गुरुवार, 14 जुलाई 2016

दादरी कांड में नया मोड

विडम्बना भी आत्महत्या कर ले , ऐसी खबर है यह ! पीड़ित को ही दोषी करार देने और उसे न्याय देने के बजाय प्रताड़ित करने का सटीक उदाहरण है यह फैसला । एक व्यक्ति की भीड़ ने हत्या की है । हत्यारों को सजा होनी चाहिए । एखलाख कौन सा मांस खा रहा था यह सवाल ही अप्रासंगिक है । यदि वह गाय का मांस खा भी रहा था तो उसकी हत्या उचित नहीं । भीड़ को कानून हाथ में लेने का अधिकार नहीं है । यदि गौ हत्या पर सजा देनी है तो वह सजा मौत की तो नहीं है और उसे देने का अधिकार किसी आवारा भीड़ को नहीं है । फिर गौ हत्या पर प्रतिबंध या बीफ खाने पर प्रतिबंध हास्यास्पद है । गाय कोई ऐसा पशु नहीं जिसके अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा हो । गाय पालतू पशु है और पर्याप्त संख्या मे मौजूद है । जिसे लोग पालते ही हैं उसकी उपयोगिता के लिए । इसमें मांस और चमड़ा भी शामिल है । गाय के प्रति प्रेम विशुद्ध सांप्रदायिक राजनीति है पशु प्रेम नहीं ।
निशाने पर मुसलमान ही नहीं पारंपरिक रूप से चमड़े का काम करने वाले दलित भी है जो हाल में कथित गाय रक्षकों द्वारा दलितों पर आक्रमण से स्पष्ट है। निशाने पर पारंपरिक रूप से पशुपालन करने वाली बहुजन जातियाँ भी है जो बूढ़े गाय/बैलों को रखने का खर्च नहीं उठा सकते और कसाई को बेच कर चार पैसे कमाना चाहते हैं । यदि गौ रक्षकों को गाय/बैल के लिए इतना ही दर्द है तो वे सारे बूढ़े गाय/बैल खरीदें और खुद उनकी सेवा करें , खर्च उठाएँ । कृपया मुसलमान और दलित बहुजनों को निशाना न बनाएँ !
गाय को पूजना है पूजिए , गाय पर राजनीति मत कीजिये । गाय आपकी माता होगी हमारे लिए एक उपयोगी पशु है । बस !
http://timesofindia.indiatimes.com/city/noida/Court-orders-FIR-for-cow-slaughter-against-family-of-Akhlaq-who-was-lynched-in-Dadri/articleshow/53210317.cms

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