आदि वाली कोई बात नहीं है । यह पाकिस्तान का समर्थन नहीं , युद्ध की निस्सारता /विभीषिका को दर्शाना है । इसे समझ कर प्रतिक्रिया देने के बजाए उन्हें ट्रॉल करना निंदनीय है ।
दूसरे विरेंद्र सहवाग का जवाब इतना आपत्तिजनक नहीं है कि उन्हें उल्टा ट्रॉल किया जाए । हालाँकि वैसा जवाब समझ कर संवाद स्थापित करने के बजाए विरोधी को चित करने के इरादे से दिया जाता है । व्यवहार में भौगेलिक सीमाएँ , पाकिस्तान से कटू संबंध , युद्ध सच्चाई हैं । जरुरी नहीं कि हर कोई उच्च आदर्श स्थिति से मामले को देखे । पाकिस्तान को कटघरे में खड़ा करना , दोष देना कतई गलत नहीं है ।
आभासी दुनिया हो असली दुनिया - संवाद में सामने वाले का मंतव्य समझने के बाद ही जवाब देना चाहिए , वरना संवाद नहीं होता , झगड़ा होता है ।

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