मंगलवार, 21 फ़रवरी 2017

बहुजनों का मतदान शत प्रतिशत होना चाहिए ।

इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक खबर के अनुसार उत्तर प्रदेश में जारी चुनाव के दूसरे चरण में जहाँ दलित बहुल सीटों पर मतदान के प्रतिशत में बढ़ोतरी नोट की गयी है, वहीं पिछड़े बहुल सीटों पर प्रतिशत में गिरावट नोट की गयी है । हालाँकि सवर्ण बहुल सीटों पर भी मतदान के प्रतिशत में कमी आयी है , लेकिन में उनपर टिप्पणी नहीं करना चाहूँगा ।
मेरी चिंता का कारण है कि पिछड़े बहुल सीटों पर मतदान के प्रतिशत में कमी । समाज और सत्ता में पिछड़ों की भागिदारी कम है और वे उतने प्रभावशाली नहीं हैं ।तंत्र मे सवर्णों की घूसपैठ इतनी अधिक है कि वे अपनी ताकत दिखाने के लिए चुनाव के समय के मोहताज नहीं हैं । लेकिन बहुजनों के पास यह विकल्प नहीं है । बहुजनों के पास चुनाव ही वह समय है जब वे अपनी ताकत दिखा सकते हैं । दलितों में राजनीतिक चेतना , लड़ने की जिजीविषा पिछड़ों के मुकाबले अधिक है । मतदान के प्रतिशत से बात और पुष्ट होती है । पिछड़ों के उनसे सिखना चाहिए ।
मतदान में न केवल शत प्रतिशत वोटिंग सुनिश्चित होनी चाहिए , बल्कि उम्मीदवारों के पहुँचने से पहले खुद उनके पास जाना और पूछना चाहिए कि वे आपके लिए क्या कर सकते हैं । मेरा मतलब शराब या कुछ पैसे लेकर वोट बेचने से नहीं है , बल्कि यह है कि आपकी शिक्षा, व्यापार, खेती संबंधी दिक्कतों के लिए उनके पास क्या योजना है और वे किस हद तक आने वाले पाँच सालों में मदद के लिए तैयार रहेंगे ।
राजनीतिक दलों को यह स्पष्ट संदेश मिलना चाहिए कि वे पिछड़ों और उनके हितों की अनदेखी कर न सरकार बना सकते हैं और न चला सकते हैं ।
इसके लिए पहले कदम है कि वोट डालिए । इस चुनाव में और हर चुनाव में । अगर पिछड़े अपने वोट की ताकत नहीं दिखाएँगे तो हाशिए पर तो हैं हीं , एकदम से फेंका जाएँगे ।
#मेरे_बहुजन_मित्रों

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