मंगलवार, 7 मार्च 2017

जेपीएससी में सवर्णों को पचास प्रतिशत आरक्षण


पिछले दिनों झारखंड लोक सेवा आयोग ने रिजल्ट जारी किया था । उसमें ओबीसी का कट ऑफ जेनरल से ज्यादा था । यह अप्रत्यक्ष रुप से सवर्णों को पचास प्रतिशत आरक्षण देना है । अगर जेपीएससी में महत्वपूर्ण पदों पर बैठे व्यक्तियों के सरनेम पर गौर करेंगे तो आश्चर्य नहीं होगा ।
पहले भी कहा है , फिर कहता हूँ कि सवर्ण रॉकेट साइंस समझ सकते हैं , बस आरक्षण नहीं समझ सकते ।या कहिए कि न समझने का नाटक करते हैं । सत्ता संस्थानों में जड़े जमाए ये सवर्ण इस तरह के अनेक हथखंडे अपनाते हैं , और आरक्षण सही तरीके से लागू नहीं करते । कभी सीट को विभागों में बाँटकर , कभी - उपयूक्त उम्मीदवार नहीं मिले , कभी तकनीकि कारणों से आवेदनों को निरस्त कर आदि । इनका उपयूक्त ही विरोध होता है । लेकिन इसमें बहुजनों का बहुमूल्य समय और संसाधन लगता है जिससे बचा जा सकता है । आरक्षण संविधान प्रदत्त अधिकार है । इसे लागू करना संस्थानों का दायित्व है । यदि वे ऐसा नहीं करते तो इसे कार्य निष्पादन में कमी माना जाना चाहिए और जिम्मेदार अधिकारियों को पदच्यूत करने और दंडात्मक कार्यवाई सुनिश्चित की जानी चाहिए । बहुजनों और उनके अधिकारों की लड़ाई लड़ने वालों को ध्यान देना चाहिए कि यदि ऐसा नहीं हुआ तो इस तरह के हथकंडे बार बार अजमाए जाते रहेंगे । इसलिए सिर्फ ऐसे मामले उठाना काफी नहीं है , जरुरी है , पर उससे ज्यादा जरुरी है संस्थानों / अधिकारियों और सरकार की जवाबदेही तय करना ।
यह भी ध्यान देने वाली बात है कि इस तरह की हरकतें भाजपा शासित प्रदेशों में ज्यादा होती है । जो बहुजन कथित हिंदू राष्ट्रवाद की भाँग पीकर भाजपा के रथ के सारथी बने हुए हैं , उन्हें खुद से और भाजपा से सवाल करना चाहिए कि उनके राज्य में उनके संविधान प्रदत्त अधिकारों का हनन क्यों हो रहा है । भाजपा के साथ बने रहकर कुछ नया पाने के बजाए जो मिलना चाहिए वे भी गँवा रहे हैं ।
और मुझे कोई आश्चर्य नहीं होगा यदि सवर्ण इस पोस्ट को जातिवाद मानेंगे , लेकिन संस्थान द्वारा सवर्ण हित में नियमों की धज्जियाँ उड़ाना उन्हें जातिवाद नहीं लगेगा । टिपीकल द्विज मानसिकता !

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