शुक्रवार, 14 जुलाई 2017

नीतीश कुमार की महात्वाकांक्षा

नीतीश कुमार की महात्वाकांक्षा प्रधानमंत्री बनने की है । पिछले वर्षों में उन्होंने जितनी भी चालें चलीं ,सब इसी लक्ष्य को ध्यान में रखकर चलीं । बिहार में 8 साल चल चुके भाजपा के साथ गठबंधन को तोड़ने के पीछे भी यही मंशा थी । वे मानकर चल रहे थे कि 2014 के लोकसभा चुनाव में काँग्रेस की वापसी नहीं होने वाली और भाजपा बहुमत से दूर रहेगी ।ऐसे में वे एनडीए के सर्वस्वीकार्य नेता के रुप में प्रधानमंत्री बन सकते थे ।मोदी का विरोध भी इसी गणित का हिस्सा था । ऐसा न होने पर भी जोड़तोड़ से वे तीसरे मोर्चे के मुखिया के बतौर प्रधानमंत्री बन सकते थे । लेकिन भाजपा के प्रचंड जीत से उनका गणित गड़बड़ा गया ।
फिर उन्होंने बिहार में सत्ता बचाने के लिए लालू से गठजोड़ किया और कम सीट जीतने के बाद भी मुख्यमंत्री बने । लेकिन लगता है कि वे फिर एक बार प्रधानमंत्री बनने की महात्वाकांक्षा के लिए बिहार सरकार दाँव पर लगाने के लिए तैयार हैं । हालाँकि महात्वाकांक्षा गलत नहीं है । लेकिन एक राज्य में सीमित पार्टी और गिनती के सांसद के भरोसे यह महात्वाकांक्षा सफलीभूत नहीं होगी ।नीतीश कुमार के लिए लिए तीसरा मोर्चा ही सबसे सही दाँव है ।
हालाँकि नीतीश कुमार चाहें तो बिहार के मुख्यमंत्री के तौर पर भी इतिहास में दर्ज हो सकते हैं । हालाँकि उनकी बिहार की राजनीति में एक महत्वपूर्ण भूमिका रही है , अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है ।एक अनिश्चित भविष्य की कल्पना में एक स्थिर सरकार को गिराना गलती होगी । और पहली बार गलती करके बच तो गये, शायद दूसरी बार न बचे !

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें