जातिगत पेशों का आधुनिकीकरण
-------------------------------------------------------------------------------
एक लॉंड्री स्टार्टअप है - वाशअप । दूसरी है - डूरमिंट !इनका काम है संगठित रुप में कपड़े धूलाई का । मने परंपरा से जिसे एक जाति विशेष - धोबी - पेशे के रुप में करती है । हालाँकि अब भी ये लोग कपड़े धोने , प्रेस करने का काम करते हैं । जो लोग थोड़ी पूँजी लगा सकते हैं वे कपड़ा व्यवसायी लोगों के कपड़े का थान आदि धूलाई और प्रेस मशीन से प्रेस करके देते हैं ।
लेकिन ये स्टार्टअप कॉरपोरेट होटलों , अस्पतालों आदि को धूलाई की सेवा देते हैं । हालाँकि इनमें किन लोगों की नौकरी दी जाती है , इसकी जातिवर गणना उपलब्ध नहीं है । यदि जाति विशेष को लोगों को नहीं लिया जा रहा है तो , यह तय है कि इस व्यवसाय के संगठनीकरण से ज्यादा फायदा कंपनी और निवेशकों को होगा । छोटे स्तर पर करने वालों की तरह वे मालिक और कर्मी दोनों नहीं होंगे ।
यानी व्यवसाय के आधूनिकीरण का फायदा सवर्ण और धनी वर्ग उठाएँगे और जाति विशेष के लोगों के लिए दूसरे व्यवसाय के लिए रास्ता नहीं होगा और यह भी बंद हो जाएगा ।
मेरा मानना है कि एक ऐसा प्लेटफार्म/बिजनेस मॉडल विकसित किया जाए कि जिन जातिगत पेशों के- सिर्फ लाँड्री ही नहीं - आधुनिकीकरण करने की संभावना हो और आज के समय में भी आवश्यक हों , उसके लिए जाति विशेष को सहयोग किया जा सके । हाँ , धन और शिक्षा के बाद उन्हें दूसरे क्षेत्रों में जाने की सुविधा होनी चाहिए ।और उनके श्रम का सम्मान होना चाहिए ।
यह एक चुनौतीपुर्ण कार्य है , लेकिन परंपरागत पेशों से जुड़े बहुजनों के लिए सम्मानजनक आजीविका हेतू आवश्यक है ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें