गुरुवार, 19 नवंबर 2015

स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता की असंभाव्यता

स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता की असंभाव्यता
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स्वतंत्र और आत्मनिर्भर होने की चाह ईश्वर और मोक्ष की कामना की तरह असंभव और अप्राप्य है !हमारा जन्म ही दूसरों के माध्यम से होता है ! उन्हे रक्त सम्बन्धों के आधार पर भले ही अपना कहें , होते हैं वे भी दूसरे !हम जो खाते हैं वह खुद नहीं उपजाते !जो पहनते हैं वे दूसरे तैयार करते हैं !हमारे अस्तित्व के लिए जरूरी लगभग सभी चीजों के लिए हम दूसरों पर निर्भर होते हैं !मरते भले ही अकेले हों , यह ख़्वाहिश तो बनी रहती है कि मरते समय हम अकेले न हो !
 एक आत्मनिर्भर और स्वतंत्र जीवन की अपेक्षा रखने की इच्छा रखने वाले व्यक्ति का सबसे बड़ा दुख इस सच्चाई का एहसास है कि वह कभी भी पूर्ण रुपेन स्वतंत्र और आत्म निर्भर नहीं हो सकता !
बुखार मे उपजा ख्याल !

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