शनिवार, 18 जून 2016

संस्थानों में नियुक्ति



यह माना हुआ सच है कि व्यवहार में साहित्य, संस्कृति, खेल आदि से जुड़ी
संस्थाओं में सरकार अपने लोगों को स्थापित करती है। सबसे सही शख्स चुनने के बजाय अपने समर्थक को सरकार वरीयता देती है। यह उन्हे उपकृत करने का तरीका है । कोई भी सरकार ऐसे शख्स को पद नहीं देगी जो उनके लिए असुविधा खड़ी करे।
फिर भी, इतना ध्यान रखने की जरूरत है कि जिसे पद दिया जाये वह कम से कम उस पद की गरिमा बनाए रखे। भाजपा सरकार संस्थाओं में अपने लोग स्थापित कर रही है। इससे अलग अपेक्षा नहीं की जा सकती । लेकिन सेंसर बोर्ड में पहलाज निहलानी, निफ़्ट में चेतन चौहान , फिल्म इंस्टीट्यूट में गजेंद्र चौहान किसी भी तरह से उचित चुनाव नहीं है। भाजपा के पास बुद्धिजीवियों /संस्कृतिकर्मियों का भयानक अभाव है । ढंग के आदमी नहीं मिलते तो नौकरशाहों को ही कमान सौंप दें , लेकिन यूं अपनी और संस्थान की फजीहत न कराये !
अफसोस ! संस्थानों के भविष्य के लिए !

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