गुरुवार, 28 जुलाई 2016

हड़ताल पर जाना चाहिए या नहीं ! ?



हड़ताल पर जाना चाहिए  या नहीं !
29 जुलाई  को यूबीएफ़यू द्वारा आहूत हड़ताल कल है और कई सहकर्मियों ने मुझसे पूछा कि  हड़ताल पर जाना चाहिए या नहीं । इस सवाल का जवाब सीधे सीधे हाँ या नहीं में देना संभव नहीं है । इसलिए थोड़ा विस्तार से आगे लिख रहा हूँ । पढ़िये और खुद फैसला कीजिये !
पहली बात मैं कोई लीडर  नहीं हूँ , न हो सकता हूँ , न होना चाहता हूँ , जो कहे कि मेरे पीछे आओ और सबकुछ मेरे ऊपर छोड़ दो। मेरा मानना यह है कि इसी प्रवृत्ति ने आम  कर्मचारियों को यूनियन के प्रति उदासीन किया है और परिणामस्वरूप यूनियन कमजोर हुई है। जिसके आम मेम्बर को नेतृत्व पर  भरोसा  न हो और न विरोध करने का साहस हो , वह संघटन कभी मजबूत नहीं हो सकता । जो संघटन अपने सदस्यों की रायशुमारी तक जरूरी न समझता हो और अपने सदस्यों को भेड़ बकरी की तरह  हांकना चाहे वह संघटन कभी मजबूत नहीं हो सकता । जहां कार्य संस्कृति   के नाम पर चमचा संस्कृति हावी हो , वह संघटन कभी मजबूत नहीं हो सकता । जहां सदस्यों को संघटन  में औपचारिक दिलचस्पी भी न हो , वह संघटन कभी मजबूत नहीं हो सकता । इसलिए यूएफ़बीयू चुनिन्दा लीडरों का प्राइवेट क्लब है , बनिस्पत बैंकरों के प्रतिनिधि संघटन के ।
जैसा कि मैंने पहले लिखा है अगर आप यूनियन से सहमत हैं तो जरूर जाएँ हड़ताल पर । अगर नहीं सहमत हैं मत जाएँ और अपना विरोध लिखित में दर्ज कराएं । यह सही नहीं कि आप मांगों से सहमत नहीं और हड़ताल पर महज इसलिए जा रहे हैं कि यूनियन का कौल है । अगर आप ऐसा करते हैं तो मतलब है कि आप एक  ऐसे काम में सहभागी हैं जिसे आप सही नहीं मानते । ऐसा करने में डर और हिचक स्वाभाविक है । क्योंकि यूनियन किसी लोकतांत्रिक संघटन के बजाय माफिया स्टाइल में फंक्शन करती है । यूनियन लीडर गली के उन गुंडों की तरह है जो आपसे अपेक्षा  करते हैं कि आप उनकी  गुंडागर्दी इसलिए बर्दाश्त करें क्योंकि उनका दावा  होता है -  दंगा होगा तो हमी बचाएंगे ।
ऐसे में आपके हड़ताल पर न जाने पर होगा कि यूनियन आपकी उपेक्षा करेगी और उस वक्त का इंतजार करेगी जब आपको   रिप्रेजेंटेशन के लिए यूनियन की जरूरत पड़ेगी – खासतौर से ट्रांसफर और किसी विभागीय कार्यवाई के समय । उस समय बदला निकालेगी । लेकिन यह भी याद रखिए यह तभी संभव ही जब यूनियन के विरोध में जाने वाले इक्का दुक्का हों । यदि यह तादाद बढ़ती है तो यूनियन बैक फुट पर होगी । क्योकि यह उनके प्रतिनिधित्व के दावे को ही डिगा देगा । और कोई भी संघटन अपने अधिकांश सदस्यों के खिलाफ नहीं जा सकता । जाएगा तो उसका अस्तित्व ही संकट में आ जाएगा । और यह भी  याद रखिए कि आप  अपना प्रतिनिधित्व खुद भी कर सकते हैं । थोड़ा साहस और तैयारी की जरूरत पड़ेगी ।
जैसा कि अमूमन होता है जब खुद के फैसले पर भरोसा नहीं होता है तब हम दूसरों की तरफ देखते हैं और वही करते हैं जो दूसरे कर रहे हैं । लेकिन मित्रों, यह भेड़चाल है  यह किसी सचेत व्यक्ति का फैसला  नहीं हो  सकता । आप वह कीजिये जो आपको सही लगता है और  पूरी  मजबूती के साथ अपने फैसले के साथ खड़े रहें ।
यह भी याद  रखिए कि  एक मजबूत  संघटन /यूनियन वांछनीय है , लेकिन तब जिसमें हमारी भी  भागिदारी हो। ऐसा संघटन हमारा प्रतिनिधि नहीं हो सकता को अपने सदस्यों  को टेकेन फोर ग्रांटेड लेता हो और जो विचार विमर्श के बाजाय कुछ  चुनिन्दा लोगों के फैसले को सब पर थोपता हो और  कर्मचारियों के व्यापक हित के बजाय छुद्र निहित स्वार्थों से संचालित हों । लेकिन सदस्य होने के नाते ज़िम्मेदारी तो सबकी बनती है कि आपने कब यूनियन के क्रियाकलाप में सक्रिय भागीदारी निभाई और अपने लीडरों से जवाबतलब किया ?  और यह सिर्फ इस बार नहीं   हर बार होना चाहिए । याद रखिए आपको वैसे ही नेता मिलते हैं जैसा आप  डीजर्व करते हैं ।
फिर हड़ताल के आह्वान के लिए जो सर्कुलर जारी हुआ है वह असपष्ट अंदाज में कुछ  मुद्दों को छूता है  । वे मुद्दे महत्वपूर्ण है , लेकिन  यूनियन ने कभी भी इस मुद्दे पर विस्तार सेकोई रिपोर्ट /अध्ययन ,  तर्क और तथ्य जारी नहीं किया जिससे आम सदस्य भी इन्हे पढ़कर अपनी राय कायम कर सके । यह भी यूनियन का विरोध किए जाने का पर्याप्त कारण है कि उनकी कार्यशैली पारदर्शी नहीं है । लेकिन आम धारणा यह है कि   हड़ताल मरजर के बारे में मैंडेट है । तो इसी पर अपना मैंडेट दीजिये । आप मरजर के पक्ष में है तो हड़ताल पर न जाएँ । या मरजर का विरोध करते हैं तो जरूर हड़ताल पर जाएँ । दूसरे मुद्दे अगली बार देख लिए जाएँगे ।
जहां तक मेरी बात है , मैं किसी यूनियन का सदस्य नहीं हूँ । मैं हड़ताल पर नहीं जा रहा हूँ। अगर सदस्य भी होता तो नहीं जाता । मैं मरजर का घोर समर्थक हूँ। और जहां तक अन्य मुद्दों की बात है वहाँ   और ज्यादा तथ्य और तर्क प्रस्तुत होने के बाद ही कोई राय बनाना ठीक होगा !
शुक्रिया !

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