गुरुवार, 19 जनवरी 2017

पोस्ट बैंकरों के लिए - दवाब में न आएँ !



पोस्ट बैंकरों के लिए !
नोटबंदी के सिलसिले में रिजर्व बैंक के गवर्नर ऊर्जित पटेल को संसदीय समिति का सामने पेश होना पड़ा है और उनके सवालों का जवाब देना पड़ रहा है । रघुमान राजन - जो अपनी बात दो टूक कहने के लिए जाने जाते थे और सरकार के दवाब मे नहीं आते थे -के उलट पटेल एक "यस मैन " के रुप में जाने माने जा रहे थे । और रिजर्व बैंक की स्वायत्ता और साख को दाँव पर लगाने के लिए उनकी आलोचना होती रही है ।
हमारे जैसे आम बैंकरों के लिए इस प्रकरण में एक सबक है । यह स्थिति शाखा स्तर पर बैंककर्मियों के पास भी आती है । जब एक तरह बिजनेस बढ़ाने के दवाब होते हैं , उच्चाधिकारियों का दवाब होता है , सरकार -जिलाधिकारी कार्यालय , रसूखदार , धनी , राजनीति्क संबंध वाले ग्राहकों का दवाब होता है । ऐसे में कई बार प्रतिरोध करना संभव नहीं होता है । कई बार व्यवहार में हमें ही यह ध्यान नहीं रहता है कि ग्रहक को सेवा देने और बिजनेस बढ़ाने के चक्कर में कब हमने नियमों की सीमारेखा लाँघ दी ।
ध्यान देने वाली बात है कि ऐसी स्थिति में कोई भी हमारे बचाव में नहीं आने वाला है । आखिरकार हम ही जिम्मेदार ठहराए जाएंगे । हमसे ही जवाबतलब होगा ।उस समय वे दवाब भी नहीं होंगे जो निर्णय लेते समय थे । तो जाँचकर्ताओं और खुद आपको भी वे निर्णय गलत लगेंगे और आप बचाव की स्थिति में नहीं होंगे ।
इसलिए निर्णय लेते समय तत्कालिक दवाबों के बजाए नियमों और संस्थान के व्यापक हित में निर्णय लेना चाहिए । निस्संदेह कहना आसान है और करना मुश्किल - लेकिन इसे लाइटहाउस की तरह इस्तेमाल करना चाहिए ।
#बैंक_बैंकर

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