शनिवार, 14 जनवरी 2017

संस्थान और सदस्य



कोई भी संस्थान - चाहे वह परिवार हो , कंपनी हो , सेना हो - सवाल करने वालों को पसंद नहीं करता । कोई भी सत्ताधारी - चाहे वह पिता हो , बॉस हो , नेता हो - सावल को अपनी सत्ता को चुनौती के रुप मे देखता है । जनसामान्य के लिए भी वह एक ट्रबलमेकर होता है ।
उसके सवालों का जवाब देने के बजाए , उसके शंकाओं पर विमर्श करने के बजाए उनसे ही सवल होने लगते हैं । तुम्हें क्या प्रॉब्लम है । हकीकत है कि समस्या सभी को होती है । लेकिन वे बिगाड़ के डर से आवाज नहीं उठाते हैं । वे समस्या के समाधान के बजाए खुद के लिए जुगाड़ बैठाने में भिड़ जाते हैं । या इसे ही नियती मान कर एडजस्ट करते हैं ।
सिस्टम के पास तमाम साधन होते हैं कि किसी भी आवाज के कुचल देने के लिए । इसका अहसास उन्हें भी होता है जो आवाज उठाते हैं । डर उन्हें भी लगता है । लेकिन वे नुकसान झेल कर भी सच कहने का साहस करते हैं ।
ऐसे लोग संस्थान को नुकसान पहुँचाने वाले, बदनाम करने वाले माने जाते हैं । लेकिन हकीकत है कि नुकसान तो वे सत्ताधारी पहुँचाते हैं जो सत्ता का उपयोग व्यापक हित के बजाए अपने निजी लाभ लोभ के लिए करते हैं ।समस्याओं से मुँह चुराते हैं ।
कोई भी संस्थान अपने सदस्यों को कमजोर कर , डरा कर मजबूत बनी नहीं रह सकती है । संस्थान में अनुशासन जरुरी है , लेकिन अनुशासन के नाम पर दमन को प्रश्रय नहीं दिया जा सकता है ।
एक सैनिक के वीडियो अपलोड करने पर प्रतिक्रिया ।
यह बैंक के बारे में भी सच है ।

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