रविवार, 26 मार्च 2017

मकतल बंद किये जाने पर प्रतिक्रिया

योगी आदित्यनाथ नें मुख्यमंत्री बनते ही सख्ती दिखाते हुए कथित अवैध मकतलों को बंद करवा दिया ।
यहाँ कुछ बातें स्पष्ट करनी जरुरी है । वैध और अवैध कई मामले में सिर्फ लाइसेंस बनवाने और टैक्स देने के फर्क जितना ही होता है । अवैध का मतलब अनिवार्यत: अपराध नहीं है । असंगठित क्षेत्र के ज्यादातर छोटे व्यवसायी , फेरी वाले , सड़क किनारे ठेला लगाकर सब्जी गोल गप्पे आदि बेचनेवाले न केवल "अवैध " हैं , बल्कि अतिक्रमणकारी हैं । लेकिन यह ध्यान देना चाहिए कि भारतीय अर्थव्यवस्था में असंगठित क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका है। यह लोगों को रोजगार देने से लेकर आम आदमी की जरुरतों को पुरा करता है । संगठित क्षेत्र इतने विशाल देश की जरुरतों को पूरा नहीं कर सकता है । कोला बनाने वाली कंपनियाँ का बहुत बड़ा व्यापार है , लेकिन गन्ने का जूस, नारियल पानी आदि तो सड़क के किनारे कोई आम लोग बिना लाइसेंस के ही बेचते हैं । कंपनियाँ चिप्स बनाती हैं तो आलू , प्याज के पकौड़े तो बिना लाइसेंस के ही सड़क किनारे गलत ढंग से ठेला खड़ा करने वाला कोई आम शख्स ही बेचता है । जो मध्यमवर्गीय लोग उन्हें अतिक्रमणकारी कह कर कोसता है , वह भी वहीं खाने , पीने जाता है । माँस के व्यापार पर भी यही बात सही है । बड़े मकतल निर्यात केलिए डिब्बेबँद माँस बनाने में यकीन रखते हैं , स्थानीय माँग की पूर्ति के लिए नहीं ।
जो लोग इसे मुस्लिम पर कार्यवाई मान कर खुश हो रहे हैं , वे शायद यह नहीं देख पा रहे हैं कि इकोनोमी में सभी एक दूसरे से जुड़े हैं . यकीनन छोटे पैमाने पर माँस का कारोबार करने वालों में अधिकाँश मुस्लिम हैं , वे भी कसाई जाति के । लेकिन वे जिनसे पशु खरीदते हैं वे अधिकांशत: हिंदू ही हैं । चमड़े के व्यापार में लगी हिंदू ( कहने के लिए ) जातियों को चमड़े की सप्लाई भी बाधित होगी और उनका व्यवसाय भी प्रभावित होगा । सिर्फ सवर्ण हिंदू जिनकी नौकरी /व्यवसाय सुरक्षित है , इस फैसले पर वाहवाही करेगा ।
यहाँ यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि असंगठित क्षेत्र को नियमन का प्रयास और संगठित रुप - भले ही छोटे स्तर पर - में चलाने का प्रयास नहीं होना चाहिए । लेकिन इसके लिए एक टाइम फ्रेम बना कर , उन्हें लाइसेंस दिलवाने , सुरक्षा और अन्य मानकों का अनुपालन करने के लिए प्रोत्साहन आदि मिलना चाहिए । बड़े बड़े उद्योगपतियों को सरकारें जमीन अधिग्रहण करके देती हैं , ऋण दिलवाती हैं , टैक्स में छूट देती हैं तो अपने दम पर छोटा व्यवसाय करने वालों की इतनी मदद तो बनती है । सीधे सीधे बंद करना द्वेषपूर्ण है और सांप्रदायिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए है ।
मकतल बंद किये जाने पर प्रतिक्रिया

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