बुधवार, 15 फ़रवरी 2017

मायावती स्त्री विमर्श का हिस्सा क्यों नहीं है ?

मायावती स्त्री विमर्श का हिस्सा क्यों नहीं है ?
उत्तर प्रदेश में चुनाव चल रहे हैं । बसपा प्रमुख मायावती एक महिला है , साथ में दलित भी हैं, सत्ता की प्रमुख दावेदारों में से है । यह तय है कि बसपा स्वयं या गठबंधन कर सरकार बनाती है तो वह मुख्यमंत्री होंगी । सख्त प्रशासन के लिए भी जानी जाती हैं । हालाँकि उन पर भ्रष्टाचार का भी आरोप है ।
सवाल है कि स्त्री मुद्दों पर लिखने वाली महिलाएँ /पुरुष उनके समर्थन में क्यों नहीं हैं ।
मुझे याद आता है कि हाल में अमेरिका में चुनाव में हिलेरी क्लिंटन के न जीतने पर कई महिलाओं ने रोष जताया था । अफसोस जताया था कि ग्लास सीलिंग भेदी न गई और एक महिला दुनिया के सबसे ताकतवर देश की प्रमुख न बन पाई ।
याद आता है कि जब विदेशी मूल के मुद्दे पर सोनिया गाँधी भारत की प्रधानमंत्री न बन पाईँ तो अखबारों में सवर्ण महिलाओं ने लेख लिखे कि एक महिला भारत का प्रधानमंत्री नहीं बन सकी और रोष जताया ।
ममता बनर्जी , जयललिता आदि का जिक्र महिला नेता के रुप में होता है । गौरतलब है कि सभी सवर्ण हैं । उल्लेखित दोनों नेता ब्राह्मण हैं ।
स्पष्ट है कि मायावती की दलित पहचान हावी है उनके महिला होने पर । स्त्री के नाम पर सवर्ण महिलाएँ काबिज हैं सारे स्तरी विमर्श पर , संबंधित संस्थानों में , चर्चा/लेखन के स्पेस में , जिनमें एक बड़े राज्य की मुख्यमंत्री रह चुकी महिला तक को स्पेस नहीं मिलता है । वे अमेरिकी चुनाव लड़ रही महिला को समर्थन दे सकती हैं , विदेशी मूल की महिला को समर्थन दे सकती हैं , लेकिन अपने देश की सशक्त महिला जो नेता और प्रशासक के रुप मे अपना क्षमता साबित कर चुकी हैं को समर्थन देना तो दूर चर्चा तक नहीं करेंगी, क्योंकि वे दलित हैं
यह बार बार स्पष्ट होता रहा है कि भारत में स्त्री विमर्श एलिट, शहरी , धनाढ्य , सवर्ण महिलाओं तक सीमित हैं । सवर्ण महिलाएँ महिला मुद्दों के नाम पर सवर्ण वर्चस्व को संरक्षित करने का टूल हैं । वरना क्या कारण है कि मायावती जैसी महिला का महिला विमर्श में स्थान नहीं है , आम बहुजन महिला की बात क्या करें ?
स्त्री मुद्दों पर बात करते हुए बहुजन स्त्रियों का समावेश होना ही चाहिए ।



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