सोमवार, 15 जनवरी 2018

मिशन 2018

मिशन 2018
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विडंबना है कि 2018 के लिए लक्ष्य निर्धारित करते हुए साल के पहले दो हफ्ते बीत भी चुके हैं । तय किया था कि 2018 में कुछ ठोस लक्ष्य तय किए जाएँ और व्यवस्थित रुप से उस पर काम किया जाए , बावजूद इसके कि यह मेरा कमजोर पहलू है । रुटीन पालन करना मेरे लिए मुश्किल है ,यह जानतेहुए भी कि बिना अनुशासन और व्यवस्था के कुछ हासिल करना असंभव है । हालँकि यह गजब विरोधाभास है कि रचनात्मकता का अनुशासन और व्यवस्था से विरोध ही रहा है , लेकिन उनके अभाव में रचनात्मकता कुछ हासिल नहीं कर पाती है ।
बहरहाल तय किया है कि 2018 में
1 - कम से कम छह कहानियों का एक संग्रह पुरा किया जाए । फोकस लिखने पर ही रहेगा । छपवाने की चिंता नहीं करनी है । फेसबुक और अपनी वेबसाइट पर ही डाल दी जाएगी ।
2 - विचारात्मक लेखन में अ) एक सेक्युलर का हलफनामा ब) आत्मकथ्य -स्व से संवाद स) नास्तिकता के पक्ष में पोस्ट के सीरीज रुप में पुरा करना है ।
3 - पूर्वाग्रह पर एक संकलन विश्लेषण के साथ तैयार करना है ।
पढ़ने में साहित्य के अलावा
- बैंकिंग पर नौकरी की जरुरत के हिसाब से पढ़ना है जो अक्सर हाशिए पर रह जाता है ।
-पिछले साल की अधूरी पढ़ी गयी किताबें पुरी करनी है।
- दर्शन और इतिहास पर इस साल विशेष रुप से पढ़ना है ।
- पढ़ी गयी किताबों पर पाठकीय प्रतिक्रिया लगानी है ।
3- इस साल चार राज्य की रोड ट्रिप करनी है
- राजस्थान , गुजरात , पँजाब , मध्य प्रदेश
( विदेश यात्रा को फिलहाल ठंडे बस्ते में डाला जाए ।)
4 - समाज सेवा में OXFAM को माध्यम में कुछ बच्चों की पढ़ाई का खर्चा उठाना है । साथ ही राष्ट्रीय पुस्तक न्यास की "हर हाथ किताब " योजना के माध्यम से किताबें वितरित करनी हैं ।
दूसरे अपनी योजनाओं पर खुली चर्चा करनी है , इन्हें व्यवहारिक रुप देने की संभावनाओं और चुनौतियों पर विमर्श कर हुए क्रियान्वण आत करनी है , भले ही छोटे स्तर पर !
5 - स्वास्थ्य प्राथिमकता रहेगी और व्यायाम, पौष्टिक भोजन जीवन का इस कदर हिस्सा होना चाहिए कि उसके लिए अलग से लक्ष्य निर्धारित करने की जरुरत न पड़े ।

मंगलवार, 26 दिसंबर 2017

लेखा जोखा 2017

लेखा जोखा 2017
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2017 का आखिरी सप्ताह चल रहा है । ऐसे में जरुरी है कि 2017 का लेखा जोखा रख लिया जाए और 2018 के कार्यक्रम की रुपरेखा बना ली जाए ।
2017 की शुरुआत में फेसबुक पर ही सार्वजनिक रुप से 2017 के लिए दिशा निर्देश तय किया था ।
इसमें कुछ मुद्दों पर लड़ाई मोल लेना था . किया भी । ऐसा नहीं कह सकता कि जीत गया, पर हारा भी नहीं । जो मुद्दा था, उसे उठाने में और कुछ हद तक मनवाने में कामयाब रहा । डिटेल में जान
...ा संभव नहीं है ।
लिखने के बारे में लक्ष्य निर्धारित किया था । लेकिन साल के शुरुआती महीनों में ही फेसबुक पर लिखा , जो बाद में फेसबुक से दूरी बनाने के कारण नगण्य हो गया । बाकी किसी पत्र पत्रिका , वेबसाइट , यहाँ तक कि अपनी ही वेबसाइट के लिए भी नहीं लिखा । जो लिखा वह फेसबुक पर ही लिखा जिसे मैं खुद ही महत्वपूर्ण नहीं मानता ।
पढ़ने के बारे में स्थिति कुछ बेहतर रही । ढेर सारी किताबें खरीदी और पढीं भी ।कुछ किताबें पढ़ना उपलब्धि रही । हालाँकि स्थिति और बेहतर हो सकती थी । कई किताबें जो खरीद ली पढ़ न सका, कुछ शुरुआत करने के बाद खत्म न कर सका , व्यवस्थित तरीके से नहीं पढ़ा ।कहना चाहिए कि अध्ययन के बजाए आस्वादन के लिए पढ़ा ।
घूमने में स्थिति बढ़या रही । यूरोप जाने की योजना कई मशक्कत के बाद भी सफल नहीं हुई । फिर भी भूटान , नेपाल , उत्तर प्रदेश ( बनारस, गोरखपुर, लखनऊ , आगरा , इलाहाबाद ), हिमाचल प्रदेश ( शिमला, कसौली ), राजस्थान ( जयपुर, अलवर ) घूमा ।
जो अन्य बातें उल्लेखनीय थीं
- ड्रिंकिंग और स्मोकिंग पुरी तरह काबू में रहा । साल भर में एक -दो मौके को छोड़ कर पुरी तरह बंद रहा ।
- फेसबुक, नेट एडिक्शन बहुत हद तक कम कर दिया । ( यह पोस्ट लिखने की भी इच्छा नहीं हो रही है । )
-जिम/फिटनेस पूरी तरह नियमित न रहा तो पुरी तरह छूटा भी नहीं ।
- खान पान पर बीच में नियंत्रण छूटने के अलावा ज्यादातर समय काबू में रहा । नाश्ता और रात का खाना खुद बनाना जारी है ।
- बड़े शौक से कैमरा खरीदा था। यूँ ही रख छोड़ा है ।
- वेबसाइट बनवाई थी जो अभी भी है , लेकिन फेसबुक से दूरी बनाने पर वह भी छूट गयी।
- डिप्रेशन /एंजाइटी तो खैर लगा ही रहता है, लेकिन एक दो मौकों को छोड़ कर काबू से बाहर नहीं गया ।
-दवाई पर निर्भरता बढ़ गयी है, लेकिन स्वास्थ्य ठीक ही है ।

खैर ! कुल मिला कर यह साल ठीक ठाक ही गुजरा , अच्छा भले ही न कहें ।

रविवार, 10 सितंबर 2017

घरेलू सहायक पर जाति छिपाने के लिए एफआईआर दर्ज करने पर प्रतिक्रिया

पिछले दिनों एक खबर प्रमुखता से छपी । जिसमें एक महिला वैज्ञानिक ने अपने घरेलू सहायक के प्रति शिकायत दर्ज की कि उसने अपनी जाति छिपाई और उसका "धर्म भ्रष्ट " कर दिया ।
इस मामले में कई चीजें स्पष्ट होती हैं जिसे बहुजन विचारक से लेकर साधारण कर्यकर्ता तक बार बार कहते रहे हैं ।
- पुलिस ने एफआईआर दर्ज भी कर लिया जो कि बलात्कार से लेकर चोरी तक जैसे संगीन मामलों में मुश्किल से होता है । लेकिन इस मामले में उस महिला वैज्ञानिक पर मुकद मा दर्ज करने के बजाए पीड़ित के खिलाफ ही मुकदमा दर्ज कर लिया । यह स्पष्ट है कि शासन तंत्र पर किस तरह कथित ऊँची जातियों का कब्जा है और कानून को तोड़ मरोड़ कर मनमानी व्याख्या द्वारा अपने हक में इस्तेमाल करती हैं ।
- वैज्ञानिक होना - कम से कम भारत में - अनिवार्यत: वैज्ञानिक सोच का होना नहीं है । यह दुर्भाग्यपुर्ण है कि भारत में विज्ञान और तकनीकि विषय पढ़ने वाले ही आधुनिक शिक्षा और तकनीकि का सर्वाधिक लाभ लेकर भी सामाजिक रुप से भयंकर परंपरावादी और तमाम कुरीतियों का पोषक है ।
- घरेलू सहायक यादव जाति की बतायी जाती है । पारंपरिक रुप से जातिगत सीढ़ी में यादव कम से कम अछूत नहीं है । बिहार और उत्तर प्रदेश में उसे दबंग जाति मानी जाती है और भाजपा जैसी पार्टियाँ पिछड़ों और दलितों को उनके खिलाफ लामबंद करने का प्रयास करती हैं - यह कह कर कि उसन आरक्षण आदि का सारा फायदा ये जातियाँ ले गयीं ।फिर भी ये स्पष्ट है कि घृणित ब्राह्मण और ब्राह्मणवाद खुद को छोड़ कर सबको अपवित्र मानता है । इसलिए मध्य जातियाँ का हिंदू के नाम पर ब्राह्मण और ब्राह्मणवाद को प्रश्रय देना अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारना है ।
- सारी महिलाएँ एक हैं - यह एक थोथा नारीवादी स्वप्न है , यथार्थ नहीं । महिलाएँ लैंगिग आधार पर एक मंच पर आने के बजाए अपने वर्ग , धर्म और जाति के साथ रहना अधिक पसंद करती हैं । यह तर्क स्वीकार्य है कि वर्तमान सामाजिक व्यवस्था में यह अधिक सुविधाजनक होता है , लेकिन इस आधार पर उच्च शिक्षित महिला को छूट नहीं दी जा सकती । वह भी उतनी ही आलोच्य है ।
- कहाँ है जाति , कहाँ है जाति पूछने वाले और सिर्फ आरक्षण को जातिगत भेदभाव मानने वाले सवर्ण धूर्तों को यह खबर आँख में उँगली डाल कर पढ़वानी चाहिए ।
-जिन्हें सिर्फ ब्राह्मणों को घरेलू सहायक रखने में जातिगत भेदभाव नहीं दिख रहा है और इसे व्यक्ति स्वातंत्र्य मान रहे हैं , खास उनके लिए एक विज्ञापन मैं देना चाहता हूँ ।
- आवश्यकता है एक कुलीन ब्राह्मण की जिसे सुबह सुबह नित्य क्रिया के समय मेरी गाँड धोनी पड़ेगी । मानदेय 10000/- रुपये महिना । दिन में सिर्फ मुश्किल से दस मिनट खर्च कर इतनी रकम बुरी नहीं है । किसी गरीब ब्राह्मण की मदद करने के लिए यह मेरा प्रयास है । उम्मीद है ब्राह्मण इसे अन्यथा न लेंगे । इच्छुक ब्राह्मण कमेंट में संपर्क करें ।
शुक्रिया !

सोमवार, 21 अगस्त 2017

बैंक- बैंकर : युनियन 1

- अच्छा तो कल हड़ताल है !
- किसलिए हड़ताल है ?
- होना जाना कुछ नहीं , बस कल फिर एक दिन वेतन कट जाना है ।
- कल फिल्म देखने चलते हैं ।बैंक तो जाना नहीं है ।प्रदर्शन में जा कर क्या करेंगे । 
- मैनेजमेंट और सरकार बहुत स्ट्राँग है । कुछ भी नहीं युनियन के बस का ।
-युनियन तो हड़ताल बस इसलिए करती है कि बता सके युनियन अभी भी है ।
- मै तो नहीं जा रहा हड़ताल पर !
ये और ऐसी ही कई प्रतिक्रिया हो जो कल बैंकों में हड़ताल के बारे में आम बैंकरों की राय है ।
इनसे इतना तो स्पष्ट हो जाता है कि आम बैंकर हड़ताल में जाने का इच्छूक ही नहीं है । जाता है तो भी अनिच्छा से । उसे न युनियन पर भरोसा है और न ही उसके कार्यक्रमों पर । उसे युनियन की जरुरत बस ट्रांसफर , चार्जशीट जैसे मौकों पर लगती है । एक तरह से वह युनियन को मैनेजमेंट और उसके बीच ब्रोकर के रुप में देखता है जो संकुचित दृष्टिकोण है ।
किसी भी संगठन की ताकत उसके सदस्यों का सामुहिक रुप से सबके हित के उद्देश्य की प्राप्ति के लिए संघर्ष करने की इच्छा होती है । अफसोस कि बैंकरों में इस सामुहिकता का हाल फिलहाल घोर अभाव है । वे थके हुए भेड़चाल में शामिल होकर युनियन गतिविधि में शामिल होते हैं । अधिकांश तो औपचारिक रुप से भी कार्यक्रमों में शामिल नहीं होते हैं ।
ऐसे में युनियन का कमजोर होना अचरज की बात नहीं है ।
अगले पोस्ट में जारी रहेगा ‍!
#बैंक_बैंकर युनियन - 1

रविवार, 20 अगस्त 2017

रेल दुर्घटना

न दिनों रेल दुर्घटना होने पर आतंकवादी साजिश की खबर उड़ने लगती है । दुर्घटना के लिए रेल प्रशासन , रेल मंत्रालय आदि को जिम्मेदारी से मुक्त करने के लिए इस तरह की अफवाह उड़ाई जाती है । और लोग मान भी लेते हैं ।
जबकि यह सहज बुद्धि - जो आज के राजनीतिक भक्ति काल में बहुत ही दुर्लभ हो गया है - की बात है कि आतंकवादी आम अपराधियों से अलग होते हैं । वे वारदात के बाद भागने या छूपने के बजाए खुल कर जिम्मेदारी लेते हैं , ताकि ज्यादा आतंक फैले । गौर कीजिए कई आतंकवादी संगठन वारदात के बाद वीडियो , मैसेज आदि खुद ही जिम्मेदारी लेते हुए प्रसारित करवाते हैं ।भाजपा सरकार में रेल दुर्घटना के बाद जिस तरह हर बार आतंकी साजिश सुंघी जाती है , पता तो चले वे कौन से आतंकी है । सिर्फ पाकिस्तान कह देने से तो काम नहीं चलता ।
स्पष्ट है कि आतंकी साजिश महज शिगूफा है । कोई साजिश है तो वह है रेल को बर्बाद कर उसके निजीकरण का मार्ग प्रशस्त करना । जो कि पीपीपी के नाम पर रेलवे स्टेशनों की निलामी , अधिकाँश काम भी ठेके पर करवाने आदि के रुप में जारी है और इसमें तेजी लाई जा रही है ।
इसके पीछे तो वही सरकार है जिन पर इन्हें चलाने की जिम्मेदारी है ।

बुधवार, 16 अगस्त 2017

धर्मनिरपेक्ष राज्य की आवश्यकता

दो खबरों पर गौर कीजिए !
- पहला गोरखपुर में मेडिकल में प्रशासन और प्रबंधन की असफलता की वजह से कई बच्चे मौत के ग्रास बन गये ।भले ही लीपा पोती और बलि का बकरा ढूँढ लिया गया हो , भले ही भाजपा सरकार में इस्तीफे न होते हों , तंत्र की विफलता नंगी सामने खड़ी है । 
-दूसरे ठीक इसी वक्त प्रशासनिक तंत्र को 'जन्माष्टमि ' भव्य स्तर पर मनाने के लिए निर्देशित किया गया । हालाँकि यह त्योहार लोग अपने मोहल्ले स्तर पर ही सामुदायिक सहयोग से मना लेते हैं । धूमधाम भी रहती है । लेकिन इसमें प्रशासन का  "लॉ एंड ऑर्डर " बनाए रखने के अलावा किसी और हस्तक्षेप की जरुरत नहीं है ।
यहाँ जनसामान्य को यह समझना चाहिए कि धर्म और उत्सव वे अपने संसाधन और सहयोग से मना सकते हैं । लेकिन सबके लिए स्वास्थ्य , शिक्षा, देशव्यापी परिवहन आदि के लिए जिस स्तर के संसाधन की जरुरत पड़ती है , वह सरकार ही कर सकती है । व्यक्तिगत स्तर पर यह संभव नहीं और पूँजीपति वर्ग की प्राथमिकता मुनाफा होगी , सबके लिए स्वास्थ्य , शिक्षा नहीं ।
अभी भारत की बहुसंख्यक जनता खासतौर पर बहुजन हिंदू राष्ट्र के लिए लहालोट हो रही है , और शिक्षा , स्वास्थ्य , सार्वजनिक परिवहन आदि मुद्दे हाशिए पर चले गए हैं , यह स्थीति जनता के लिए ही घातक है । सरकार के लिए यह आसान है कि वह जन्माष्टमि का लड्डू खिला दे और शिक्षा आदि पर अंडा थमा दे । जनता के लिए आवश्यक और लाभदायक है धर्मनिरपेक्ष राज्य , न कि धार्मिक राज्य -चाहे वह कोई भी धर्म हो ! धर्म के पालन के लिए सरकार पर निर्भरता जरुरी नहीं है ।

बुधवार, 26 जुलाई 2017

नीतीश के इस्तिफे पर प्रतिक्रिया

जब नीतीश ने भाजपा के साथ गठबंधन तोड़ा था , तब भी मेरी प्रतिक्रिया यही थी जो आज नीतीश के इस्तीफा देने पर है - ये क्या कर दिया !
मेरी चिंता का विषय न नीतीश और जद यू है , न ही लालू और राजद , न ही काँग्रेस या भाजपा !मेरी चिंता यह है कि बिहार में एक स्थिर सरकार रहे और सामाजिक न्याय के साथ विकास हो ।
वर्तमान सरकार में नीतीश कुमार को यह मौका था । भले ही नीतीश कुमार इसे नैतिकता के आधार पर इस्तिफा मनवाना चाहें , यह व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा का नतीजा है । हालाँकि राजनीति में न महत्वाकांक्षा गलत है , न अवसरवादिता , लेकिन यह तो पूछना ही पड़ेगा कि प्रयोजन क्या है !
प्रधानमंत्री बनने की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा तो भाजपा के साथ पूरी नहीं हो सकती । वर्तमान सरकार मेें अपने कद और पकड़ को बढ़ाने के लिए इस्तीफा देना बहुत बड़ा जूआ है । नीतीश लालू के साथ दूबारा जूड़ते हैं या भाजपा से , दोनों हालात में वे अविश्सवनीय रहेंगे और तभी तक उन्हें जरुरी माना जाएगा, जब तक भाजपा या राजद अकेले दम पर सरकार बनाने के लिए दाँव न खेले ! जद यू और नीतीश इसके लिए दाँव खेलेगी , इसकी संभावना कम है । उनके पास इस बात का लाभ है कि राजद और भाजपा एक साथ नहीं आ सकते ।कम से कम फिलहाल तो बिल्कुल नहीं ।
इसके साथ ही तीसरे मोर्चे की कल्पना या कांग्रेस के नेतृत्व में संयूक्त विपक्ष - जो पहले भी प्लानिंग के स्तर पर ही था और दूर की संभावना लग रही थी और भी असंभव हो गयी है ।
भाजपा समर्थक इसे एक विरोधी और संभावित खतरे के ढह जाने के रुप में देख रहे हैं , जिसके लिए वे बिहार सरकार के गठन से पहले भी लगे हुए थे । आश्चर्य नहीं कि खुद मोदी ने ट्विट कर नीतीश क समर्थन किया है ।
बिहार का भविष्य एक बार फिर अनिश्चय में है ।