शनिवार, 11 मार्च 2017

इरोम शर्मिला की हार पर प्रतिक्रिया

इरोम शर्मिला चुनाव हार गयीं । सिर्फ हारी ही नहीं बुरी तरह हारीं । सौ वोट  भी न जूटा सकीं । ऐसा होना इरोम से ज्यादा लोकतंत्र और मणिपुर की जनता की हार है । जिस शख्स नें अपना जीवन अफ्स्पा हटाने के लिए लगा दिया , जिसने अकेले न केवल इस मुद्दे को जिंदा रखा , उसे राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । पूछा जा सकता है कि इसका हासिल क्या रहा । लेकिन अकेले सिर्फ अपनी जिद पर इतना लंबा संघर्ष मायने रखता है ।
लोकतंत्र की अपनी संभावनाएँ हैं तो अपनी सीमाएँ हैं । इरोम की हार को लेकर हम लोकतंत्र पर सावल तो उठा सकते हैं । लेकिन यह बात भी ध्यान रखनी होगी कि लोकतंत्र में व्यक्ति से ज्यादा समूह महत्व रखता है । चुनाव तो वही जितेगा जो अपनी बात जनता को समझा सकेगा और उसे साथ लेकर चल सकेगा । इसके बगैर व्यक्तिगत स्तर पर कोई कितना भी ईमानदार हो , उनका मिशन कितना ही उच्च क्यों न हों , वे आम जनता को कनविंस न कर कें तो चुनाव में जीत नामुमकिन है ।
विचार बदलने की जरुरत नहीं है , रणनीति बदलने की जरुरत है ।
फिर भी , इरोम हम शर्मिंदा हैं ।
इरोम शर्मिला की हार पर प्रतिक्रिया

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें