शनिवार, 4 फ़रवरी 2017

नागालैंड में अर्बन लोकल बॉडी में महिला आरक्षण को समर्थन

कोहिमा नागालैंड में अर्बन लोकल बॉडी में 33 % आरक्षण महिलाओं के दिये जाने के विरोध में नागालैंड में हिंसा भड़की हुई है ।
खबर पढ़कर थोड़ी हैरानी हुई । इसलिए कि पूर्वोत्तर और यहाँ के आदिवासी समाज मातृप्रधान माने जाते हैं । हिंदी बेल्ट के मुकाबले यहाँ महिलाओं को अधिक स्वतंत्रता मिली हुई है । ऐसे में महिलाओं के आरक्षण के खिलाफ हिंसा समझ में नहीं आया । अगर पूर्वोत्तर के मातृप्रधान क्षेत्र का दावा सही है तो बिना आरक्षण के ही महिलाओं का प्रयाप्त प्रतिनिधित्व होना चाहिए । अगर नहीं है तो भूलसुधार के रुप में इसका स्वागत होना चाहिए ।
याद नहीं आता कि जब बिहार- जो हिंदी बेल्ट का हिस्सा है जो महिलाओं को आजादी न देने के लिए कुख्यात है - में नीतीश सरकार नें पंचायतों में 50 % महिला आरक्षण लागू किया तो उसके खिलाफ कोई हिंसक प्रदर्शन हुआ हो ।
यह भी नोट करने लायक बात है कि अभी तक फेसबुक पर नागालैंड के मामले में महिलाओं के समर्थन में कोई कैंपेन नहीं देख रहा हूँ । यही कुछ दिन पहले किसी संस्था द्वारा ब्रा शब्द पर सेंसर लगाने पर ब्रा पर थोक के भाव में पोस्ट देखने को मिले । यहाँ जब शासन में भागिदारी सरकार द्वारा दिए जाने और स्थानीय संगठनों द्वारा हिंसक विरोध हो रहा है इसका समर्थन तो दूर संज्ञान भी नहीं लिया जा रहा है । मेट्रो सवर्ण एलिट महिलाओं का नारीवाद सिर्फ उनके वर्ग तक सीमित है , उल्टी प्राथमिकताओं का शिकार है - ये बार बार साबित होता रहा है ।
जरुरी है कि नागालैंड में महिलाओं के आरक्षण को समर्थन दिया जाए ।

शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2017

भावना आहत करने के नाम पर विमर्श पर रोक नहीं लगाया जा सकता है ।

बांग्लादेश में सबसे बड़े पुस्तक मेले के आयोजन के पहले पुलिस ने आयोजकों , लेखकों , प्रकाशकों के लिए चेतावनी जारी की है कि वे धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाले किताबों की बिक्री न करें ।
यह हद दर्ज की बेवकुफाना चेतावनी है । यह बांग्लादेश के शैसन द्वारा कट्टरपंथियों के सामने घूटने टेकना है ।हाल के दिनों में बांग्लादेश में कट्टरपंथियों के हौसले बढ़े हैं । उसी अनुपात में नास्तिक , वामपंथी , स्वतंत्र चिंतकों/ लेखकों /पत्रकारों पर हमले बढ़े हैं । यहाँ तक कि खुलेआम हत्याएँ की गई हैं ।
ऐसे में शासन की चेतावनी उन कट्टरपंथियों के लिए होनी चाहिए जो विमर्श नहीं कर सकते हैं और हर आलोचना विरोध को बंदूक और खून के दम पर कुचलना चाहते हैं । उन्हें चेतावनी दी जानी चाहिए कि कानून व्यवस्था हाथ में न लें और किताब/लेख का जवाब लिख कर दें , गोली से नहीं ।
भावना भड़काने का आरोप लगाकर चिंतन मनन विमर्श शोध पर विराम नहीं लगाया जा सकता है । बांग्लादेश को याद रखना चाहिए कि वह पाकिस्तान से अलग दूसरा पाकिस्तान बनने के लिए नहीं हुआ था ।

मेरे बहुजन मित्रों - सरकारी नौकरी सत्ता में घूसपैठ है

आरक्षण पर हमले तो होते ही रहे हैं । आगे भी होते रहेंगे । विरोध का एक आधार यह भी है कि आरक्षण द्वारा सभी को रोजगार नहीं दिया जा सकता है । और नौकरी की संख्या घटती ही जा रही है । विनिवेश के कारण कई सरकारी उपक्रम बंद हुए हैं । कई विभागों में तदर्थ भर्ती कर के काम चलाया जा रहा है ।
उपर्युक्त बात में दम है । लेकिन बहुजन मित्रों को याद रखना चाहिए कि आरक्षण सिर्फ नौकरी पाने के लिए नहीं है , शासन और सत्ता में भागिदारी है । सत्ता संस्थानों के द्वारा ऑपरेट करती है । इन संस्थाओं में बहुजनों का बहुमत होना ही चाहिए । पुलिस , लोक सेवा आयोग की नौकरियाँ , आदि द्वारा संस्थाओं में घूसपैठ संभव है ।
आजीविका व्यवसाय , उद्यम आदि द्वारा कमाया जा सकता है और इसका अपना महत्व है , लेकिन सत्ता में भागिदारी के लिए नेता बनने और चुनाव लड़ने के अलावा यही एक तरीका आम बहुजनों के लिए उपलब्ध है ।
इसलिए बहुजनों के लिए सरकारी नौकरी का अपना महत्व है । जहाँ आरक्षण नहीं है - सेना और न्यायालय आदि लेकिन सत्ता केंद्र हैं वहाँ आरक्षण लागू करवाने और बिना आरक्षण के भी घूसपैठ करने और बहुमत में आने का प्रयास जारी रहना चाहिए ।
#मेरे_बहुजन_मित्रों

गुरुवार, 2 फ़रवरी 2017

धर्म और उत्सव

सरस्वती पूजा हो , काली पूजा हो, दूर्गा पूजा हो , सभी में देखिएगा कि नाच गाना , अश्लील और फूहड़ गाने , पंडाल के पीछे शराब आदि चलता है । इन पर उँगली उठाइए तो मुसलमानों , इसाइयों , नास्तिकों आदि का हवाला देकर बचाव किया जाता है । भले ही नितांत धार्मिक हिंदू भी इन सबसे दूखी हो । वे बिगाड़ के डर से / धर्म विरोधी समझे जने के डर से चूप रहते हैं ।
समस्या की जड़ है कि समाज में शराब को शैतान का पेय मान लिया गया है । इसे चाय/कॉफी आदि की तरह सामान्य पेय माना ही नहीं जाता है । नाचना भी एक फूहड़ काम माना जाता है । इसलिए हिंंदी बेलंट में कोई नाच का आम जन में लोकप्रिय और स्वीकृत नृत्य स्वरुप नहीं मिलता है । लेकिन धार्मिक उत्सव के नाम पर छूट मिल जाती है । साल में एकाध बार ही तो पीता खाता है , हुड़दंग करता है - इस वजह से लोग आँखे मुँद लेते हैं ।
निदान ये है कि शराब /नृत्य को सहजता से स्वीकृत किया जाए । यह साल में एकाध बार होने वाला नहीं सप्ताहांत वाला कार्यक्रम होना चाहिए । इसके लिए महँगे बार या डिस्को की जरुरत नहीं होना चाहिए । लोग मैदानों में , घरों में मिले , नाचे गाएँ , मर्जी हो तो नियंत्रण में शराब भी पियें । नतीजा यह होगा कि धार्मिक उत्सवों की आढ़ लेना बंद कर देंगे और यह नियंत्रित भी रहेगा ।
नास्तिक होने के बावजूद धर्म /त्योहार मनाने की स्वतंत्रता का हिमायती हूँ । आलोचना गलत को इंगित करने के लिए है । वैसे धर्म /त्योहार आदि की सफाई/सुधार करने की जिम्मेदारी धार्मिकों की बनती है , नास्तिकों की नहीं ।
उत्सव को धर्म से अलग कीजिए । यह दोनों के लिए अच्छा है ।

तुष्टिकरण मुस्लिम बनाम हिंदू व अन्य

गौर कीजिए
- सरकारी स्कूलों /कॉलेजों में भी सरस्वती पूजा पूरे कर्मकांड के साथ मनाई जाती है ।
- विश्वकर्मा पूजा रेलवे और अन्य सार्वजनिक उपक्रमों में मनाई जाती है ।
- सरकारी बैंक की हर शाखा में लक्ष्मी गणेश की मूर्ति लगाई जाती है गोया बैंक कोई मंदिर है ।
- सिक्खों को कृपाण और केश रखने की इजाजत है ।
- जैन पर्व पर सरकार मांसाहार की बिक्री पर रोक लगा देती है ।
लेकिन बदनाम सिर्फ मुसलमान होता है - मुस्लिम तुष्टिकरण के नाम पर !कभी सुना - हिंदू तुष्टिकरण , सिख तुष्टिकरण , जैन तुष्टिकरण !
मुसलमानों के मामले में आम नागरिक अधिकार भी संघ /भाजपा से जुड़े लोगों को तुष्टिकरण लगता है और हिंदूओं को संसकृति के नाम पर मिलने वाली गैरजरुरी छूटें भी जन्मसिद्ध अधिकार !

बुधवार, 1 फ़रवरी 2017

मेरिट कैसे छिनी जाती है

मेरिट कैसे छिनी जाती है यह देखना हो तो हाल में मिर्चपुर की घटना देखिए ।
खबरों के अनुसार एक खेल प्रतियोगिता हुई तो एक दलित जीत गया । फिर जाति के कुंठा से ग्रस्त लोगों ने टीका टिप्पणी की और मारपीट तक बात पहूँची । यहाँ तक कि दलित परिवारों को गाँव छोड़ना पड़ा ।
खेल में काफी हद तक प्रदर्शन वस्तुनिष्ठ ढंग से मापा जा सकता है । यकीनन , दलित ने अपने प्रदर्शन के दम पर ही खेल जीता । लेकिन बाद की घटना दर्शाती है कि कैसे मेरिट/प्रतिभा की हत्या की जाती है ।
कल्पना कीजिए कि आगे इस घटना का परिणाम क्या होगा ? दलित अपने जान माल की सुरक्षा के लिए ऐसी प्रतियोगिता में भाग लेना बंद कर देंगे । जो करेंगे वे जीतने की कोशिश नहीं करेंगे । आगे चलकर संभव है वे खेल के बारे मं सोचना ही बंद कर दें । और बाद में सवर्ण कहेंगे - इन लोगों में तो मेरिट ही नहीं होता । दम है तो मेरिट दिखाए ।
मारपीट की घटना दलितों का दबाने और सवर्ण वर्चस्व को बरकरार रखने के लिए है । आप सहज ही अनुमान लगा सकते हैं कि अतीत में किस तरह सत्ता के दम पर बहुजनों के मेरिट की हत्या की गई होगी ।

मेरे बहुजन मित्रों - आप सरस्वती पूजा मत मनाइए ।

मेरे बहुजन मित्रों -
आप सरस्वती पूजा मत मनाइए ।
आपके लिए शिक्षा जरुरी है ।
आपके लिए पढ़ना जरुरी है ।
आपके लिए लिखना जरुरी है ।
आपके लिए विचार विमर्श के मंच बनाना और चलाना जरुरी है ।
आपके लिए पुस्तकालय/विद्यालय बनाना और चलाना जरुरी है ।
सरस्वती पूजा इन सब में सहायक नहीं है ।
अपनी संस्कृति बनाइए और चलाइए ।
मौज मस्ती ही करनी है तो पूजा पाठ के छद्म में नहीं खुल कर कीजिए !
ब्राह्मण संस्कृति ( जिसे वे हिंदू संस्कृति के छद्म रुप में पेश करते हैं ) का हिस्सा मत बनिए