शनिवार, 30 जुलाई 2016

बैंकर पर हमले






बैंकर पर हमले!
एक बार फिर बैंकर पर हमले की खबर  आई है । यह घटना न पहली है और न आखिरी । उन दिनों इस तरह की घटनाओं में बढ़ोतरी ही हुई है । आखिर क्यों है यह हालत ?
गौर कीजिये। डॉक्टर और परिजनों में झड़प होती है तो सारे डॉक्टर हड़ताल  पर चले जाते है । पत्रकार पर हमला होता है पूरी पत्रकार बिरादरी सड़क पर  उतर जाती है । अपराधियों में कहावत है कि कभी पुलिस वाले पर  हमला  न करना , वरना वे भूखे भेड़ियों की तरह टूट पड़ेंगे और पाताल से भी खोजकर मार डालेंगे । इसके उलट बैंकों में क्या स्थिति होती है !? कोई ग्राहक ब्रांच मैनेजर के केबिन में हाथापाई पर उतारू है और  बाकी बैंक कर्मचारी अपने काम में जूटे हैं जैसे कोई मतलब ही न हो। कैशियर अपने कैश में और ज्यादा सिर घुसा लेगा । ऑफिसर चेक पास करने में लगा रहेगा। महिला कर्मचारी टॉइलेट में घुस जाएगी ।  दफ्तरी चाय/पान के बहाने बाहर निकल जाएगा । उच्चाधिकारी आपकी ही गलती निकालेंगे । ज्यादा हुआ तो मेल करेंगे – हैंडल द मैटर टैक्टफुली। सरजी । टैक्ट शरीफों के लिए है और उतनी जानकारी सभी बैंकरों को होती है । लेकिन गुंडागर्दी के आगे टैक्ट कैसे चलेगा ? बाकी ग्राहक अपने काम से काम रखेंगे और बीएम की भी चिंता होती है – ब्रांच तो  चलनी चाहिए । ऐसे में क्यों न बढ़े उपद्रवी की हिम्मत !?
तो क्या किया जाये ? मैनेजमेंट को क्या करना चाहिए , यूनियन को क्या करना चाहिए , पुलिस को क्या करना चाहिए आदि बातों पर तबसरा करने से बेहतर है कि पहले यह विचार करें कि हम क्या कर सकते हैं !
पहला काम- ऐसी स्थिति में काम करना सबसे  पहले बंद कीजिये । सब उठकर संबन्धित कर्मचारी के पास जाकर खड़े भी हुये तो उपद्रवी के   हौसले पस्त हो जाएँगे। ब्रांच चलाना बीएम की ज़िम्मेदारी है । लेकिन यह कहाँ लिखा है कि दंगे-फसाद  कर्फ़्यू में भी ब्रांच  चलाना है ? इसके उलट नियम है कि ऐसी स्थिति में अपनी जान बचानी है और जोखिम उठाने से बचना है ।सब काम बंद कीजिये ।  फिर  मेल ठोकिए –शाखा परिसर में उपद्रव के कारण ग्राहक सेवा देना संभव नहीं है । जान माल का खतरा है । यकीन मानिए- इसके बाद उच्चाधिकारी की हिम्मत नहीं होगी -  बैंक खुला रखने के कहने का । अगर कहते हैं यो उनसे लिखित में मांगिए। अगर कोई खदूस लिख के दे भी देता है तो भी मत मानिए- स्थिति की गंभीरता देखते हुये आदेश का  पालन संभव नहीं था । सारे स्टाफ में एकता रहेगी तो कोई भी कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा ।
यह बहुत पीड़ादायक है कि ऐसी स्थिति में आपकी बैंक आपके साथ खड़ी नहीं होती । सुनिश्चित कीजिये कि एफ़आईआर दर्ज हो और कार्यवाई हो । और यह निजी स्तर पर नहीं बैंक के स्तर पर होना चाहिए । आपने किसी की बहन बेटी नहीं छेड़ी है और न ही किसी की भैंस खोली है । अगर विवाद बैंक के कार्य से संबन्धित है तो मुकदमा और  अन्य कार्यवाई भी बैंक करे ।
यह भी याद रखना चाहिए कि ग्राहक सेवा का मतलब ग्राहक का काम बैंक के नियमानुसार बैंक से संबन्धित काम विनम्रतापूर्वक और त्वरित ढंग से करना है । गालियां सुनना, मार खाना, बैंक के नियम का उलंघन कर सेवा देना आदि ग्राहक सेवा में नहीं आते हैं। दूसरे यदि किसी ग्राहक को कर्मचारी से शिकायत है –काम नहीं करता है, लोन पास नहीं हो रहा है , भ्रष्ट है आदि तो इसके लिए बैंक परिसर में उच्च  अधिकारियों से लेकर आरबीआई के अधिकारी तक का संपर्क उपलब्ध होता है । उनसे समपर्क किया जा सकता है । और यदि कोई ग्राहक सेवा में कमी है तो बैंक बदल दे । इन उपायों के बजाय मार पीट पर उतारू होना ही ग्राहक की  बदनीयती  का सबूत है ।
याद रखिए कि आप जिंदा रहने के लिए नौकरी करते हैं , नौकरी करने के लिए जिंदा नहीं हैं । दूसरे आपका सम्मान तभी करेंगे जब आप अपना सम्मान करेंगे और इसके लिए लड़ेंगे। खुद को इतना भी मत गिराइए  कि अपने होने पर ही शर्म आने लगे !
शाखा परिसर में एक बैंक अधिकारी के पिटे जाने की खबर पर प्रतिक्रिया !


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