शनिवार, 22 अप्रैल 2017

जातिगत पेशों का आधुनिकीकरण -

जातिगत पेशों का आधुनिकीकरण
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एक लॉंड्री स्टार्टअप है - वाशअप । दूसरी है - डूरमिंट !इनका काम है संगठित रुप में कपड़े धूलाई का । मने परंपरा से जिसे एक जाति विशेष - धोबी - पेशे के रुप में करती है । हालाँकि अब भी ये लोग कपड़े धोने , प्रेस करने का काम करते हैं । जो लोग थोड़ी पूँजी लगा सकते हैं वे कपड़ा व्यवसायी लोगों के कपड़े का थान आदि धूलाई और प्रेस मशीन से प्रेस करके देते हैं ।
लेकिन ये स्टार्टअप कॉरपोरेट होटलों , अस्पतालों आदि को धूलाई की सेवा देते हैं । हालाँकि इनमें किन लोगों की नौकरी दी जाती है , इसकी जातिवर गणना उपलब्ध नहीं है । यदि जाति विशेष को लोगों को नहीं लिया जा रहा है तो , यह तय है कि इस व्यवसाय के संगठनीकरण से ज्यादा फायदा कंपनी और निवेशकों को होगा । छोटे स्तर पर करने वालों की तरह वे मालिक और कर्मी दोनों नहीं होंगे ।
यानी व्यवसाय के आधूनिकीरण का फायदा सवर्ण और धनी वर्ग उठाएँगे और जाति विशेष के लोगों के लिए दूसरे व्यवसाय के लिए रास्ता नहीं होगा और यह भी बंद हो जाएगा ।
मेरा मानना है कि एक ऐसा प्लेटफार्म/बिजनेस मॉडल विकसित किया जाए कि जिन जातिगत पेशों के- सिर्फ लाँड्री ही नहीं - आधुनिकीकरण करने की संभावना हो और आज के समय में भी आवश्यक हों , उसके लिए जाति विशेष को सहयोग किया जा सके । हाँ , धन और शिक्षा के बाद उन्हें दूसरे क्षेत्रों में जाने की सुविधा होनी चाहिए ।और उनके श्रम का सम्मान होना चाहिए ।
यह एक चुनौतीपुर्ण कार्य है , लेकिन परंपरागत पेशों से जुड़े बहुजनों के लिए सम्मानजनक आजीविका हेतू आवश्यक है ।

#मेरे_बहुजन_मित्रों सवर्ण धूर्तता और दोगलापन नोट कीजिए ।

अक्सर सवर्ण किसी बहुजन के प्रति चैलेंज उछालते पाये जाते हैं कि दम है तो बिना रिजर्वेशन के नौकरी लेकर दिखाओ । हमारा - यानि सवर्णों का - हक मार रहे हो ।लेकिन यही बहुजन लोग जब जेनरल /अनारक्षित वर्ग से चुने जाते हैं तो उन्हें फिर शिकायत होती है कि बहुजन लोग अनारक्षित वर्ग में चुने जाकर किसी सवर्ण का सीट मार रहे हैं ।
यानि इनके हिसाब से चित भी मेरी , पट भी मेरी । आरक्षित वर्ग से चुने जाएँ तब भी इनका "हक" जाता है और अनारक्षित वर्ग से चुने जाते हैं तब भी इनका "हक " जाता है । दरअसल वे सभी नौकरियों और संसाधनों पर अपना पैदायशी "हक" समझते हैं ।
आरक्षित सीट कई बार खाली रखी जाती है कि "काबिल "लोग नहीं मिले, वहीं दूसरी ओर तरह तरह के नियमों का जाल बना कर किसी बहुजन को अनारक्षित वर्ग से चुने जाने में भी अडँगे लगाएँगे । कि आरक्षित वर्ग के लोग आरक्षित वर्ग में ही चुने जाएँगे ।
#मेरे_बहुजन_मित्रों सवर्ण धूर्तता और दोगलापन नोट कीजिए ।

शुक्रवार, 21 अप्रैल 2017

शिक्षा और छात्रों के प्रति आपराधिक असंवेदनशीलता क्यों ?

दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय में छात्र भूख हड़ताल पर हैं । वजह - कोर्स की मान्यता है जिसके लिए विश्वविद्यालय ने न केवल नामांकन लिया , बल्कि कोर्स भी करवाया ।
सवाल है कि क्या कोर्स की मान्यता सुनिश्चित करना छात्र का काम है ? वह भी एक केंद्रीय विश्वविद्यालय में नामांकन लेते हुए ? क्यों नहीं विश्वविद्यालय प्रशासन को धोखाधड़ी का जिम्मेदार मानकर कार्यवाई की जाती है ? और क्यों यूजीसी छात्रों को भूख हड़ताल के बावजूद राहत के लिए कोई कदम नहीं उठा रही है ?
जो काम सामान्य रुप से विश्वविद्यालय और नियामक संस्था - यूजीसी और अन्य - करना चाहिए ,उनके स्तर पर कमी या लापरवाही का दुष्परिणाम छात्र क्यों भूगते !?
सिर्फ इस विश्वविद्यालय में ही नहीं , अन्य जगहों पर भी कई तरह से छात्र संघर्षरत हैं । पंजाब में फीस वृद्धि का विरोध कर रहे छात्रों के खिलाफ देशद्रोह का चार्जऔर बर्बर पिटाई हुई ।कई जगह 24 घंटे पुस्तकालय खुलने के लिए छात्रों का प्रदर्शन हुआ । हॉस्टल की सुविधा के लिए भूख हड़ताल हो रही है । यह ऐसे मुद्दे हैं जिसे प्रशासन और सरकार को स्वत: संज्ञान लेते हुए काम करना चाहिए । लेकिन यहाँ आंदोलन /प्रदर्शन करने के बाद भी सुनवाई नहीं हो रही है ।
क्या अपनी भावी पीढ़ी और शिक्षा के लिए प्रशासन एकदम संवेदना शून्य हो गया है ? और चिंता की बात यह है कि एक समाज और देश के रुप में यह हमारी चिंता का विषय भी नहीं है !
यह हमारे युवा पीढ़ी के प्रति अपराध है !

मेरे बहुजन मित्रों - सीरिज सिर्फ बहुजनों के लिए हैै ।

स्पष्ट कर दूँ
- जिस पोस्ट पर मैं #मेरे बहुजन मित्रों लिखता हूँ , वह एक सीरिज है जो मैं बहुजनों के लिए उन्हें ध्यान में रखते हुए लिखता हूँ ।
उस पोस्ट पर मैं किसी सवर्ण से संवाद करने का इच्छूक नहीं हूँ ।ऐसा इसलिए कि उनकी आलोचना और आपत्तियाँ अपेक्षित ही हैं । सवाल
वही घिसे पिटे
- आरक्षण क्यों लेते हो ?
- फेसबुक पर लिखकर क्या होगा ?
- ये करो, वो करो !
- जमाना बदल गया है ।
-जातिवाद क्यों फैलाते हो ?
- मैं तो जाति नहीं मानता ?
आदि आदि !
इन सवालों को वे इस ठसक से पूछतें हैं गोया मैं उनके घर का नौकर हूँ । और जवाब देना मेरी मजबुरी ! वैसे नौकर के भी कुछ अधिकार होते हैं ।
इन सवालों के जवाब दिये जा सकते हैं , देता भी हूँ लेकिन मेरा अनुभव है कि वे सब समझ कर न समझने की नौटंकी करते हैं जिसे मैं उनकी धूर्तता मानता हूँ ।
दूसरे उन्हें समझाने से ज्यादा जरुरी मैं बहुजनों को समझाना , जागरुक करना समझता हूँ । और यह मेरा छोटा सा प्रयास है ।
किसी सवर्ण से दोस्ती , संबंध से एतराज नहीं लेकिन जाति के मसले पर कोई समझौता नहीं । वे इस सच के साथ संबंध - चाहे फेसबुक पर या असल दूनिया में - रखें तो ठीक, वरना नमस्कार !!अलविदा!

बुधवार, 19 अप्रैल 2017

तेज बहादूर यादव के निलंबन पर प्रतिक्रिया

बीएसएफ के जवान तेजबहादूर यादव बर्खास्त कर दिये गये । उनका अपराध यह था कि उन्होनें खराब खाने की शिकायत सोशल मीडिया पर वायरल कर दी । उन्हें अनुशासनहीनता को दोषी पाया गया । बीएसएफ की प्रतिक्रिया भले ही दुखद है लेकिन यही अपेक्षित था । कोई भी संस्थान और उसमें जड़ जमाए बैठाए घाघ लोग इसी तरह नियमों की आड़ में गलत कामों का विरोध करने वालों को ठिकाने लगाते हैं ।
लेकिन सवाल है कि क्या संस्थान ने इस बात की जाँच करवाई कि घटिया खाना दिये जाने के लिए कौन दोषी है । भोजन के लिए जारी मद किन कामों में खर्च किये जा रहे हैं । क्या तयशुदा रकम में अच्छा भोजन नहीं दिया जा सकता है । यदि नहीं तो बजट बढ़ाने के लिए क्या कदम उठाए गए ।
जवाबदेही तो संस्थान ( यहाँ बीएसएफ ) की बनती है कि क्यों नहीं सैनिक की पूर्व शिकायतों को गंभीरता से लिया और अपेक्षित सुधार किया । अगर ऐसा होता तो तेजबहादुर को सोशल मीडिया में जाने का डेस्परेट कदम नहीं उठाना पड़ता ।
वैसे यह भी गौर तलब है कि इस समय केंद्र में कथित राष्ट्रवादी सरकार है जो सेना का अतिशय महिमामंडन करती है और सेना का इस्तेमाल नागरिक मुद्दों को दबाने के लिए इमोशनल ब्लैकमेल के लिए करती है - सीमा पर जवान मर रहे हैं और तुम लाइन में नहीं लग सकते ,देशद्रोही । इनके लिए सेना , देश , गाय आदि भावात्मक शोषण करने और जनहितके मुद्दे दबाने के लिए हैं । वरना सेना क्या मजदूर को भी सही भोजन की व्यवस्था नियोजकों को करनी चाहिए । दूसरे किसी गड़बड़ी को उजागर करने वालों को लिए व्हिसल ब्लोअर सुरक्षा योजना होनी चाहिए । यहाँ उल्टे दंडित किया जा रहा है ।
चूँकि जवान यादव है , इसलिए जाति की भूमिका से भी इन्कार नहीं किया जा सकता है । पता लगाना चाहिए कि मामले की जाँच करने वाले , निर्णय देने वाले के सरनेम क्या हैं । मुझे हैरत न होगी यदि सारे के सारे जनेऊधारी निकले !
जरुरी है कि तेज प्रताप के साथ मजबुती से खड़े रहने की ,बीएसएफ और सरकार पर दवाब डाल कर तेज प्रताप का उत्पीड़न रुकवाने की एवं बीएसएफ में बोजन संबंधी या अन्य अनियमितताएँ दूर करवाने की ।

मंगलवार, 18 अप्रैल 2017

सोनू निगम के ट्वीट पर प्रतिक्रिया


आज के दौर में संवाद करना किस हद तक मुश्किल हो गया है , हम किस कदर बँट गये हैं और किस तरह एक सही मुद्दा गलत ढंग से चर्चा का विषय बनता है और विवाद में असल मुद्दा गायब हो जाता है , इसका एक सटीक उदाहरण है - सोनू निगम द्वारा लाउड स्पीकरों के संबंध में ट्वीट और उसके बाद होने वाली परिचर्चा !
कुछ लोगों ने सोनू निगम पर व्यक्तिगत हमले चालू कर दिये कि वे आजकल बेरोजगार चल रहे हैं और चर्चा में आने के लिए बयान दे करहे हैं या जगराते में गाने वाले भजन जिनका इस्तेमाल भक्ति के लिेए कम और दिखावे के लिए ज्यादा होता है , उन्होंने भी गाये हैं । पहली बात कि बात के साथ कहने वाला भी महत्वपुर्ण है । उसका व्यक्तित्व भी मतलब निकालने में सहायक होता है । लेकिन उनकी व्यक्ति पर इतना फोकस भी ठीक नहीं कि बात ही गुम हो जाए ।उनके बोलने के तमाम वजहें हो सकती है , लेकिन इससे उनकी बात पुरी तरह गलत साबित नहीं होती है ।
इस समय की विडंबना देखिए कि इन दिनों कोई साधारण सा वक्तव्य भी बिना बैलेंस बनाए नहीं दे सकता है । अजान पर बोला है तो जगराता भी बोलना पड़ेगा । ऐसा नहीं है कि जगराते पर नहीं बोला जा सकता या अजान पर नहीं बोला जाए , लेकिन बैलेंस की जरुरत दुखदायी हद तक बढ़ गयी है कि लोग अब बात भी नहीं कर रहे हैं । अब दोनों अलग अलग है । अजान पाँच मिनट के लिए होता है और रोजाना होता है , इसलिए आदमी को आदत हो जाती है । जैसे रेलवे स्टेशन के पास जिनके घर होते हैं उन्हें रेल गुजरने की आवाज की आदत हो जाती है । बाकी पाँच मिनट में ज्यादा नुकसान नहीं होता है । आरती से भी कोई प्राॉब्लम नहीं है । नास्तिक होने के बावजूद अनूप जलोटा , जगजीत सिंह , प्रदीप के भजन सुने हैं और अच्छे भी लगते हैं ।भक्ति काव्य पढ़ा है और अच्छा भी लगता है भले ही भक्ति भाव से नहीं पढ़ता । लेकिन ये फिल्मी गानों के धून पर फूहड़ बोल वाले भक्ति संगीत में भक्ति कहाँ है ये तो भक्त ही बताएँगे । दस पंद्रह मिनट को लिए बर्दाश्त भी कर लें । ये रात भर चलने वाला जगराता बर्दाश्त के बाहर है । नौ दिन वाला जागरण तो जानलेवा है ।
इस वक्तव्य को आसानी से हिंदू विरोधी और मुस्लिम परस्त बताया जा सकता है । लेकिन फैक्ट तो फैक्ट है ।
अगर मामला धर्म विरोधी लग रहा है तो स्पष्ट कर दूँ कि मुद्दा जागरण या अजान नहीं लाउडस्पीकर है । अजान , जगराते के साथ हनी सिंह के गाने भी भारी भरकम स्पीकर पर सुनने वाले को भी शामिल कर लीजिए । राजनीति पार्टियों के कार्यक्रम को भी शामिल कर लीजिए । और ध्यान दीजिए कि लाउडस्पीकर लगाने वाले अपने लोगों को ही परेशान करते हैं । जगराता हिंदू बहूल इलाकों में होता है और परेशान भी हिंदू ही होते हैं । मस्जिद भी मुस्लिम बहुल इलाकों में होते हैं । पार्टियाँ भी कार्यकर्म अपने इलाके में ही करते हैं ।
यह भी गौर करने वाली बात है कि अपनी मनस्थीति /परिस्थीति पर भी प्रतिक्रिया निर्भर करता है । घर में शादी - मान लीजिए का माहौल है - तो पड़ोसी देर रात तक बजने वाले गाने पसंद भी करते हैं और न भी आए तो बर्दाश्त करते हैं ।यही रोज बजाने लगें तो टोकने पहूँच जाएँगे ।
वैसे कानून तो है पहले से ही है । जब तक लोग खुद ही अपेक्षित संवेदनशीलता और जिम्मेदारी महसूस नहीं करते , समस्या हल नहीं होने वाली । वैसे इन दिनों कुछ भी बोलने वालों - चाहे वे किसी भी खेमे के हैं -की इस तरह छीछालेदारी हो रही है या ट्रॉल हो रहे हैं कि कोई अमन पसंद आदमी या औरत किसी भी मुद्दे पर नहीं बोलेगा ।
वह एक और बड़ी समस्या होगी ।

स्नैपचैट के सीईओ के भारत को गरीब देश कहने पर प्रतिक्रिया

खबर है कि स्नैपचैट के संस्थापक ने भारत को गरीब कह कर इसे बिजनेस के लिहाज से अपनी प्राथमिकता नहीं माना । इसके विरोध में भारत में तीव्र प्रतिक्रिया दी है ।
हालाँकि आँकड़ों के हिसाब से संपन्नता और विकास के मानदंडों पर भारत गरीब और पिछड़ा ही ठहरता है । विकसित देशों की बात तो जाने हीं दें - कई पैमानों पर भारत श्रीलंका और बांग्लादेश से भी पीछे ठहरते हैं ।इसलिए भारत एक गरीब देश है - यह एक तथ्य है जिसे तभी बदला जा सकता है जब विकास के मानदंडों पर हम बेहतर प्रदर्शन करें । न कि कहने वाले की बोलती बंद करके !
हालाँकि गरीब को गरीब कहना अपमानजनक लगता है ।लेकिन यह भी देखना होगा कि किस संदर्भ में बात कही गयी है । किस अँदाज में कही गयी है । बोलते समय हाव भाव क्या थे , तब समझ में आएगा कि वे महज एक फैक्ट बता रहे हैं या मजाक बना रहे हैं । फिर भी खबरों को पढ़ने पर पता लगता है कि वे बिजनेस की रणनीति में भारत को अपनी प्राथमिकता में नहीं रखते । तो अपमानित करने वाली बात सही नहीं लगती है ।
हालाँकि जिस तरह स्नैपचैट को डाउनग्रेड करने , यहाँ तक की उनकी मंगेतर तक को निशाना बनाने की बात है , यह एक असंयत प्रतिक्रिया है ।यह भवावेश की प्रतिक्रिया है , फेस सेविंग हरकत है ।
वैसे किसी भी एप्प के लिए भारत अपनी जनसंख्या के कारण ही बहुत बड़ा बाजार है । यदि उन्हें भारत सही देश नहीं लगता है तो फेसबुक आदि से सबक लेना चाहिए ।
फिर भी यदि उनकी रणनीति भारत पर फोकस न करने की है तो यही सही । वे अपने लिए एक बड़ा बाजार खुद ही बंद कर रहे हैं ।
स्नैपचैट के सीईओ के भारत को गरीब देश कहने पर प्रतिक्रिया

मेरे बहुजन मित्रों - सवर्णों की घृणा आरक्षण के कारण नहीं जाति के कारण है ।

कोई बहुजन जब किसी मुद्दे पर राय रखता है या कोई अन्य परिपेक्ष्य में विरोध होता है तो व्यक्तिगत हमला के लिए सवर्ण जो जूमला इस्तेमाल करते हैं , वह है - आरक्षण के दम पर सवर्ण का हक मार के नौकरी ले लिया है और बकवास कर रहा है ।
गौर कीजिए कि बंदा चूँकि सवर्ण है , इसलिए नौकरी , संसाधनों और अवसरों पर अपना मालिकाना हक समझता है । आरक्षण इन्हें न समझ आया है और न आएगा ।
दूसर जिन लोगों ने आरक्षण का लाभ न लिया है उनसे इनका व्यवहार कैसा है - नोट कीजिए । वे साधारण सौजन्य दिखाना जरुरी नहीं समझेंगे बहुजन बंदा यदि आर्थिक रुप से कमजोर हुआ या पलटवार करने की स्थीति में नहीं है तब इन सवर्णों की जातिगत घृणा चरम पर होती है ।
यह घृणा किसी आरक्षण की देन नहीं है । जाति की देन है । आरक्षण नहीं रहता तो भी और आरक्षण खत्म हो जाएगा तब भी वे यही घृणा परोसेंगे ।
कोई दलित अपनी शादी में घोड़ी पर चढ़ता है तो उसे रोकने के लिए हिंसा पर उतारु हो जाते हैं , उसकी वजह कोई आरक्षण नहीं है ।
कोई पासवान होटल खोल लिया तो - मने आरक्षण का फायदा नहीं लिया तब भी उन्हें - अब "ये लोग " भी होटल चलाने लगे का कमेंट पास करते हुए देख सुन सकते हैं ।
मेरे बहुजन मित्रों ! ध्यान दें कि आरक्षण को लेकर डिफेंसिव न हों । वे आरक्षण के कारण नहीं जाति के कारण घृणा करते हैं । कोई सफाई न दें ! सीधा बाहर का रास्ता दिखाएँ !
#मेरे_बहुजन_मित्रों

सोमवार, 17 अप्रैल 2017

बदलाव के लिए अपने प्रभाव क्षेत्र में काम करें

- कट्टर हिंदूओं को मुस्लिम महिलाओं की फिक्र हो रही है । उन्हें हिंदू महिलाओं की दहेज हत्या , ऑनर कीलिंग आदि से प्राब्लम नहीं है ।
- कट्टर सवर्णों को गरीब दलितों की फिक्र है , उन्हें अपने समाज के जीतिगत दंभ से समस्या नहीं है ।
- कट्टर राष्ट्रवादी को पाकिस्तान /बांग्लादेश के लेखक/ पत्रकार की चिंता है , लेकिन अपने देश के लेखक /पत्रकार की सुरक्षा की चिंता नहीं है ।
मने यह कि हर कोई वहाँ बोलेगा जहाँ मामला दूरदराज का है और वह लिखने के अलावा कुछ नहीं कर सकता है । यहाँ लिखने और आवाज उठाने की महत्ता को कम नहीं आँका जा रहा है । बल्कि इस तथ्य को रेखांकित किया जा रहा है कि कई बार दूर के मामले पर हल्ला इस लिए उठाया जाता है कि उस मामले में कुछ किया नहीं जा सकता है या कुछ करना न पड़े ।या दूसरों को काला साबित करके खुद को तसल्ली दी जा सके ।या किसी हिडन एजेंडे जो इतना भी छूपा नहीं होता - के तहत मामले को तूल दी जाती है ताकि पोलिटिकल या अन्य माइलेज लिया जा सके ।
बदलाव के लिए जरुरी है कि हम उन मुद्दों पर हाथ डालें जो हमारे आसपास - समाज, कार्यालय , परिवार आदि से संबद्ध रखते हैं । जिसके बारे में हमारी राय न केवल मायने रखती है , बल्कि वहाँ हम या तो निर्णय लेने की स्थीति में होते हैं या निर्णय को प्रभावित कर सकते हैं । वे कार्य कर सकते हैं जो हमारे प्रभाव क्षेत्र में आते हैं ।

विभिन्न रक्षा दल

गौ रक्षा दल की अपार सफलता के बाद अन्य रक्षा दलों के आने की की संभावना है - जिनमें प्रमुख हैं
- बकरा रक्षा दल - बकरा सती के पिता और शिव के ससूर दक्ष के रुप हैं । इसलिए उनकी रक्षा होनी चाहिए और मटन पर बैन लगना चाहिए ।
- मछली रक्षा दल - मछली विष्णु के मीन अवतार के रुप है । इसलिए मछली की रक्षा होनी चाहिए और मछली मारने पर रोक लगनी चाहिए ।
मूषक रक्षा दल - चूहा गणेश की सवारी है । इसलिए पूजनीय है । दल चूहा मार दवाओं की बिक्री का विरोध करेगी । चूहे फसल , समान नष्ट करते हैं तो करते रहें ,। धार्मिक भावना आहत नहीं होनी चाहिए ।
कूत्ता रक्षा दल - कुत्ता भैरो बाबा की सवारी है । इनकी भी रक्षा होनी चाहिए ।
बंदर रक्षा दल - बंदर हनुमान का रुप हैं । इनकी भी रक्षा होनी चाहिए ।
आदि आदि !
इन सब के बाद शहर में आदमी का रहना मुहाल हो जाएगा । इसलिए शहर जानवरों के लिए खाली कर मनुष्यों को जंगल में चले जाना चाहिए ।

मेरे बहुजन मित्रोें - कोई सफाई देने की जरुरत नहीं है !

यह महज इत्तिफाक नहीं कि अंबेडकर जयंति के समय ऐसे मैसेज और बयानों की बाढ़ आ जाती है , जिसमें यह बताया जाता है कि डॉ. अंबेडकर संविधान के निर्माता नहीं हैं । जो यह मान लेते हैं , वे इसे कॉपी पेस्ट साबित कर महत्ता कम करने की कोशिश करते हैं । कोई श्रेय संविधन सभा को देते हैं और अंबेडकर को महज टाइपिस्ट बताते हैं । हालाँकि डॉ अंबेडकर इन सब से ऊपर हैं और समय के साथ उनके योगदान और महत्व को उनके विरोधी भी मान रहे हैं ।
फिर भी यहाँ उस सवर्ण मानसिकता और धूर्तता को उजागर करना जरुरी है कि उनके लिए कोई दलित काबिल नहीं हो सकता है । यदि किसी ने काबिलेतारिफ काम किया है तो वह महत्वपुर्ण नहीं है । यदि महत्वपुर्ण है तो उसके लिए कोई सवर्ण का सहयोग और आशीर्वाद से हुआ है । चाहे अंबेडकर हों , कबीर हों या ऑफिस का कोई आम सहकर्मी ! सवर्ण प्रोपगैंडा इसी तरह चलता है ।
कबीर को किसी ब्राह्मण विधवा की संतान बता दिया जाता है । अंबेडकर की शिक्षा में सवर्ण के यागदान पर बात कर पुरी शोषणकारी समाज व्यवस्था पर पर्दा डालने की कोशीश करेंगे । किसी बहुजन सहकर्मी के मामूली गलती को - कोटे वाला है न !- कहकर मजाक उडाएँगे और खुद और अपनी बिरादरी वालों की बड़ी बड़ी गलतियों पर - काम करने वाले से ही गलती होती है - कहकर बचाव करेंगे ।
मेरे बहुजन मित्रों !यह ध्यान रखिए कि उनकी आलोचना से हतोत्साहित होने की जरुरत नहीं है । आप अपने शत्रु को खुश नहीं कर सकते हैं । जिन्हें आपके होने से ही एतराज है , उन्हें कोई भी दलील आपके प्रति सौहार्द्यपुर्ण व्यवहार के लिए आश्वस्त नहीं कर सकती है । इसलिए आपकी क्षमता पर संदेह करने वाले , आपत्ति उठाने वाले , आपको कोटे वाला कहकर अपमानित करने वालों को कोई सफाई देने की जरुरत नहीं है । उन्हें उसी समय बाहर का रास्ता दिखाइए ! बोलने वाला वरिष्ठ है तब भी उनको उनकी जगह दिखाइए !
#मेरे_बहुजन_मित्रों

मंगलवार, 11 अप्रैल 2017

हाइवे पर शराब की बिक्री पर रोक पर प्रतिक्रिया

कोर्ट का आदेश आया है कि हाइवे के नजदीक के सभी शराब दुकानें बँद होंगी । इसमें कोई शक नहीं कि ड्रंक ड्राइविंग दुर्घटनाओं का एक बड़ा कारण है , इस पर रोक लगनी चाहिए । लेकिन यह भी सच है कि रात में ट्रक , बस आदि चलाने वाले बिना पैग लगाए - हाालँकि लिमिट में -चलाते नहीं हैं और सुरक्षित भी पहुँचा देते हैं ।
दुर्घटना के शिकार में कितने पिये हुए थे , इसके आँकड़े के बजाए यह देखा जाए कि कितने लोग पीकर चलाते हैं और उनमें कितने दुर्घटना के शिकार होते हैं तो एक भिन्न तस्वीर उभरेगी ।
हालाँकि सरकार कोर्ट के आदेश को निष्प्रभावी करने के लिए जो चोर रास्ते आजमा रही है , वह गलत है । यदि सरकार को विरोध करना है तो कोर्ट में ही चैलेंज करे । सच है कि शराब राजस्व का बड़ा श्रोत है । और शराब पर कोई भी बंदिश कामयाब नहीं होने वाली , बस सीधे रास्ते के बजाए चोर दरवाजे से मिलेगा ।
यहाँ यह भी ध्यान देना चाहिए कि दुर्घटना के अन्य भी कारण हैं जिन पर चर्चा तक नहीं होती है । जैसे खराब सड़कें दुर्घटना का बड़ा कारण है । स्पीड ब्रेकर जिसपर रिफ्लेक्टर भी नहीं लगे होते जो तेजी से आते वाहन को सावघान करे । सड़क पर आवारा घूमते जानवर ! हाईवे पर ज्यादातर जगहों पर रोशनी की भी व्यवस्था नहीं है । हाइवे पर मदद के लिए तुरंत व्यवस्था का अभाव ! आदि ।
सड़क दुर्घटनाओं को कम करने के लिए सभी प्रयास किये जाने चाहिए । सिर्फ शराब की बिक्री हाइवे पर रोकने से समस्या हल नही होने वाली है ।

भारत में मंदिर निर्माण कोई समस्या नहीं है ।

गौर कीजिए
- आस्ट्रेलिया के राष्ट्र प्रमुख भारत आये तो मोदी उन्हें अक्षरधाम मंदिर ले गये । यह मंंदिर हाल के वर्षों में बना है । यानी यह कोई ऐसा मंदिर नहीं है जिसके पीछे सैकड़ों सालों का इतिहास हो जैसे रामेश्वरम है या पुरी है या कामख्या है ।
- अक्षर धाम कोई एकलौता भव्य मंदिर नहीं है जो हाल के वर्षों में बना है । बिड़ला ने पुरे देश में अलग अलग जगहों पर बिड़ला मंदिर बनवाया है जो भव्य है और भक्तों के साथ सैलानियों आदि के भी आकर्षण का केंद्र है । इस्कॉन ने भी कई मंदिर बनाए हैं । कई गावों , कस्बों और छोटे शहरों में भी ढेर सारे मंदिर है जिनका निर्माण , जीर्णोद्धार , नए सीरे से भव्य निर्माण आदि होता ही रहता है ।
- इसके अलावा पेड के नीचे , बाजारों में , सड़क किनारे छोटे छोट मंदिर पूजा स्थल पनपते ही रहते हैं . कई बार तो यह सार्वजनिक जमीन पर कब्जे के लिए होता है और प्रशासन धार्मिक भावना न भड़के - इस डर से आँखे मुँदे रहती है । यह सीधे सीधे हिंदी तुष्टीकरण है . ।
इसी देश में एक राम मंदिर का मुद्दा है जो सालों से चला आ रहा है । भाजपा और संघ ऐसा प्रचारित करती और करवाती है गोया भारत में हिंदू धर्म के पालन पर रोक लगी है और मंदिर नहीं बनने दिया जा रहा है । भारत मे मंदिर निर्माण कोई समस्या नहीं है । उन्होंने जानबूझकर एक विवादित जमीन चुनी है ताकि पोलिटिकल माइलेज लिया जा सके । वरना अयोध्या में भी मंदिर बन सकता था जैसे अक्षरधाम बना , बिड़ला मंदिर बना , इस्कॉन के मंदिर बने , बिना हो हल्ले को और बिना किसी विवाद के । किसी मुसलमान ने आपत्ति नहीं की ।
इस बात को समझिए ।

शुक्रवार, 7 अप्रैल 2017

मुसलमानों को गडढे में गिराने के चक्कर में बहुसंख्यक समुदाय के पैरों तले की जमीन खिसक रही है ।

मनुष्य स्वार्थी होता है । यह स्वाभाविक है कि कोई अपना हित देखता है । अपने हित के लिए दूसरों का नुकसान भी करता है । वे दुष्ट होते हैं । उससे बड़े दुष्ट वे हैं जो दूसरों की पीड़ा में आनंदित होते हैं तब भी जब इससे उनका कोई निजी लाभ लोभ न जुड़ा हो । सबसे बड़े दूष्ट वे होते हैं जो दूसरों को नुकसान पहुँचाते हैं चाहे इसके लिए उन्हें खुद नुकसान उठाना पड़े । उनकी मानसिकता होती है - भले ही अपनी दीवार गिरे , पड़ोसी की भैंस मरनी चाहिए । यह सहज मानवीय बुद्धि नहीं कहा जा सकता है , यह परले दरजे की दुष्टता और मुर्खता है ।
अफसोस है कि इन दिनों बहुसंख्यक समुदाय इसी दुष्ट और मुर्ख मानसिकता से ग्रस्त है । वह अपना नुकसान नहीं देख रहा , बस इस बात से खुश है कि मुल्लों को कष्ट हो रहा है ।
मकतलों पर पाबंदी लगी । वे हड़ताल पर चले गए । माँस मिलना , खाना आदि बंद हो गया , बहुसंख्यक लोगों को भी । लेकिन उन्हें खुशी है कि मुल्लों की दुकान बंद है ।
एंटी रोमियो स्कैवड की कई खबरें आईं जिसमें अपनी मर्जी से समय बिता रहे जोड़ों को प्रताड़ित किया गया , जिनमें बहुसंख्यक लोग भी हैं । लेकिन वे विरोध नहीं करेंगे । बल्कि उन्हें खुशी है कि कथित लव जिहाद करने वाले मुल्लों को सबक मिल रहा है ।
शिक्षण संस्थानों में सीटों में कटौती हुई , सरकारी नौकरियों में 89 % कटौती हुई , रेलवे - सबसे बड़ा सरकारी नियोक्ता - को निजी हाथों में सौंपने की जमीन तैयार की जा रही है - एक प्लेटफार्म दे भी दिया गया निजी हाथों में , नोटबंदी से छोटे दुकानदारों , कामगारों को भयंकर चोट पहुँची है , आदि लेकिन बहुसंख्यक जनता इसीसे खुश है कि सरकार मुल्लों को सबक सिखा रही है ।
बहुसंख्यक समुदाय मुसलमानों के प्रति घृणा और बदले की भावना में इस कदर अँधा हो गया है कि वह यह भी नहीं देख रहा है कि मुसलमानों को गड्ढे में गिराने के चक्कर में खुद उनके पैरों तले की जमीन खिसक रही है ।
इससे पहले की बहुत देर हो जाए , मुसलमानों के लिए नहीं अपने हित में बहुसंख्यक समुदाय को चेत जाना चाहिए ।

मेरे बहुजन मित्रों - दो यादव

दो यादव
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एक हैं दिलीप यादव Dileep Yadav । जो जेएनयू में सीट कटौती के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं । हालाँकि सीट कटौती से हर धर्म , जाति, समुदाय के लोग दुष्प्रभावित होंगे , लेकिन ज्यादा नुकसान उन वंचित तबकों का होगा जिनकी शिक्षा तक पहुँच अभी भी कम है ।
दूसरे हैं वे यादव - जो अलवर में पेहलू खान के हत्या के आरोपी है , जो गौ गुंडे हैं । जो ब्राह्मणवादी प्रोपगैंडे और साजिश के शिकार हैं जिसके प्रभाव में मुसलमानों के खिलाफ लामबंद हैं और किसी हिंदू राष्ट्र के निर्माण में व्यस्त हैं जो मुसलमानों के लिए नुकसानदेह तो है ही , बहुजनों के लिए भी हानिकारक हैं । जहाँ पारंपरिक वर्ण व्यवस्था प्रभावी होगा और बहुजनों की जगह पैताने होगी । सत्ता , शिक्षा , स्वास्थ्य आदि सवर्णों के अधीन होगा और बहुजन उनके मुखापेक्षी ।
यह दुखद है कि बहुजन हिंदूत्व की पालकी ढो रहे हैं जो उनकी दुर्दशा का कारण है और बीते वर्षों में जो सत्ता आदि में मामूली उपस्थिती हासिल हुई है , उसे भी गँवाने पर तुले हैं ।
हिंदू धर्म की रक्षा के लिए कोई मिश्रा , पांडे , दूबे आदि क्यों नहीं जाता ? वे सत्ता , शिक्षा , अर्थतंत्र में अपनी पैठ गहरी करने और बहुजनों को हकालने में व्यस्त हैं ।
पहले भी कहा है , फिर कहता हूँ और बार बार कहूँगा कि संघ और भाजपा का हिंदू राष्ट्र मुसलमानों से ज्यादा बहुजनों के लिए घातक होगा ।
ऐसे में सही रास्ता वह है जो दिलीप यादव ने चुना है - शिक्षा - और अन्य महत्वपुर्ण मसलों पर संघर्ष करना , न कि अलवर के आरोपी जो अपना वर्तमान और भविष्य तबाह कर गाय बचाने निकले हैं । हमारा समर्थन और सहयोग दिलीप यादव और उनके जैसे बहुजनों के लिए है , अलवर के आरोपियों के लिए नहीं । वे भले ही जन्मना बहुजन समाज का हिस्सा हों वे बहुजन समाज के व्यापक हित के खिलाफ काम कर रहे हैं । बेहतर है वे ब्राह्मणवादी साजिश का शिकार होने से बचें ।
#मेरे_बहुजन_मित्रों

गुरुवार, 6 अप्रैल 2017

भाजपा के प्रति मुसलमानों की आशंका सच साबित हुई !

2014 में केंद्र में भाजपा के बहुमत और 2017 में उत्तर प्रदेश में भाजपा के प्रचंड बहुमत के बाद ऐसी सलाहों की बाढ़ आ गयी जिसमें कहा जा रहा था कि मुसलमानों को भाजपा से नहीं डरना चाहिए या भाजपा को ही वोट कर देना चाहिए ( कईयों का दावा था कि किया भी है ) या मुसलमानों की दुर्दशा के लिए काँग्रेस , सपा , बसपा सब दोषी है । आदि !ऐसा लिखने वालों में कई मुस्लिम भी थे ।
सवाल है कि क्या भाजपा को लेकर मुसलमानों - साथ ही प्रगतिशील पत्रकारों , कलाकारों आदि की भी - आशंका गलत थी ? उत्तर है नहीं !
केंद्र में भाजपा के आने के बाद से एक एक कर मुद्दे उठाए जाते रहे , मामलों को तूल दिया जाता रहा , मुसलमानों के खिलाफ हिंसा और आपराधिक घटनाओँ में बढ़ोतरी हुई , हिंदूत्व के नाम पर गुंडागर्दी करने वालों के पक्ष में शासन तंत्र और केंद्रीय मंत्री तक बचाव में उतरे हैं ।
बीफ , लव जिहाद , तीन तलाक आदि मुद्दों को एक एक कर भड़काया गया - समाधान के लिए नहीं अपेक्षित संवेदनशीलता के साथ नहीं , बस पोलिटिकल माइलेज के लिए । ऐसे में मुसलमानों को भाजपा के सत्ता में आने से डर क्यों नहीं होगा ? दूसरे सपा , बसपा , काँग्रेस आदि से भी मुसलमानों को शिकायत हो सकती है । लेकिन यह स्पष्ट है कि भाजपा के अलावा कोई भी अन्य पार्टी मुसलमानों को निशाने पर नहीं लेती या उनके विरोध को राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल नहीं करते हैं ।
ऐसे में कहना न होगा कि उपर्युक्त सलाह देने वाले या तो जमीनी हकीकतों को जानते नहीं है या जानबूझ कर नजरअँदाज कर रहे हैं ।

गाय तो बहाना है , मुसलमान निशाना है ।

अपनी बात कहने से पहले कुछ सवाल
- क्या भारत में गाय पालने पर कोई प्रतिबंध है ?
- नहीं !
- क्या किसी को गाय को माता मानने और पूजने से रोका जा रहा है ?
--नहीं !
- क्या गौशालाओं को बंद कराया जा रहा है ?
- नहीं !
- क्या गायों की संख्या में भारी कमी आई है जिससे विलुप्तीकरण का कोई खतरा है ?
- नहीं !
फिर गाय को कौन सा खतरा है जिससे गाय के नाम पर अपराधी तत्वों को संरक्षण दिया जा रहा है !?
कोई गाय को माता मानता है , पूजता है , यह उसका अधिकार है । लेकिन इस अधिकार का मतलब यह नहीं लगाया जा सकता है कि दूसरे लोग - चाहे हिंदू धर्म में पैदा हुए नास्तिक हों , मुसलमान हों , ईसाई हों - भी गाय को माँ मानें । कोई गाय खाता है तो इसके लिए भावना आहत का आरोप सही नहीं है । वह गाय खाता है क्योंकि गाय भोज्य पदार्थ है । विदेशों में और भारत के कई राज्यों में भी गाय खाई जाती है । वहाँ भी जहाँ हिंदू धर्म के स्वयंभू ठेकेदार भाजपा और संघ की सरकार है । केरल में हिंदू भी खाते हैं ।
गौ हत्या और गौ माँस के व्यापार पर रोक संबंधी कानून ही गलत है और हिंदू तुष्टीकरण का परिणाम है जिसका तर्क और तथ्य से कोई संबंध नहीं है । इस कानून को खत्म किया जाना चाहिए , साथ ही गौ रक्षा के नाम पर बनने वाले संगठनों को हत्या और आपराधिक धमकी देने आदि से रोका जाना चाहिए ।
क्या ऐसा करना हिंदू विरोध है ? नहीं ! क्योंकि हिंदूओं को - किसी भी अन्य धर्मावलंबी की तरह अपना धर्म मानने , प्रचार करने का अधिकार है
लेकिन हिंसा के आधार पर दूसरों पर थोपने का नहीं । गौ रक्षा वाले अपना कार्य क्षेत्र गायों के लिए गौ शालाएँ खोलने , आवारा घूमती गायों के लिए चारे की व्यवस्था करने , बूढ़ी गायों को कसाई से बचाने के लिए खुद अच्छे दाम पर खरीद लेने आदि को बना सकते हैं ।
इसके लिए गौ माँस का व्यापार करने वालों को निशाना बनाना कतई जरुरी नहीं है ।
लेकिन यह स्पष्ट है कि गाय तो बहाना है , मुसलमान निशाना है ।

मंगलवार, 4 अप्रैल 2017

हिंदू धर्म का इस्लामीकरण

हिंदू धर्म का इस्लामीकरण
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कहते हैं कि जिससे भरपुर नफरत और विरोध किया जाता है , समय के साथ विरोधी भी जाने अनजाने उसी जैसा हो जाता है । किसी मॉन्स्टर से लड़ने वाला भी मॉन्स्टर हो जाता है ।
हाल की कुछ घटनाओं पर गौर कीजिए । जैसे उत्तर प्रदेश में योगी ने मुख्यमंत्री निवास में नवरात्र के व्रत के दिनों में फलाहार का सामूहिक आयोजन किया था । गौर कीजिएगा कि हिंदू धर्म में ऐसी कोई परंपरा नहीं है । मतलब फलाहार व्यक्तिगत ही होता है । यह सीधे सीधे रोजे में इफ्तार पार्टियों की नकल थी ।
अभी प्रशांत भूषण ने कृष्ण के संबंध में एक विवादित बयान - मेरी नजर में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं है - दिया है और एक अपुष्ट खबर के अनुसार किसी हिंदू संगठन ने उन पर ईनाम की घोषणा की है । यह भी सीधे सीधे फतवे की नकल है । जबकि पारंपरिक हिंदू धर्म जो संघ और उसके अनुषंगी संगठनों के हिंदू धर्म से अलग है - में देवी देवताओं को क्या क्या नहीं कहा जाता है ! कई लोककथाओं और लोगगीतों में भगवानों को न जाने क्या क्या उलाहने और ताने दिये गये हैं और वे कोई वामपंथी या चर्च पोषित बुद्धिजीवी नहीं हैं । ऐसे मौकों पर किसी की भावना आहत होती है तो कह देता है - भगवान समझेगा उसको ! लेकिन इन दिनों भक्तों ने मामला अपने हाथ में ले लिया है ।
इसी तरह उन्हें आप मुस्लिमों की कट्टरता , शरिया कानूनों को हिकारत से धिक्कारते हुए पाएँगे , लेकिन वे जो रुप और दिशा हिंदू धर्म को लिए प्रस्तावित कर रहे हैं , वे आश्चर्यजनक रुप से हिंदू धर्म के अनुरुप न होकर इस्लाम के सांगठनिक ढाँचे के अनुरुप हैं ।यह हिंदू धर्म का इस्लामीकरण है । ऐसा करने वाले कोई आईएसआईएस या अल कायदा जैसे संस्थान नहीं हैं , बल्कि हिंदूत्व की राजनीति करने वाले हैं । जिस हिंदू धर्म की उदारता और सहनशीलता का महिमामंडन करते हैं , उसी को खत्म करने में लगे हैं ।
वे जब भी उदाहरण देंगे - मुसलमानों का ही उदाहरण देंगे - देखो मुसलमान लोग कैसे जन संख्या बढ़ा रहे हैं , तुम भी बढ़ाओ । देखो , मुसलमान कैसे अपने धर्म के लिए मरने मारने निकलता है , तुम भी निकलो मारने के लिए । देखो मुसलमान लोग कैसे नमाज के समय एक जूट होते हैं , तुम भी आरती के समय ऐसी एकता दिखाओ । आदि !वे कट्टर मुस्लिमों को ही अपना आदर्श मानते हैं और उन्हीं की नकल करते हैं , भले ही विरोध करते रहें । कभी ईसाई धर्म के संपर्क में आकर हिंदू धर्म ने सती प्रथा , विधवा विवाह निषेध आदि कई कुप्रथाओं से छूटकारा पाया , लेकिन इन दिनों आक्रामक हिंदूत्व इस्लाम की बुराइयाँ अपना रही है ।
इससे सबसे ज्यादा नुकसान हिंदू धर्म के मानने वालों को होगा और इससे निपटने की जिम्मेदारी भी हिंदूओं की है । मेरे जैसे नास्तिक और धर्म विरोधी लोगों के विरोध पर ही यह आक्रामक हिंदूत्व पनप रहा है और शायद अपेक्षित प्रभाव न पैदा कर सकें ।