सोमवार, 4 जुलाई 2016

बैंक मर्जर के खिलाफ हड़ताल



एसबीआई की सहयोगी बैंकों के एसबीआई में विलयन और अन्य मांगों को लेकर हड़ताल का आह्वान किया गया है। इस संबंध में एक सहकर्मी से बात हो रही थी । पूछा  मैंने – हड़ताल में जा रहे हैं ?
जवाब  मिला – जाना ही पड़ेगा । चारा ही क्या है? यूनियन ने कौल दिया है।
पूछा –आप मर्जर के पक्ष में हैं या विपक्ष में ?
बोले- मैं क्या , पूरी यंग जेनेरेशन मर्जर के पक्ष में है ।
मैं – फिर मत जाइए । ये तो कोई बात नहीं कि आप हड़ताल पर जाएँ, सैलरी कटवाएँ , वह भी उस काम के विरोध में जिसे आप सही मानते हैं ?
वे – अब क्या कहें !?
मित्रों! ये कहने और करने का ही वक्त है । बैंकर  उच्च शिक्षित और प्रशिक्षित वर्क फोर्स है । उस तरह भेड़ बकरियों की तरह अपनी लगाम यूनियन लीडरों के हाथ में देना सही नहीं है, खास तौर से तब, जब वे पारदर्शिता, ज़िम्मेदारी और संवाद से दूर भागते हैं। अगर आप को लगता है, मर्जर गलत है तो जरूर हड़ताल पर जाएँ , लेकिन अगर मानते हैं कि मरजर होना चाहिए तो इसके विरोध में होने वाले हड़ताल में शामिल न हों। यूनियन लीडर की बात तभी माने जब आप उंससे सहमत हों, वरना नहीं।
मैं मजबूत यूनियन के पक्ष में हूँ , लेकिन तब नहीं जब यूनियन माफिया की तरह चल रही हो और कर्मचारियों के हितों के बजाय निजी स्वार्थों को प्राथमिकता दी जा रही हो ।
मैं हड़ताल में शामिल नहीं होने वाला । और आप !??

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