गुरुवार, 16 फ़रवरी 2017

दलों को चँदा दें !

इस पर बहुत चर्चा होती रही है कि चुनाव और दलों पर पूँजीपतियों की पकड़ है क्योंकि फंड का इंतजाम वही करते हैं । दलों को चुनाव लड़ने और संगठन के लिए पैसे तो चाहिए , लेकिन इसका इंतजाम कौन करे ।
किसी आम पार्टी कार्यकर्ता /समर्थक से बात कीजिए तो पता चलेगा कि वे पार्टी का काम करने के एवज में पैसे चाहते हैं, वोटर भी चुनाव के मौसम में कुछ खर्चा पानी , कुछ गिफ्ट चाहता है । किसी पार्टी या नेता के आह्वान पर रैली में शामिल होने के लिए भी वे भुगतान चाहते हैं । कम से कम - चाय, नाश्ता और आने जाने का खर्चा तो उन्हें जरुर चाहिए होता है ।
सवाल है ऐसे में दलों की निर्भरता पूँजीपतियों पर बढ़ेगी और सरकार बनने के बाद उनके दवाब में रहेगी ।
मेरी स्मृति में बिना गूगल किए सिर्फ एक पार्टी और नेता का ध्यान आता है जिन्होंने अपने वोटरों से वोट के साथ नोट भी माँगे । वह है - बसपा और काँशीराम ।
यह एक बढ़िया विचार था ।और इसे जोर पकड़ना चाहिए था । अफसोस ! फिलहाल इसे कोई भी पार्टी बढ़ावा नहीं दे रही है । खुद बसपा भी नहीं ।
कुछ लोग बड़ी रकमें दें इससे बेहतर है ज्यादा लोग थोड़ा थोड़ा योगदान करें । तभी सरकार पर पूँजीपतियों की पकड़ थोड़ी ढीली पड़ेगी ।
सरकार की आय का बड़ा श्रोत जनता द्वारा करों से कमाया जाता है चाहे वह प्रत्यक्ष हो या परोक्ष ! यदि जनता के पैसे से सरकार चल सकती है तो राजनीतिक दल भी चल सकते हैं ।
यदि आप किसी दल के समर्थक हैं , कार्यकर्ता हैं तो दलों से भूगतान की आशा करने के बजाए उन्हें चँदा दीजिए । भले ही राशि कितनी भी छोटी हो । यह दलों और लोकतंत्र को जनकेंद्रित बनाने में मदद करेगा ।
थोड़ा आदर्शवादी और अव्यवहारिक लग सकता है , पर है नहीं । आइडिया जोर पकड़ने की देर है ।

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