महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने एक बैंक
विशेष ( वही बैंक जिसे महाराष्ट्र के लोग आमची बैंक कहते हैं और बैंक विशेष के
ब्रांच को बैंक नहीं मुहल्ले का किराना दुकान समझतेहैं और उस बैंक के कर्मियों को
घर का छोटू ) को कुछ बड़े स्टेशनों पर नोट बदली के लिए काउंटर खोलने के लिए कहा ।
विडंबना देखिए कि बैंक मान गई और रेलवे ने सुरक्षा का हवाला देते हुए बात नहीं
मानी ।
जबकि बैंक को ऑब्जेक्शन लेना चाहिए ।
रेलवे स्टेशन और वह भी चर्चगेट और सीएसटी जैसे स्टेशन पर काउंटर खोलने के लिए बैंक
को कई तरह के इंतजाम करने पड़ेंगे । नकद की सुरक्षा भी बड़ा मसला है । बैंक
कर्मियों को सुरक्षा - भीड़ के उग्र होने की स्थिति में जो रेल प्लेटफॉर्म जैसी
जगहों पर बैंक के मुकाबले ज्यादा उन्मादी हो सकती है । - का मसला भी है । इसके
अलावा भी कई मुद्दे हैं ।
रेल को सिर्फ जगह उपलब्ध करानी थी , लेकिन उसके लिए भी उन्होनें अनुमति नहीं दी ।
लेकिन बैंक आसानी से मान गई ।
वजह यह है कि बैंकरों ने अपनी रीढ़ की
हड्डी और आवाज खो दी है । वे तो इसी पर फूल कर कुप्पा हो गए होंगे कि मुख्यमंत्री
की फरमायश है और उन्हें खुश करने का एक मौका मिला है । वे यस सर पहले बोलते हैं और
होगा कि नहीं यह बाद में सोचते हैं ।
यह स्थिति लगभग सभी बैंकों की है ।
आश्चर्य नहीं कि बैंकरों ने अपना सम्मान और महत्व दोनों खोया है ।
अफसोस !
#बैंक_बैंकर
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