बुधवार, 21 सितंबर 2016

प्रेम में हत्या



दिल्ली में एक तिरस्कृत प्रेमी ने लड़की की विभत्स हत्या कर दी । यह कोई अकेली घटना नहीं है । प्रेम/शादी का प्रस्ताव ठुकराए जाने पर कई लड़के उत्पीड़न , बलात्कार , एसिड अटैक ,यहाँ तक कि हत्या तक पर उतारु हो जाते हैं । जिस तरह इज्जत के नाम पर होने वाली हत्या/अपराध को जायज नहीं ठहराया जा सकता , उसी तरह प्रेम के नाम पर होने वाले अपराध को जायज नहीं ठहराया जा सकता है ।
आप किसी से कितना भी प्रेम करें , उसे खुद से प्रेम करने के लिए विवश नहीं कर सकते । यह नैतिक रुप से गलत तो है ही , उससे बड़ी वजह है कि आप बलप्रयोग से प्रेम नहीं पा सकते । अगर बल प्रयोग हुआ तो वह बलात्कार है । कोई प्रेम अपनी वजहों से ही करेगा । अगर आप किसी से प्रेम करते हैं तो उसके निर्णय का सम्मान कीजिए, भले ही यह "न " हो । अगर वह आपके बगैर खुश है तो उसे जाने देना चाहिए । और उसके फैसले की एक्सप्लेशन माँगना सही नहीं है । उसकी जिंदगी, उसकी मर्जी ।
अब जरा उस पुरुष की दृष्टि से देखें ! क्या मिला उसे हत्या करके ? जेल ! हत्या करके उसने अपनी भी जिंदगी बर्बाद की । यदि वह फैसला स्वीकार कर जाने देता तो उसके जीवन में प्रेम की संभावना बनी रहती । अगर स्त्री के लिए नहीं तो अपनी सलामती के लिए ही प्रेम में असफल होने पर हिंसक प्रतिक्रिया नहीं करनी चाहिए । आहत अहं को सहलाने के लिए और भी रास्ते हैं ।



सोमवार, 19 सितंबर 2016

पाकिस्तान और मुसलमान

संघ परिवार और भाजपा ने सुनियोजित तरीके से एक झूठ फैलाया है कि कांग्रेस या अन्य दलों की सरकार पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कार्यवाई इसलिए नहीं करते कि वे अपने मुस्लिम वोट बैंक को नाराज नहीं करना चाहते । वे धर्म के आधार पर भारतीय मुसलमानों को पाकिस्तान समर्थक /पाकिस्तानी समझते और समझाते रहे हैं ।
इस झूठ की कलई तो अभी उतरती देखिए । भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार है , लेकिन आतंकवादी हमले के बाद प्रतिक्रिया पारंपरिक लाइन पर ही है जिसके लिए वे कांग्रेस को बदनाम करते रहे । वे किस वोट बैंक को खुश कर रहे हैं ?
पाकिस्तान से हमारे राजनीतिक संबंध जटिल हैं । यह संबंध भारतीय मुसलमानों के वोट से नहीं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति, भू राजनीतिक परिस्थितियों , पाकिस्तान का परमाणु क्षमता संपन्न होना आदि बातों से प्रभावित है ।
चूँकि भारत और पाकिस्तान कभी एक थे इसलिए कई लोगों क पारिवारिक संबंध दोनो देशों में थे । ऐसे लोग सिर्फ मुसलमान ही नहीं थे । खुद आडवाणी पाकिस्तान वाले हिस्से में पैदा हुए थे । ऐसे लोगों का युद्ध का विरोध समझा जा सकता है । लेकिन इसके लिए उन्हें पाकिस्तान परस्त घोषित करना गलत है ।

शुक्रवार, 16 सितंबर 2016

फिल्म : पिंक

फिल्म : पिंक
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डिस्क्लेमर : समीक्षा नहीं ; दर्शक की प्रतिक्रिया ;स्पॉइलर अलर्ट
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मुझे यह फिल्म बेहतरीन लगी । एक सोशल थ्रिलर । कोर्ट रुम ड्रामा । हालाकि हिंदी फिल्में या तो सामाजिक समस्याओं से बच कर निकलती है या उसे अति नाटकीय भावुकतापुर्ण प्रलाप में बदल देती हैं । गनीमत है इस फिल्म के साथ ऐसा नहीं है ।
तीन कामकाजी लड़कियाँ एक डिनर के लिए लड़कों के साथ रिजार्ट में जाती हैं । वहाँ लड़के लड़कियों के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश करते हैं । बचाव में लड़की लड़के के सिर पर बोतल फोड़ देती है । इसके बाद शुरु होता है लड़कों द्वारा -खासतौर से राजनीतिक कनेक्शन के कारण उन्हें डराने धमकाने , उन्हें बदनाम करने , उन्हें दुबारा अपहृत करने और मोलेस्ट करने , काउंटर केस कर उन्हें वेश्या साबित करने , पुलिस द्वारा मामले को जानलेवा हमले का गलत रुप देने का प्रयास होत है ।
फिल्म की जान है कोर्ट में होने वाली बहस । संवाद बिल्कुल सीधे और सधे हुए और इसलिए ज्यादा असरदायक हैं । फिल्म कंसेंट के कॉनसेप्ट को पुरी तरह स्पष्ट करती है लेकिन उपदेशात्मक तरीके से नहीं । यह उस बहस के नतीजे के रुप में निकलता है ।
फिल्म में कई जगह ठहराव है, लेकिन यह जरुरी लगते हैं , उस तनाव , डर , दवाब को महसूसने के लिए जो पात्रों पर गुजर रही है ।
यह महिला से जुड़े मुद्दे पर बनी फिल्म है , लेकिन हर पुरुष को देखनी चाहिए । हालाँकि मैं नारीवादी नहीं हूँ और पुरुष वर्चस्ववादी होने का आरोप लगता रहता है , लेकिन इससे पुर्ण सहमति है कि स्त्री के अधिकार वस्तुत: व्यक्ति के अधिकार हैं , बलात्कार को कपड़े, शराब आदि से जस्टिफाई नहीं किया जा सकता , और लैंगिक समानता के लिए फोकस पुरुष पर और उन्हें जेंडर सेंसिटिव बनाने पर होना चाहिए ।
हिंदी फिल्मों मे अमूमन हीरो जो हिरोइन को मनाने के लिए करता है , वह कानूनन और सामाजिक रुप से भी गलत है । यह फिल्म एक तरह से उन फिल्मों द्वारा प्रचारित गलतफहमियों को दूर करता है उम्मीद है कि फिल्म देखकर निकले पुरुष थोड़े संवेदन शील बनकर जरुर निकलेंगे ।
और यदि आपको शिकायत हो कि हिंदी फिल्म कंटेंट आधारित नहीं होती है तो यह फिल्म जरुर देखिए । और कंटेंट आधारित सिनेमा को बढ़ावा दीजिए ।