सोमवार, 6 फ़रवरी 2017

सवर्ण वोट और बसपा एवं अन्य बहुजन दल

मायावती ने गरीब सवर्णों को भी आरक्षण देने का वादा किया है । इससे पहले भी मायावती ने बहुजन के बजाए सर्वजन का नारा दिया है । और ब्राहम्णों को उनकी आबादी की तुलना में बहुत ज्यादा टिकट दिया है ।
बहुजनों के साथ दिक्कत है कि वे सवर्णों की स्वीकृति के लिए बहुत लालायित रहते हैं । हाल में सपा ने प्रोमोशन - जो पिछड़ों की पार्टी मानी जाती है -में आरक्षण का विरोध किया । नीतीश कुमार ने सवर्ण आयोग बनाया । इसके बाद भी सवर्ण कभी इन पार्टियों के वफादार वोटर नहीं रहेे । मजबूरी में वोट भले कर दें ।
इस मामले में भाजपा ज्यादा साफ है । वे मुस्लिम को अपना वोट बैंक नहीं मानते तो उन्हें लुभाने , साथ जोड़ने के लिए कोई खास प्रयास नहीं करते हैं । देख लीजिए - यूपी में एक भी मुस्लिम को टिकट नहीं दिया ।
यदि वे लगभग 25 % मुसलमानों को दरकिनार कर बहुमत की सरकार बना सकते हैं , तो 15 % सवर्णों को दरकिनार कर भी सोशल इंजीनियरिंग के समर्थक दल बहुमत ला सकते हैं । ऐसे में सवर्णों को खुश करने के लिए अपने कोर वोटर को नाराज करना, उपेक्षा करना उचित नहीं ।
उन लोगों को खुश करने का कोई मतलब नहीं है जिसे हमारे होने से ही एतराज है ।
सामाजिक रुप से समरसता का हिमायती हूँ । लेकिन चुनाव की रणनीति के हिसाब से बसपा, जद यू आदि को सवर्ण वोटों का मोह छोड़ देना ही उचित है ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें