शनिवार, 2 जुलाई 2016

फिल्म शोरगुल



फिल्म शोरगुल
सांप्रदायिक दंगों और उससे जुड़ी राजनीति पर आधारित फिल्म है । फिल्म में एक प्रेम त्रिकोण भी है , जिसमें धर्म का एक एंगल भी है। यही प्रेम और इससे जुड़ी मौत दंगे की  आग सुलगाने में चिंगारी का काम करती है। वैसे भूसा तो पहले ही काफी जमा हो गया था ।
फिल्म में अच्छे एक्टर हैं , अच्छी कहानी है, अच्छे संवाद है , लेकिन फिल्म में वह पंच  नहीं है जो एक  एक समस्या आधारित फिल्म में होना चाहिए। फिल्म टुकड़ों में ही अच्छी लगती है। कई कलाकारों का काम बहुत उम्दा है तो कई का बचकाना । जब आशुतोष राणा, जिमी शेरगील आदि हो तो हिरो , हिरोइन भी कम से कम अभिनय के मामले में जानदार होने चाहिए।
फिल्म में दंगो की विभीषिका पर कई दृश्य है, लेकिन  रीढ़ की हड्डी में सिहरन दौड़ा देने वाला प्रभाव नहीं है । प्रेम त्रिकोण में भी ईंटेंसिटी नहीं है ।
कोई काम नहीं है तो फिल्म देख लीजिये। यह फिल्म यह दिखाने के काम आएगी कि फिल्म अंततः निर्देशक की कृति है। कलाकार, कहानी सब ठीक रहे तब भी निर्देशन सही न हो तो फिल्म जमती नहीं।

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