गुरुवार, 9 जून 2016

मेरे बहुजन मित्रों - सवर्णों से मित्रता



मेरे बहुजन मित्रों !

हमें समाज के हर तबके से मित्र बनाने चाहिए । किसी को इस आधार पर नकारा नहीं जाना चाहिए कि वह सवर्ण है। किन्तु यह ध्यान रहेकि उनकी मित्रता उतनी कीमती नहीं कि अपनी पहचान, अपनी स्वतन्त्रता , अपने स्वाभिमान से समझौता करें ।
आप माँस खाते हैं तो खाइये । न तो – हम  मांस क्या लहसुन, प्याज भी नहीं खाते –कहकर खुद को श्रेष्ठ मानने वाले ब्राह्मणों के सामने मांस खाने के लिए अपराधबोध की जरूरत है, न ही –हम ब्राह्मण होकर भी सब मांस खाते हैं – कहकर खुद को क्रांतिकारी मानने वालों से अतिरिक्त सदाशयता की जरूरत है।
आप को जाति और धर्म से संबन्धित चर्चा से इसलिए मत बचिए कि आपके सवर्ण मित्र असहज होते हैं । ये मुद्दे हमारे लिए महत्वपूर्ण हैं , उनके लिए नहीं । वे हमारे राजनीतिक/सामाजिक विचारों के बाद भी हमारे मित्र बने रहें तो स्वागत  हैं, वरना उन्हे जाने दें ।
सवर्णों के बीच अपनी स्वीकार्यता के लिए बहुत आग्रही मत होइए । जिनके मन में आपके अस्तित्व से ही घृणा है ,आप मर कर भी उन्हे खुश नहीं कर सकते। न ही ऐसा करने की  जरूरत है। अतएव उनके लिए  उनके मापदंड के हिसाब से खुद में बदलाव लाने की जरूरत नहीं ।
आपके आइकॉन –चाहे अंबेडकर हों, कबीर हों,- उनके लिए उपहास के पात्र हैं। लेकिन उनके सामने न तो आपको शर्मिंदा होने की जरूरत है और न ही कोई सफाई देने की जरूरत है। अपने आइकॉन के लिए प्रेम और सम्मान खुल कर दिखाइए ।
आपके पहनावे, आपके रंग, आपके रहन  सहन आदि का मज़ाक बनाया जाये तो सहन न करें । करारा जवाब  दें । वे भले ही इंकार करें , इन मज़ाक की जड़ें उनके जातिगत उच्चता की ग्रंथि में छुपी होती हैं। इसकी वजह से दोस्ती टूटती है तो टूटने दें ।
अपने लिए प्रेम और स्वाभिमान रखिए !
#मेरे_बहुजन_मित्रों


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