नास्तिकता के पक्ष में – 2
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आप
जैसे ही बताएँगे कि आप नास्तिक हैं , लोग छूटते ही कहेंगे – अच्छा आप कम्यूनिष्ट
हैं । हालाँकि कम्यूनिष्ट सामान्यत: नास्तिक होते हैं , लेकिन नास्तिकता और कम्यूनिष्ट होना - दोनों अलग बाते हैं । हर नास्तिक कम्यूनिष्ट हो – जरुरी नहीं ।
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जो
नास्तिकता को मार्क्स का प्रभाव मानते हैं और आधुनिकता की देन मानते हैं , उन्हें याद दिलाना चाहूँगा कि भारतीय दर्शनों
में चार्वाक , बौद्ध , जैन , सांख्य आदि भी ईश्वर को नहीं मानते । इनकी भारतीयता और प्राचीनता में कोई संदेह नहीं
है ।
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ईश्वर
और धर्म संबंद्ध होने के बावजूद अलग हैं । ईस्वर एक अवधारणा हैं और धर्म संगठन ।
बौद्ध धर्म है लेकिन ईश्वर को नहीं मानता । बहूत से लोग – जो खूद को मानवतावादी और
आध्यात्मिक मानते हैं , किसी धर्म से लगाव
महसूस नहीं करते , लेकिन ईश्वरीय सत्ता को मानते हैं ।
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मैं
नास्तिक होने के साथ अधार्मिक ( non-
religious ) भी हूँ ।
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दिक्कत
है कि नास्तिक होने के बावजूद आपको ताउम्र उस धार्मिक पहचान से छूटकारा नहीं मिलता
जिसके साथ आप पैदा हुए हैं । आपका परिवार और परिजन आपको उसी धर्म का अंग बनाए रखता
है ।
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किसी
भी नास्तिक को सबसे ज्यादा संघर्ष उसी धर्म से करना पड़ता है जिसमें उसका जन्म हुआ
है ।
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