शुक्रवार, 7 अप्रैल 2017

मुसलमानों को गडढे में गिराने के चक्कर में बहुसंख्यक समुदाय के पैरों तले की जमीन खिसक रही है ।

मनुष्य स्वार्थी होता है । यह स्वाभाविक है कि कोई अपना हित देखता है । अपने हित के लिए दूसरों का नुकसान भी करता है । वे दुष्ट होते हैं । उससे बड़े दुष्ट वे हैं जो दूसरों की पीड़ा में आनंदित होते हैं तब भी जब इससे उनका कोई निजी लाभ लोभ न जुड़ा हो । सबसे बड़े दूष्ट वे होते हैं जो दूसरों को नुकसान पहुँचाते हैं चाहे इसके लिए उन्हें खुद नुकसान उठाना पड़े । उनकी मानसिकता होती है - भले ही अपनी दीवार गिरे , पड़ोसी की भैंस मरनी चाहिए । यह सहज मानवीय बुद्धि नहीं कहा जा सकता है , यह परले दरजे की दुष्टता और मुर्खता है ।
अफसोस है कि इन दिनों बहुसंख्यक समुदाय इसी दुष्ट और मुर्ख मानसिकता से ग्रस्त है । वह अपना नुकसान नहीं देख रहा , बस इस बात से खुश है कि मुल्लों को कष्ट हो रहा है ।
मकतलों पर पाबंदी लगी । वे हड़ताल पर चले गए । माँस मिलना , खाना आदि बंद हो गया , बहुसंख्यक लोगों को भी । लेकिन उन्हें खुशी है कि मुल्लों की दुकान बंद है ।
एंटी रोमियो स्कैवड की कई खबरें आईं जिसमें अपनी मर्जी से समय बिता रहे जोड़ों को प्रताड़ित किया गया , जिनमें बहुसंख्यक लोग भी हैं । लेकिन वे विरोध नहीं करेंगे । बल्कि उन्हें खुशी है कि कथित लव जिहाद करने वाले मुल्लों को सबक मिल रहा है ।
शिक्षण संस्थानों में सीटों में कटौती हुई , सरकारी नौकरियों में 89 % कटौती हुई , रेलवे - सबसे बड़ा सरकारी नियोक्ता - को निजी हाथों में सौंपने की जमीन तैयार की जा रही है - एक प्लेटफार्म दे भी दिया गया निजी हाथों में , नोटबंदी से छोटे दुकानदारों , कामगारों को भयंकर चोट पहुँची है , आदि लेकिन बहुसंख्यक जनता इसीसे खुश है कि सरकार मुल्लों को सबक सिखा रही है ।
बहुसंख्यक समुदाय मुसलमानों के प्रति घृणा और बदले की भावना में इस कदर अँधा हो गया है कि वह यह भी नहीं देख रहा है कि मुसलमानों को गड्ढे में गिराने के चक्कर में खुद उनके पैरों तले की जमीन खिसक रही है ।
इससे पहले की बहुत देर हो जाए , मुसलमानों के लिए नहीं अपने हित में बहुसंख्यक समुदाय को चेत जाना चाहिए ।

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