रविवार, 19 जून 2016

यूनियन है कि माफिया !?



यूनियन है कि माफिया !?
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यूनियन या कहें ट्रेड यूनियन  कामगारों का संगठन है जिसका काम उनके हितों की रक्षा करना है । बैंकों में ढेर सारे यूनियन हैं। लेकिन इनका ढांचा लोकतान्त्रिक नहीं माफिया इस्टाइल में है जहां निचले स्तर पर के सदस्य सिर्फ लड़ने और मरने के लिए होते हैं और निर्णय सिर्फ टॉप बॉस करते हैं जिनकी सदस्यों के प्रति कोई जवाबदेही नहीं होती । कम से कम बैंक यूनियनों का यही हाल है ।
हाल  फिलहाल का घटनाक्रम देखिये । बैंकों के विलयन ( मर्जर ) की चर्चा चल; रही है। आस पास बात कीजिये तो आम बैंक कर्मी मरजर को लेकर उत्साहित है, लेकिन यूनियन इसका विरोध कर रही है । क्यों !? वजह बतौएंगे नहीं या चलताऊ ढंग से कुछ भी कह देंगे लेकिन ठोस  तर्क और तथ्यों के साथ दलील नहीं देंगे कि मरजर के क्या नुकसान हैं । इनके फायदे पर तो भूल के भी चर्चा नहीं करेंगे । कायदे से दोनों पक्ष देखे जाने चाहिए।
चलिये मान लिया कि दिमाग सिर्फ यूनियन लीडरों के पास है और हम नासमझ बैंक कर्मी। फिर जिन बैंकरों के प्रतिनिधि होने का ये दावा करते हैं , जिनके हित के लिए काम करने का दावा करते हैं , उनके सामने अपने निर्णय और कदमों का स्पष्टीकरण क्यों नहीं करते !? बैंक कर्मी उच्च शिक्षित श्रमिक हैं । उन्हे भेड़ों की तरह क्यों हाँका जा रहा है!? अगर आम बैंकरों की भावना/फीलिंग गलत है तो समझाइए कैसे , इससे पहले कि उन्हे लड़ाई में घसीटें !दिक्कत है कि यूनियन लीडर आम बैंकरों के प्रति ऐसी जवाबदेही महसूस नहीं करते । गलती हमारी भी है क्योंकि हम उनसे सवाल नहीं करते ।
जरूरी नहीं कि यूनियन हमेशा सही हो । याद दिलाना चाहूँगा बैंकों में कम्यूटरीकरण का यूनियन ने विरोध किया था। उनकी पेश चली नहीं । कल्पना कीजिये बिना कंप्यूटर के बैंकों का क्या हाल होता।?
जरूरी है कि आँख मूँद कर यूनियन पर भरोसा करने के बजाय उनसे सवाल किए जाएँ । उनकी जवाबदेही तय की जाये। अगर वे यूनियन को माफिया की तरह चलाना चाहते  हैं तो कहिए कि वे हमारे प्रतिनिधि नहीं !

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