रविवार, 25 दिसंबर 2016

मेरे बहुजन मित्रों - ब्राह्मणवाद का डेमो



इतिहास का अध्ययन इसलिए करते हैं कि ताकि उसके माध्यम से आज को समझ सकें । इसका उल्टा भी सच होता है । आज को देखकर इतिहास की किसी परिघटना को समझा जा सकता है ।
आज के दिन कई कथित राष्ट्रवादी / हिंदूत्वादी /संस्कृतिवादी क्रिसमस को तुलसी पूजन दिवस मनाने पर जोर दे रहे हैं । हालाँकि धार्मिक हिंदू चेतना में तुलसी पूजनीय पौधा है और गाँवों, कस्बों में घरों में एक तुलसी चौरा होता है और रोज ही उसके आगे सँध्यावादन के समय दिया भी जलाया जाता है , सुबह सुबह जल भी चढ़ाया जाता है । लेकिन पच्चीस दिसंबर को ही तुलसी पूजन दिवस मनाने का कोई प्रचलन नहीं है ।
यह तुलसी पूजन दिवस सायास क्रिसमस के बरअक्स खड़ा करने के लिए जबरदस्ती गढ़ा गया आयोजन है । इसकी सफलता संदिग्ध है, लेकिन इस प्रयास के पीछे छिपी मानसिकता को समझना जरुरी है ।
इसके पहले भी वेलेंटाइन डे को मातृ-पितृ दिवस के रुप में मनाने के लिए प्रेरित करने का प्रयास होता है । मजे कि बात है कि वे ही लोग फिर मदर डे का भी विरोध करते हैं ।
यह भले ही विदेश से आयातित मगर समाज में प्रचलित और स्वीकृत उत्सवों के मुकाबले अपने - कथित राष्ट्रवादी, हिंदूत्ववादी - हिसाब से कृत्रिम उत्सव खड़ा करना है , उसे हड़पने या अपदस्थ करने के लिए ।
वर्तमान की इस घटना से आप समझ सकत् है कि अतीत में किस तरह ब्राह्मणों ने आदिवासियों , बहुजनों , बौद्धों की परंपराओं और सांस्कृतिक प्रतीकों, उत्सवों को किस तरह हड़पा होगा या अपना बताया होगा ।
ब्राह्मणवाद को पुरी नंगई से काम करते हुए यहाँ देख सकते हैं और अनुमान लगा सकते हैं कि पिछले समय में क्या हुआ होगा !
#मेरे_बहुजन_मित्रों

बुधवार, 21 दिसंबर 2016

चीन पाक आर्थिक कैरिडोर



टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी एक खबर के अनुसार पाकिस्तान सेना के एक उच्च पदस्थ जनरल ने सार्वजनीक मंच से भारत को चीन पाक आर्थिक कैरिडोर में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया । यदि यह सुझाव या आमंत्रण किसी राजनीतिक पद पर बैठे शख्स मसलन प्रधानमंत्री या विदेशमंत्री ने दिया होता तो इसका अलग ही महत्व होता । लेकिन पाक की राजनीति में सेना की भूमिका को देखते हुए इस आमंत्रण का अपना महत्व है ।
गौरतलब है कि रुस जैसे भारत के पारंपरिक सहयोगी ने भी इसमें शामिल होने की ईच्छा जताई है । यहाँ तक कि उन्होंने भारत की आशंकाओं को दरकिनार करते हुए पाक के साथ सैन्य अभ्यास भी किया । ईरान ने भी इसमें शामिल होने की ईच्छा जताई है ।
भारत की चिंता वाजिब है । यह कैरिडोर पाकिस्तान के उस हिस्से से गुजरता है जिसपर भारत का दावा है । लेकिन यह प्रोजेक्ट बहुत ही अच्छा है । और पुरे केंद्रीय एशिया पाक , चीन, अफगानिस्तान , ईरान आदि के साथ भारत के लिए भी फायदेमंद हो सकता है । बशर्ते भारत इसमें शामिल होने का जोखिम उठाए ।
वैसे भी भारत और पाकिस्तान के बीच व्यापार होता ही है । भारत ने पाक को मोस्ट फेवर्ड नेशन का ओहदा भी दिया है । तो क्यों न इस व्यापार और परस्पर निर्भरता को और बढ़ाया जाए ताकि भारत और पाक के बीच मित्रता न सही लेकिन इस कदर परस्पर निर्भरता हो जाए कि युद्ध एक घाटे का सौदा हो जाए ।
भविष्य में और आज भी देशों के परस्पर संबंध आर्थिक मुद्दों पर तय हो रहे हैं । तो आर्थिक संबंध बने रहने चाहिए ।
बाकी रही बात सीमा पार आतंकवाद की तो उससे निबटने के लिए सेना और सुरक्षा एजेंसियाँ हैं । वे कर लेंगी ।

रविवार, 18 दिसंबर 2016

बैंक बनाम इ बटूए


पेटीएम जैसे वैलेट के मुकाबले बैंकों को क्यों तरजीह देनी चाहिए , इस संबंध में कुछ तर्क देना चाहूँगा ।
- बैंक सिर्फ लेन देन नहीं करता है , यह अन्य वित्तीय सेवाएँ - मने मियादी जमा, आवर्ती जमा आदि - भी देता है जो ई बटुए या भूगतान बैंकों के लिए संभव नहीं है । भविष्य में संभव हो तो अलग बात है लेकिन यह दूर की कौड़ी है ।
- बैंक आपके जमा पैसों पर ब्याज भी देता है । ई बटूए नहीं देते ।
- बैंक में आपके बचत खाते के पैसे के इस्तेमाल पर कोई बंदिश नहीं है । फिलहाल नकद निकालने पर जो पाबंदियाँ हैं वे वक्ती हैं । गौर कीजिए चेक , नेट बैंकिंग आदि द्वारा इस्तेमाल पर कोई पाबंदी नहीं है । कार्ड आदि पर सुरक्षा के दृष्टिकोण से जो लिमिट है , वह आप अपनी जरुरत के हिसाब से बढ़ा भी सकते हैं ।
- बैंक आपको क्रेडिट उपलब्ध कराती है । क्रेडिट कार्ड के माध्यम से भी और यह मियादी /आवर्ती जमा को बंधक रख 90 % तक ऋण तत्काल उपलब्ध कराती है जो ई बटूए और भूगतान बैंकों में संभव नहीं है ।
- व्यापारी वर्ग - खासतौर से छोटे जो अब तक अधिकांश काम नकद करते हैं और चालू खाता नहीं रखते हैं - यदि सारा काम बैंक के खाते के माध्यम से करेंगे तो उन्हें भविष्य में ऋण लने में आसानी होगी । ई बटूआ या भूगतान बैंक ये जरुरत पूरी नहीं कर सकते हैं ।
- बैंक पर ज्यादा निगरानी और बंदिशे हैं । बैंक में आपका पैसा ज्यादा सुरक्षित है ।
- बैंकों के पीछे वर्षों की साख है , जिसका अपना महत्व है ।
- बैंक आपके एजेंट - चाहे बीमा हो , म्यूचुअल फंड हो आदि - के रुप में भी काम करती है । भविष्य में इसे आप बैंक के पास बंधक के रुप में रख कर ऋण की सुविधा भी उठा सकते हैं ।
- कोई भी इकॉनोमी कैसलेस नहीं हो सकती है । नकद की जरुरत बाद में भी रहने वाली है, भले कम हो । इसके लिए बैंक से बेहतर कुछ नहीं ।
- गैस की सब्सिडी , छात्रवृत्ति , कोई अन्य सरकारी अनुदान बैंक खातों के माध्यम से ही मिलेंगे । इसलिए बैंक में खाता तो रखना पड़ेगा ही । तो क्यों नहीं उसे ही लेनदेन के लिए इस्तेमाल किया जाए ।
- बैंक  भूगतान के लिए बहुत  तरह के विकल्प देता है – नगद, डेबिट कार्ड, केर्डिट कार्ड , नेट बैंकिंग , यूपीआई , फोन बैंकिंग , क्यू आर ट्रांजेक्शन आदि । इतना विकल्प फिलहाल बैंक के अलावा संभव नहीं है ।
लिस्ट और भी लंबी हो सकती है । फिलहाल इतना ही । आगे दूसरी पोस्ट में लिखूँगा ।
अपने हित में बैंक से जुड़े रहिए ।
बैंकर मित्रों से अपील है कि ऐसे समय में जब बैंक पर हमले बढ़ रहे हैं . उसकी साख पर ही बट्टा लगाया जा रहा है , ग्राहकों को बैंक का महत्व समझाएँ और बैंक से जोड़े रखें ।
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शुक्रवार, 16 दिसंबर 2016

परफोर्मेंस पर जनेऊ भारी , मिश्रा टीम के अंदर और यादव बाहर ¡



परफोर्मेंस पर जनेऊ भारी , मिश्रा टीम के अंदर और यादव बाहर ¡
क्या कहा जाए यदि एक टेस्ट में शतक जड़ने वाले बल्लेबाज को अगले मैच से बाहर कर दिया जाए और कोई चर्चा तक न हो ¿
इंग्लैंड के खिलाफ पिछले टेस्ट में जयंत यादव ने शतक लगाया था । गौर करने वाली बात यह है कि वे नौ नम्बर पर खेलने आए थे । कोहली के जिस दोहरे शतक की खूब चर्चा हुई और मैन ऑफ द मैच अवार्ड मिला , उसमें भी जयंत यादव की भूमिका थी । टेस्ट क्रिकेट में साझेदारियाँ महत्वपूर्ण होती हैं , वरना एक सिरे से रन बने और दूसरे सिरे से विकेट गिरतें तो अच्छा स्कोर नहीं बन पाता है । पिछले टेस्ट में विकेट भले ही एक लिया , लेकिन उससे पहले के दो टेस्ट में चार विकेट लिए । एक अर्धशतक समेत उपयोगी पारियाँ भी खेलीं । इसके बावजूद टीम में उसके लिए जगह नहीं है ।
उसकी जगह लाया गया अमित मिश्रा को । राजकोट के मैच में उसने तीन विकेट लिया था और शून्य रन बनाया था । मिश्रा का पर्फोरमेंस किस लिहाज से जयंत से बेहतर था ¿ उल्टे जयंत यादव युवी हैं । उसे फेल होने में भी सपोर्ट मिलना चाहिए , लेकिन यहाँ तो अच्छे प्रदर्शन को भी नजरअंदाज किया जा रहा है ।
कहा जा सकता है कि भारत एक लेग स्पीनर को खिलाना चाहता होगा । तो फिर क्या उसके लिए जयंत यादव को हीे जाना था ¿क्रिकेट में ब्राह्मणों का वर्चस्व रहा है । प्रभाष जोशी कहते थे कि एक ब्राह्मण ही अच्छा बल्लेबाज हो सकता है । लेकिन यहाँ शतक लगाने वाले एक यादव को एक मिश्रा से रिप्लेस किया जाता है । एक ऑलराउंडर को एक गैेदबाज से जिनका हालिया प्रदर्शन टेस्ट में ऐसा नहीं है कि उसके लिए खास जगह बनाई जाए ।
वर्चस्व ऐसे ही बनाए रखा जाता है जब प्रदर्शन से ज्यादा अन्य फैक्टर प्रभावी हो जाते हैं । जब वर्चस्वशाली समूह को अन्य के मुकाबले ज्यादा मौके मिलते हैं । गलतियाँ माफ होती हैं और पुरस्कार प्रदर्शन से ज्यादा दिया जाता है । यही वह मेरिट है जो बहुजनों के पास नहीं है । हालिया दिनों में भारतीय क्रिकेट में उमेश यादव और जयंत यादव ने जगह बनाई , लेकिन उन्हें वे अवसर हासिल नहीं जो ईशांत शर्मा और इस बार अमित मिश्रा को हासिल है ।
मेरिट मेरिट करने वालोंके लिए जनेऊ ही मेरिट है ।
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बुधवार, 14 दिसंबर 2016

बैंक में भ्रष्टाचार




इन दिनों मीडिया और पब्लिक में बैंकरों पर सुनियोजित हमला बढ़ रहा है । ऐसा वातावरण रचा जा रहा है कि विमुद्रीकरण के फेल होने का कारण बस बैंकर है ।
इस संबंध में कुछ टिप्पणियाँ
- बैंकर भी इसी समाज से आते हैं , वे उतने ही ईमानदार या बेईमान हैं जितना कोई आम भारतीय ।
- बैंक चूँकि फाइनेंस से संबंधित है, इसलिए यह फ्रॉड प्रॉन इंडस्ट्री है । कहने का मतलब यह है कि इसमें फ्रॉड की संभावना बाहरी लोगों और कर्मियों द्वारा भी हमेशा बनी रहती है ।
-इसलिए बैंक में अधिकांश काम के लिए दो कर्मियों की जरुरत होती है । चेक और काउंटर चेक की व्यवस्था है । अंदरुनी जाँच के साथ , आरबीआई , ऑडिट, सतर्कता विभाग - अंदरुनी और बाहरी दोनों , औचक नीरिक्षण आदि कई चेक की व्यवस्था है । इसके बाद भी फ्रॉड होते हैं और दोषी पकड़े जाते हैं , उन्हें सजा होती है । कई बार नौकरी भी जाती है और जेल भी होती है ।
- टाईम्स ऑफ इंडिया के साइट पर जिन तरीकों द्वारा बैंकरों की संलिपत्ता बताई जा रही है , वे भी फ्रॉड प्रॉन एरिया माने जाते हैं और उन पर ज्यादा निगरानी होती है । उनका पकड़ा जाना महज वक्त की बात है । और यह बैंक के रुटीन में आता है । बिना सरकार और बाहरी एजेंसी के दखल के भी बैंक अपना अंदरुनी चेक सिस्टम दुरस्त रखती है ।
- कई मामलों में बैंकरों की संलिपत्ता की बात करके पत्रकार महोदय बैंकिंग के बारे में अपने अज्ञान का प्रदर्शन कर रहे हैं । मसलन एक बैंक के लॉकर में दस करोड़ रुपए मिले । नियमानुसार बैंक सिर्फ लॉकर किराये पर देती है । उसके भीतर रखी सामग्री ग्राहक की जिम्मेदारी है । बैंकर को इसके बारे में न तो पता होता है और न ही उसे इस बारे में पुछताछ करने का अधिकार है । जब ग्राहक लॉकर ऑपरेट करता है तो वहाँ बैंकर नियमानुसार उपस्थित नहीं रह सकता है । ऐसे में लॉकर से नकदी बरामद होने पर बैंकर की संलिपत्ता का सवाल ही नहीं उठता । जब अधिकार नहीं तो जवाबदेही भी नहीं बनती है ।
- मैं भ्रष्ट बैंकरों का समर्थन नहीं करता और न ही उनका बचाव करना चाहता हूँ । न ही यह कहना चाहता हूँ कि बैंक में सब कुछ सही है । लेकिन निश्चय ही इतना अंधेर भी नहीं है , जितना सरकार को बचाने के लिए बैंक में दिखाया जा रहा है । आलोचना जरुर कीजिए , लेकिन फैक्ट और लॉजिक सही रखिए ।
#बैंक_बैंकर