बुधवार, 16 नवंबर 2016

मर्द का रोना

मर्द होने की अपना मजबूरियाँ होती हैं , वह खुल कर रो भी नहीं सकता । रोती हुई औरत सहज संवीकार्य है, लेकिन मर्द का रोना सहज नहीं माना जाता । उसे नौटंकी माना जाता है है या उसके नामर्द होने की निशानी । मौगा का खिताब तो मिल ही जाता है । वह उपहास का पात्र होता है ।
औरत को दुख होता है , वह रो देती है और उसे सहानुभूति मिलती है । मर्द को दुख होता है तो रोता नहीं , गुस्सा कर गालियाँ देता है । बदले में उसे और परेशानी होती है ।
यह नहीं कहा जा सकता है कि सत्ता के शीर्ष पर बैठे पुरुष को डर नहीं लगता है या उसे असुरक्षा का अहसास नहीं होता है । दरअसल वे कहीं ज्यादा अकेले होते हैं । वे किसी पर भरोसा नहीं कर पाते । उन्हें अपने सिपाहसलारों से भी बच कर रहना पड़ता है । जब वे कमजोर पड़ते हैं , उन्हें भावनात्मक सहारे के लिए कोई नजर नहीं आता ।
अकेला व्यक्ति क्रुर होता जाता है । और क्रुर व्यक्ति अकेला होता जाता है ।
मोदी के रोने की खबर पर आए ख्याल । लेकिन यह पोस्ट मोदी के बारे में नहीं है । न उसके समर्थन में और न विरोध में । सामान्य कथन है ।
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