सोमवार, 23 जनवरी 2017

दिलीप यादव के अनशन पर प्रतिक्रिया



सवर्णों द्वारा आरक्षण के विरुद्ध मेरिट का शोर मचाया जाता है । लेकिन उनका मेरिट जाति विशेष से संबंद्ध होना है । वरना हाल फिलहाल जेएनयू में उलटबाँसी देखिए कि पीएचडी आदि में नामांकन में लिखित परीक्षा के बजाय वायवा को आधार बनाया जा रहा है । जबकि लिखित परीक्षा वस्तुनिष्ठ आकलन का बेहतर तरीका है । बहुजन छात्र वायवा का वेट 30 % से 10 % प्रतिशत करने की माँग कर रहे थे ।उल्टे वायवा का 100 % कर दिया गया है ।
जेएनयू की समीति ही वायवा में बहुजन छात्रों से भेदभाव की बात मान चुकी हैं । फिर भी सुधार के बजाए माँग करने वाले बहुजन छात्रों का दमन हो रहा है । कई बहुजन छात्र निलंबित किए गए । आमरण अनशन पर बैठे दिलीप यादव का स्वास्थ्य तेजी से गिर रहा है ।
मेरिट ही जाँचना है तो लिखित परीक्षा तो है ही । फिर वायवा में क्या जनेऊ चेक क्या जाता है ?
ये विश्वविद्यालय और दुनिया भर की आदर्शवादी और क्रांतिकारी बाते करने वाले शिक्षक सवर्ण जाति से आते हैं , घनघोर जातिवादी हैं और अपना वर्चस्व बरकरार रखना चाहते हैं । वरना शिक्षकों में ईमानदारी होती तो वे जाति देखकर नम्बर नहीं देते ।ये वे लोग है जो अपने बेटों, बहुओं, बेटियों, दामादों , भाँजों , भतीजों को वादा करते हैं - पीएचडी में एडमीशन ले लो , लेक्चरर तो बनवा ही देंगे । वे चाहें तो अपने पालतू कुत्ते को भी लेक्चरर बनवा दें ।
जरुरी है कि विश्वविद्यालय, प्रशासन , सरकार - सब पर दवाब बनाया जाए और सुनिश्चित किया जाए कि विश्वविद्यालयों में बहुजनों का प्रतिनिधित्व और बढ़े । छात्र , शिक्षक और अधिकारी तीनों वर्गों में !

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