सवर्णों द्वारा आरक्षण के विरुद्ध
मेरिट का शोर मचाया जाता है । लेकिन उनका मेरिट जाति विशेष से संबंद्ध होना है ।
वरना हाल फिलहाल जेएनयू में उलटबाँसी देखिए कि पीएचडी आदि में नामांकन में लिखित
परीक्षा के बजाय वायवा को आधार बनाया जा रहा है । जबकि लिखित परीक्षा वस्तुनिष्ठ
आकलन का बेहतर तरीका है । बहुजन छात्र वायवा का वेट 30 % से 10 % प्रतिशत करने
की माँग कर रहे थे ।उल्टे वायवा का 100 % कर दिया गया है ।
जेएनयू की समीति ही वायवा में बहुजन छात्रों
से भेदभाव की बात मान चुकी हैं । फिर भी सुधार के बजाए माँग करने वाले बहुजन
छात्रों का दमन हो रहा है । कई बहुजन छात्र निलंबित किए गए । आमरण अनशन पर बैठे
दिलीप यादव का स्वास्थ्य तेजी से गिर रहा है ।
मेरिट ही जाँचना है तो लिखित परीक्षा
तो है ही । फिर वायवा में क्या जनेऊ चेक क्या जाता है ?
ये विश्वविद्यालय और दुनिया भर की
आदर्शवादी और क्रांतिकारी बाते करने वाले शिक्षक सवर्ण जाति से आते हैं , घनघोर जातिवादी हैं और अपना वर्चस्व बरकरार
रखना चाहते हैं । वरना शिक्षकों में ईमानदारी होती तो वे जाति देखकर नम्बर नहीं देते
।ये वे लोग है जो अपने बेटों, बहुओं, बेटियों,
दामादों , भाँजों , भतीजों
को वादा करते हैं - पीएचडी में एडमीशन ले लो , लेक्चरर तो
बनवा ही देंगे । वे चाहें तो अपने पालतू कुत्ते को भी लेक्चरर बनवा दें ।
जरुरी है कि विश्वविद्यालय, प्रशासन , सरकार - सब पर
दवाब बनाया जाए और सुनिश्चित किया जाए कि विश्वविद्यालयों में बहुजनों का
प्रतिनिधित्व और बढ़े । छात्र , शिक्षक और अधिकारी तीनों
वर्गों में !
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें