मंगलवार, 31 जनवरी 2017

डिजीधन मेला के आयोजन के लिए बैंक क्यों खर्च उठाए



भारत सरकार ने डिजीधन मेला आयोजन करने का निर्देश दिया है । जाहिर है कि बैंकों की सहभागिता तो होनी ही है । हालाँकि वित्तीय क्षेत्र से होने के कारण बैंक ग्राहकों को जागरुक करने के लिए पहले से पंफलेट- विज्ञापन आदि देती है । शाखा में आने वाले ग्राहकों को शिक्षित करने का प्रयास किया ही जाता है । हाँ , बड़े स्तर पर सरकार के सहयोग से करने का भी अपना महत्व है ।
लेकिन आश्चर्य की बात है कि ऐसे आयोजन पर सरकार खर्च करने के बजाए बैंकों से स्पॉन्सरशिप के नाम पर पैसे की वसूली भी कर रही है । बैंक वाले अपना व्यवसाय छोड़ कर समय और श्रम वित्तीय शिक्षण जैसे गैर लाभकारी काम में लगाएगी । इसके लिए बैंक को भूगतान होने के बजाए बैंक वाले ही आयोजन का खर्च उठाएँ , यह कैसी उलटबाँसी है ? वित्तीय शिक्षण से एतराज नहीं , लेकिन यह काम शाखा परिसर में भी हो सकता है । सरकार के बताए जगह पर स्टल लगाना है तो जगह आदि का खर्च सरकार उठाए ।
यह तर्क सही नहीं हो कि चूँकि बैंक सरकारी है तो सरकार की बात माननी होगाी ।ध्यान दीजिए कि बैंक सरकार का अंग - जैसे बीडीओ ऑफिस नहीं है , बल्कि उसका उपक्रम है । क्या सरकार एयर इंडिया के विमानों में चढ़ने के लिए भूगतान नहीं करती ? क्या सरकार दूरद्रशन पर सरकारी विज्ञापन दिखाने के लिए भूगतान नहीं करती ? करती है । तो फिर बैंक को ही सेवा के बदले भूगतान क्यों नहीं होता ? उल्टे सरकारी योजनाओं के लिए बैंक का इस्तेमाल कर बैंकों का खर्च बढ़ाया जा रहा है जिसमें बैंक को लाभ भी नहीं है ।
मैं सोशल बैंकिंग का हिमायती हूँ , पर फिर प्रॉफिट के लिए हल्ला नहीं मचाना चाहिए ।
#बैंक_बैंकर

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