सोमवार, 20 जून 2016

यूनियन है कि माफिया !? भाग -2



यूनियन है कि माफिया !? भाग -2
हमारे देश में राजनेता सबसे ज्यादा बदनाम बिरादरी है। लेकिन वे भी पाँच साल में कम से कम एक बार जनता के बीच याचक की भूमिका में जरूर जाते हैं । जनता के लिए काम करना पड़ता है । उनके दुख सुख में भागिदारी दिखानी पड़ती है।  क्योंकि उन्हे चुनाव में वोट चाहिए । प्रधानमंत्री तक संसद में उत्तरदायी है ।
लेकिन बैंक यूनियन के लीडर इनसे भी गए गुजरे हैं । क्योंकि वे लोकतान्त्रिक ढंग से चुने नहीं जाते । उनका चयन होता है , चुनाव नहीं जिसमें आम बैंकरों  की कोई भूमिका नहीं होती । पुणे की पेशवाई है जहां एक देशपांडे दूसरे देशपांडे को कमान सौंप देता है । आप चाहें तो मुगलिया सल्तनत भी कह सकते हैं । चयन प्रक्रिया के नाम पर रस्मअदायगी हो जाती है । निचले स्तर पर इससे भी बुरा हाल है ।कुछ लोगों को बस चुन लिया जाता है । कुछ लोग सिर्फ इसलिए कि वे टॉप लीडर को रोज गुड मॉर्निंग बोलते हैं ।
 यूनियन लीडर की  आम बैंकरों के प्रति कोई जवाबदारी नहीं। कभी कभी दर्शन देने आते हैं और आसाराम बापू टाइप प्रवचन दे कर जाते हैं । उनका रवैया यूं होता है गोया उन्होने हमारे पास आकर अहसान किया और हमें उनसे संतुष्ट हो जाना चाहिए ।
 यूनियन का ढांचा बिलकुल माफिया स्टाइल में हैं जहां पावर टॉप पर होता है और वितरण ऊपर से नीचे होता है । जहां आपकी ताकत लीडर से नजदीकी से नापी जाती है न कि इससे कि आप आम बैंकरों के लिए किस हद तक उपलब्ध हैं और किस हद तक इनके काम आ रहे हैं । ये लीडर बड़ी सुविधा से आपको और आपकी समस्या को सुनने से इंकार कर सकते हैं और आम बैंकर के पास कोई चारा नहीं बचता।आपकी समस्या तभी सुनी जाएगी जब आप लीडर के करीबी हैं यानि वे आपके मेम्बरशीप को कोई महत्व नहीं देते । जबकि हकीकत है कि इनकी सत्ता का आधार ही हमारी मेम्बरशीप है । लेकिन हम आम बैंकरों ने कभी सवाल नहीं किया और थोपे हुये नेताओं के पीछे अनमने ढंग से चल पड़ते हैं ।
गौर कीजिये। यूनियन की कार्यवाई में न पारदर्शिता बरती जाती है न ही जानकारी सब को उपलब्ध कराई जाती है । कुछ क्लोज लोगों का गैंग होता है जो निर्णय लेते हैं और उन्हे ही जानकारी होती है । ज़्यादातर काम मुंहजबानी होता है , लिखित में नहीं । मसलन आईआर मीटिंग में क्या चर्चा हुई, किन मुद्दों पर बात हुई , क्या नतीजा निकला आदि इसपर आपको कोई लिखित दस्तावेज़ उपलब्ध नहीं कराया जाता है ।
ये यूनियन लीडर इतने ऊंचे उड़ते है कि उन्हे आम बैंकरों की आवाज नहीं सुनाई पड़ती ।  उनकी खाल इतनी मोटी  है कि उनपर आलोचना का असर नहीं होता  । उनके आँख कान उनके चमचे हैं और वे वही देखते और सुनते हैं जो  वे उन्हें दिखाते और सुनाते हैं । वे सच सुनने और देखने के अभ्यस्त नहीं ।
जरूरी है कि यूनियन को झकझोरा जाये ।
डियर बैंकर !स्टैंड अप !स्पीक आउट !

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