सोमवार, 8 फ़रवरी 2016

अपने से शायर - निदा फाजली

फेसबुक पर खबर है कि निदा फाजली नहीं रहे !निदा फाज़ली एक अपने से शायर थे जिनहे पढ़ना और किनकी गजलें सुनना बेहद पसंद था !कई गजलें थी जिन्हे पढ़के लगा कि बस वे मेरे दिल की ही बात कह रहे हैं !कई शेर ऐसेजो बुरे वक्त मे हौसला देते है !शायर कभी नहीं मरते वे हमेशा जिंदा रहते हैं अपने नज़मों, शेरों में , हमारे दिलों में !
कुछ शेर ( स्मृति से )
बेनाम सा यह दर्द ठहर क्यों नहीं जाता
जो बीत चुका है वह गुजर क्यों नहीं जाता !
-----------
घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूं कर लें
किसी रोते हुये बच्चे को हँसाया जाये
------------------------------------------
अपना ग़म लेकर कहीं और न जाया जाये
घर में बिखरी हुई चीजों को सजाया जाये
-------------------------------------------------------------
जब किसी से कोई गिला रखना
सामने अपने आईना रखना
---------------------------------------------------------
समझते थे फिर भी नहीं रखी दूरियां हमने
चिरागों को जलाने में जला ली उँगलियाँ हमने
------------------------------------------------------
आदमी बनना आसाँ न था
शेख जी पारसा हो गए
-----------------------------------------------------------------------

मंगलवार, 2 फ़रवरी 2016

सफलता के मानदंड अलग अलग होते हैं !

सफलता के मानदंड अलग अलग होते हैं !आप किसी भी मुकाम पर रहे कुछ लोगों के लिए आप सफल होते और कुछ लोगों की नज़र मे असफल !आप खुद की नज़र मे भी कभी खुद को सफल पाते हैं और कभी असफल !यह इस बात पर निर्भर करता है कि आपकी खुद से अपेक्षाएँ क्या है और आपकी प्राथमिकताएँ क्या हैं !
निजी संदर्भ में देखूँ तो मैं कई लोगों की नज़र मे सफल हूँ क्यों एक सरकारी बैंक में वरिष्ठ प्रबन्धक हूँ !लेकिन खुद की नज़र में बैंक की नौकरी करना मेरी असफलता है !मैं लेक्चरर होना चाहता था , पत्रकार होना चाहता था, पुस्तकालय की नौकरी चाहता था आदि आदि , लेकिन बैंक की नौकरी के बारे में कभी सोचा भी नहीं था ! लेकिन अंत मे मरता क्या न करता के अंदाज में बैंक की नौकरी कर रहा हूँ !
मेरे लिए किसी को यह समझाना मुश्किल होता है आखिर बैंक की नौकरी में खराबी क्या है ! सच मे ऐसी कोई खराब नौकरी नहीं है ! सच पूछिए तो समाज के संदर्भ में बैंकर की उपयोगिता साहित्यकार से ज्यादा है !रोजी रोटी तो इसी से चल रही है !इसी वजह से बर्दाश्त करता हूँ ! पसंद तो नहीं करता और गर्व की वजह तो नहीं ही मानता !
दूसरा उदाहरण दूँ !फेसबुक पोस्ट के कारण कई लोग तारीफ करते हैं (कई लोग गालियां भी देते हैं उनकी बात फिर कभी !) और मेरी एक पहचान बनी है !लेकिन हकीकत है कि मैं पोस्ट इसलिए लिखता हूँ क्योंकि और कुछ नहीं लिख सकता ! मैं कहानियाँ लिखना पसंद करता हूँ लेकिन कभी पूरी नहीं कर पाता  !ललित निबंध और लेख लिखना पसंद करता हूँ लेकिन उतना समय , श्रम और धैर्य नहीं दिखा पाता हूँ जितना इसके लिए जरूरी है !कुछ नहीं से कुछ बेहतर मानकर फेसबुक पर पोस्ट डालता हूँ ! जिन पोस्टों को मेरी सफलता माना जाता है वे मेरी नाकामी की उपज है !
खैर !खुद को सांत्वना देने के लिए मान लेना चाहिए कि शायद मैं जो हूँ उससे इतर कुछ होने की संभावना और क्षमता मुझमें नहीं थी !बहाने चाहे कितने भी हो , हैं तो बस आखिरकार -बहाने !