बुधवार, 14 दिसंबर 2016

बैंक में भ्रष्टाचार




इन दिनों मीडिया और पब्लिक में बैंकरों पर सुनियोजित हमला बढ़ रहा है । ऐसा वातावरण रचा जा रहा है कि विमुद्रीकरण के फेल होने का कारण बस बैंकर है ।
इस संबंध में कुछ टिप्पणियाँ
- बैंकर भी इसी समाज से आते हैं , वे उतने ही ईमानदार या बेईमान हैं जितना कोई आम भारतीय ।
- बैंक चूँकि फाइनेंस से संबंधित है, इसलिए यह फ्रॉड प्रॉन इंडस्ट्री है । कहने का मतलब यह है कि इसमें फ्रॉड की संभावना बाहरी लोगों और कर्मियों द्वारा भी हमेशा बनी रहती है ।
-इसलिए बैंक में अधिकांश काम के लिए दो कर्मियों की जरुरत होती है । चेक और काउंटर चेक की व्यवस्था है । अंदरुनी जाँच के साथ , आरबीआई , ऑडिट, सतर्कता विभाग - अंदरुनी और बाहरी दोनों , औचक नीरिक्षण आदि कई चेक की व्यवस्था है । इसके बाद भी फ्रॉड होते हैं और दोषी पकड़े जाते हैं , उन्हें सजा होती है । कई बार नौकरी भी जाती है और जेल भी होती है ।
- टाईम्स ऑफ इंडिया के साइट पर जिन तरीकों द्वारा बैंकरों की संलिपत्ता बताई जा रही है , वे भी फ्रॉड प्रॉन एरिया माने जाते हैं और उन पर ज्यादा निगरानी होती है । उनका पकड़ा जाना महज वक्त की बात है । और यह बैंक के रुटीन में आता है । बिना सरकार और बाहरी एजेंसी के दखल के भी बैंक अपना अंदरुनी चेक सिस्टम दुरस्त रखती है ।
- कई मामलों में बैंकरों की संलिपत्ता की बात करके पत्रकार महोदय बैंकिंग के बारे में अपने अज्ञान का प्रदर्शन कर रहे हैं । मसलन एक बैंक के लॉकर में दस करोड़ रुपए मिले । नियमानुसार बैंक सिर्फ लॉकर किराये पर देती है । उसके भीतर रखी सामग्री ग्राहक की जिम्मेदारी है । बैंकर को इसके बारे में न तो पता होता है और न ही उसे इस बारे में पुछताछ करने का अधिकार है । जब ग्राहक लॉकर ऑपरेट करता है तो वहाँ बैंकर नियमानुसार उपस्थित नहीं रह सकता है । ऐसे में लॉकर से नकदी बरामद होने पर बैंकर की संलिपत्ता का सवाल ही नहीं उठता । जब अधिकार नहीं तो जवाबदेही भी नहीं बनती है ।
- मैं भ्रष्ट बैंकरों का समर्थन नहीं करता और न ही उनका बचाव करना चाहता हूँ । न ही यह कहना चाहता हूँ कि बैंक में सब कुछ सही है । लेकिन निश्चय ही इतना अंधेर भी नहीं है , जितना सरकार को बचाने के लिए बैंक में दिखाया जा रहा है । आलोचना जरुर कीजिए , लेकिन फैक्ट और लॉजिक सही रखिए ।
#बैंक_बैंकर























कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें