शुक्रवार, 21 अप्रैल 2017

शिक्षा और छात्रों के प्रति आपराधिक असंवेदनशीलता क्यों ?

दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय में छात्र भूख हड़ताल पर हैं । वजह - कोर्स की मान्यता है जिसके लिए विश्वविद्यालय ने न केवल नामांकन लिया , बल्कि कोर्स भी करवाया ।
सवाल है कि क्या कोर्स की मान्यता सुनिश्चित करना छात्र का काम है ? वह भी एक केंद्रीय विश्वविद्यालय में नामांकन लेते हुए ? क्यों नहीं विश्वविद्यालय प्रशासन को धोखाधड़ी का जिम्मेदार मानकर कार्यवाई की जाती है ? और क्यों यूजीसी छात्रों को भूख हड़ताल के बावजूद राहत के लिए कोई कदम नहीं उठा रही है ?
जो काम सामान्य रुप से विश्वविद्यालय और नियामक संस्था - यूजीसी और अन्य - करना चाहिए ,उनके स्तर पर कमी या लापरवाही का दुष्परिणाम छात्र क्यों भूगते !?
सिर्फ इस विश्वविद्यालय में ही नहीं , अन्य जगहों पर भी कई तरह से छात्र संघर्षरत हैं । पंजाब में फीस वृद्धि का विरोध कर रहे छात्रों के खिलाफ देशद्रोह का चार्जऔर बर्बर पिटाई हुई ।कई जगह 24 घंटे पुस्तकालय खुलने के लिए छात्रों का प्रदर्शन हुआ । हॉस्टल की सुविधा के लिए भूख हड़ताल हो रही है । यह ऐसे मुद्दे हैं जिसे प्रशासन और सरकार को स्वत: संज्ञान लेते हुए काम करना चाहिए । लेकिन यहाँ आंदोलन /प्रदर्शन करने के बाद भी सुनवाई नहीं हो रही है ।
क्या अपनी भावी पीढ़ी और शिक्षा के लिए प्रशासन एकदम संवेदना शून्य हो गया है ? और चिंता की बात यह है कि एक समाज और देश के रुप में यह हमारी चिंता का विषय भी नहीं है !
यह हमारे युवा पीढ़ी के प्रति अपराध है !

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