शनिवार, 15 अक्तूबर 2016

तीन तलाक : कुछ टिप्पणियाँ



तीन तलाक : कुछ टिप्पणियाँ
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- तलाक बुरी चीज नहीं है । यदि शादी नहीं चल रही है तो दोनों पक्षों को इससे अलग होने का अधिकार है और होना चाहिए ।
- तलाक की प्रक्रिया सरल और सहज होनी चाहिए , हालाँकि इसका प्रयोग आखिरी विकल्प के रुप में होना चाहिए । इस बारे में बेहतर निर्णय संबद्ध पक्ष ही कर सकते हैं ।
- मैं तलाक का समर्थन करता हूँ , लेकिन तीन तलाक का नहीं । क्योंकि इस संबंद्ध में जो घटनाएँ प्रकाश में आती हैं , उसके रु में शादी और तलाक मजाक की तरह दिखता है । यदि शादी के लिए गवाह और दोनों पक्षों की रजामंदी जरुरी है तो तलाक के लिए भी यही प्रक्रिया होनी चाहिए । शादी का दस्तावेज होता है तो तलाक का भी होना चाहिए ।
- हलाला को किसी तरह समर्थन नहीं किया जा सकता है । सभ्य समाज में इसकी कोई जगह नहीं होनी चाहिए । इसे तोड़ने के लिए कानून से ज्यादा संबंद्ध पक्ष का साहस ज्यादा जरुरी है । यदि दोनों पक्ष तलाक के बाद फिर साथ होना चाहते हैं तो बस रहना शुरु कर दें । शादी करना अनिवार्य लगे तो रजिस्टर्ड शादी है ही । मौलाना फतवा देता रहे । आपकी बला से ।
- भारत में हर धर्म का पालन करने का अधिकार सुरक्षित है । लेकिन धर्म के नाम पर उन प्रथाओं /मान्यताओं आदि को जारी नहीं रहने दिया जा सकता है जो उन मूल्यों के खिलाफ हैं जो हमने मानव सभ्यता के विकास क्रम में सीखा है और अब धर्मांधों को छोड़कर सभी के लिए स्वीकार्य है ।
- इस बारे में कोई शक नहीं कि भाजपा और संघ समान नागरिक संहिता का मुद्दा सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के लिए करती है । हालाँकि तीन तलाक का मामला समान नागरिक संहिता का एक अंग है , लेकिन पूरा नहीं । फिर भी इस मुद्दे से सिर्फ इसलिए नहीं दरकिनार किया जा सकता है कि इसे भाजपा उठाती है । वैसे इसके लिए याचिका मुस्लिम महिलाओं ने ही डाला है । यह मामला मुस्लिम व अन्य का नहीं है , बल्कि मुस्लिम महिला बनाम मुस्लिम पुरुष का है ।
- इस बारे में कोई कानून का जानकार ही बता सकता है लेकिन जहाँ तक मेरी जानकारी है यदि कोर्ट से शादी की जाए तो जोड़ा किसी भी धर्म का है , वे पर्सनल लॉ के बजाए विशेष विवाह अधिनियम से ही संचालित होते हैं और महिला के सभी अधिकार सुरक्षित रहते हैं । ऐसे में जो मुस्लिम महिला आर्थिक रुप से स्वतंत्र है , शिक्षित हैं , संपन्न हैं वे निकाह के बजाए कोर्ट में शादी कर अपने लिए बेहतर डील पा सकती हैं । यह एक तदर्थ व्यवस्था है , लेकिन इससे एक स्वस्थ परंपरा की शुरुआत होगी ।
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