मंगलवार, 18 अप्रैल 2017

सोनू निगम के ट्वीट पर प्रतिक्रिया


आज के दौर में संवाद करना किस हद तक मुश्किल हो गया है , हम किस कदर बँट गये हैं और किस तरह एक सही मुद्दा गलत ढंग से चर्चा का विषय बनता है और विवाद में असल मुद्दा गायब हो जाता है , इसका एक सटीक उदाहरण है - सोनू निगम द्वारा लाउड स्पीकरों के संबंध में ट्वीट और उसके बाद होने वाली परिचर्चा !
कुछ लोगों ने सोनू निगम पर व्यक्तिगत हमले चालू कर दिये कि वे आजकल बेरोजगार चल रहे हैं और चर्चा में आने के लिए बयान दे करहे हैं या जगराते में गाने वाले भजन जिनका इस्तेमाल भक्ति के लिेए कम और दिखावे के लिए ज्यादा होता है , उन्होंने भी गाये हैं । पहली बात कि बात के साथ कहने वाला भी महत्वपुर्ण है । उसका व्यक्तित्व भी मतलब निकालने में सहायक होता है । लेकिन उनकी व्यक्ति पर इतना फोकस भी ठीक नहीं कि बात ही गुम हो जाए ।उनके बोलने के तमाम वजहें हो सकती है , लेकिन इससे उनकी बात पुरी तरह गलत साबित नहीं होती है ।
इस समय की विडंबना देखिए कि इन दिनों कोई साधारण सा वक्तव्य भी बिना बैलेंस बनाए नहीं दे सकता है । अजान पर बोला है तो जगराता भी बोलना पड़ेगा । ऐसा नहीं है कि जगराते पर नहीं बोला जा सकता या अजान पर नहीं बोला जाए , लेकिन बैलेंस की जरुरत दुखदायी हद तक बढ़ गयी है कि लोग अब बात भी नहीं कर रहे हैं । अब दोनों अलग अलग है । अजान पाँच मिनट के लिए होता है और रोजाना होता है , इसलिए आदमी को आदत हो जाती है । जैसे रेलवे स्टेशन के पास जिनके घर होते हैं उन्हें रेल गुजरने की आवाज की आदत हो जाती है । बाकी पाँच मिनट में ज्यादा नुकसान नहीं होता है । आरती से भी कोई प्राॉब्लम नहीं है । नास्तिक होने के बावजूद अनूप जलोटा , जगजीत सिंह , प्रदीप के भजन सुने हैं और अच्छे भी लगते हैं ।भक्ति काव्य पढ़ा है और अच्छा भी लगता है भले ही भक्ति भाव से नहीं पढ़ता । लेकिन ये फिल्मी गानों के धून पर फूहड़ बोल वाले भक्ति संगीत में भक्ति कहाँ है ये तो भक्त ही बताएँगे । दस पंद्रह मिनट को लिए बर्दाश्त भी कर लें । ये रात भर चलने वाला जगराता बर्दाश्त के बाहर है । नौ दिन वाला जागरण तो जानलेवा है ।
इस वक्तव्य को आसानी से हिंदू विरोधी और मुस्लिम परस्त बताया जा सकता है । लेकिन फैक्ट तो फैक्ट है ।
अगर मामला धर्म विरोधी लग रहा है तो स्पष्ट कर दूँ कि मुद्दा जागरण या अजान नहीं लाउडस्पीकर है । अजान , जगराते के साथ हनी सिंह के गाने भी भारी भरकम स्पीकर पर सुनने वाले को भी शामिल कर लीजिए । राजनीति पार्टियों के कार्यक्रम को भी शामिल कर लीजिए । और ध्यान दीजिए कि लाउडस्पीकर लगाने वाले अपने लोगों को ही परेशान करते हैं । जगराता हिंदू बहूल इलाकों में होता है और परेशान भी हिंदू ही होते हैं । मस्जिद भी मुस्लिम बहुल इलाकों में होते हैं । पार्टियाँ भी कार्यकर्म अपने इलाके में ही करते हैं ।
यह भी गौर करने वाली बात है कि अपनी मनस्थीति /परिस्थीति पर भी प्रतिक्रिया निर्भर करता है । घर में शादी - मान लीजिए का माहौल है - तो पड़ोसी देर रात तक बजने वाले गाने पसंद भी करते हैं और न भी आए तो बर्दाश्त करते हैं ।यही रोज बजाने लगें तो टोकने पहूँच जाएँगे ।
वैसे कानून तो है पहले से ही है । जब तक लोग खुद ही अपेक्षित संवेदनशीलता और जिम्मेदारी महसूस नहीं करते , समस्या हल नहीं होने वाली । वैसे इन दिनों कुछ भी बोलने वालों - चाहे वे किसी भी खेमे के हैं -की इस तरह छीछालेदारी हो रही है या ट्रॉल हो रहे हैं कि कोई अमन पसंद आदमी या औरत किसी भी मुद्दे पर नहीं बोलेगा ।
वह एक और बड़ी समस्या होगी ।

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