रविवार, 12 मार्च 2017

उत्तर प्रदेश चुनाव परिणाम पर प्रतिक्रिया 3

कहा जा रहा है कि मुस्लिम भाजपा को वोट कैसे दे सकते हैं !
सवाल जायज है । आखिर भाजपा ने ऐसा कुछ नहीं किया है कि जिसे कहा जाए कि उन्हेंने मुसलमानों को खुद से जोड़ने के लिए प्रयास किया है । उन्होंने एक भी मुसलमान प्रत्याशी को टिकट नहीं दिया । चुनाव के अंतिम चरणों में खुल कर मुसलमानों का डर दिखा कर ध्रुवीकरण की कोशीश की । जिसमें वे ऐसा करने में कामयाब हुए ऐसा लगता है ।
लोकतंत्र प्रतिनिधित्व का मामला है । राजनीति में सबकी भागिदारी सुनिश्चित होनी चाहिए । देश के सबसे बड़े राज्य में एक पार्टी का बहुमत है जिसमें उस राज्य में रहने वाली एक बड़ी आबादी - मुसलमान - का एक भी प्रतिनिधि नहीं है । यह लोकतंत्र के लिए शर्मनाक है । और यह मुस्लिम तुष्टिकरण नहीं है ।बल्कि प्रतिनिधित्व लोकतंत्र मे्ं अधिकार है । यह अधिकार हर समुदाय को है । मुसलमानों का भी ।
कुछ लोग बड़ी मासूमियत - जो उनकी धूर्त्ता होती है - से पूछते हैं कि क्या दलित का प्रतिनिधित्व सिर्फ दलित करें और मुस्लिमों का मुस्लिम ! सिद्धांत के स्तर पर जमीनी हकीकत को नजरअंदाज कर इस सवाल का उत्तर है - नहीं । लेकिन यदि वास्तविक सामाजिक , राजनीतिक परिदृश्य को संज्ञान में लें तो कहना पड़ेगा कि यदि आबादी के बहुत बड़े हिस्से को प्रतिनिधित्व नहीं मिल रहा है तो यह लोकतंत्र की हार है ।अगर यह सुनिश्चित नहीं किया गया तो समाज में वर्चस्वशाली समूह ही सत्ता केंद्रों पर काबिज रहेगा ।
इस तर्क पद्धति पर तो अंग्रेजों के शासन से ही एतराज नहीं होना चाहिए था । विकास तो उन्होंने भी किया था ।
इसकी संभावना रहती है , लेकिन गारंटी नहीं कि कोई मुसलमान /दलित/पिछड़ा अपने समुदाय के हित में काम करेगा । लेकिन इस बात की संभावना और भी कम है कि कोई वर्चस्वशाली समूह का व्यक्ति उनकी समस्याओं को समझेगा और उनके लिए काम करेगा । जो व्यक्ति वंचित समुदाय से होते हुए भी समुदाय के हित के लिए काम नहीं करता या आवाज नही उठाता तो वह अयोग्य है , उसे पद /सत्ता से हटना चाहिए । लेकिन उसके बाद कोई उनके समुदाय को ही प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए जो समुदाय हित में काम कर सके । किसी ऐसे शख्स/पार्टी को तो नहीं ही चुना जा सकता है जो खुले तौर पर वंचित समुदाय के मौलिक अधिकारों तक के खिलाफ हो ।
उत्तर प्रदेश चुनाव परिणाम पर प्रतिक्रिया 3

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