सोमवार, 27 जून 2016

मूतना पोस्ट सिर्फ व्यस्कों के लिए



मूतना
पोस्ट सिर्फ व्यस्कों के लिए 
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-मूतते सभी हैं लेकिन यों दिखाते हैं जैसे उन्हे मूतने की जरूरत नहीं पड़ती है । वे यूं दिखाते हैं जैसे वे मूतते नहीं हैं।
- उन्हें मूतने के जिक्र से परेशानी है। उन्हे साहित्य में मूतने ले जिक्र से परेशानी है । फिल्म में कलाकारों को मूतते हुये दिखाने से परेशानी है । संभव है उन्हें मूतने में भी परेशानी होती हो।
- पुरुष होने के सबसे बड़े फ़ायदों में एक है कि वे कहीं भी किसी दीवाल , नाले के किनारे खड़ें ही सकते है मूतने के लिए ।
- स्त्री पुरुष समान हैं यह तभी माना जाएगा जब पुरुष सार्वजनिक जगहों पर मूतना छोड़ देंगे या महिलाएं सार्वजनिक स्थानों पर मूतना शुरू कर देंगी ।
- सार्वजनिक स्थान पर मूतता हुआ पुरुष समाधि को प्राप्त मनुष्य होता है। उनके आस पास खड़े लोग, सड़क का ट्रैफिक , उसका काम आदि सभी उस समय कोई मायने नहीं रखता । जैसे पूरी दुनिया का कोई अस्तित्व नहीं है । सारा ध्यान सिर्फ और सिर्फ मूतने पर । यह स्थिति तो ध्यान करने वाले के लिए भी दुर्लभ है।
- कभी कोई स्त्री सार्वजनिक जगहों पर मूतते हुये नहीं दिखाई देती । खुद के शरीर पर नियंत्रण के लिए उनको दी गई ट्रेनिंग जबर्दस्त होती है । अफसोस यह ट्रेनिंग पुरुषों को नहीं दी जाती  
- भारत में मूतने के लिए मूत्रालय न ढूँढे । मूतने वालों के लिए खेत खलिहान , बाजार , नाला , मैदान – सब मूत्रालय है ।
- अगर इस पोस्ट से आपकी भावना आहत हुई है तो आज से मुतना बंद कर विरोध दर्ज कराएं !

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