शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2016

नास्तिकता के पक्ष में – 2

नास्तिकता के पक्ष में 2
-         आप जैसे ही बताएँगे कि आप नास्तिक हैं , लोग छूटते ही कहेंगे – अच्छा आप कम्यूनिष्ट हैं । हालाँकि कम्यूनिष्ट सामान्यत: नास्तिक होते  हैं , लेकिन नास्तिकता और कम्यूनिष्ट होना  - दोनों अलग बाते हैं  । हर नास्तिक कम्यूनिष्ट हो – जरुरी नहीं ।
-         जो नास्तिकता को मार्क्स का प्रभाव मानते हैं और आधुनिकता की देन मानते हैं  , उन्हें याद दिलाना चाहूँगा कि भारतीय दर्शनों में चार्वाक , बौद्ध , जैन , सांख्य आदि भी ईश्वर को नहीं मानते ।  इनकी भारतीयता और प्राचीनता में कोई संदेह नहीं है  
-         ईश्वर और धर्म संबंद्ध होने के बावजूद अलग हैं । ईस्वर एक अवधारणा हैं और धर्म संगठन । बौद्ध धर्म है लेकिन ईश्वर को नहीं मानता । बहूत से लोग – जो खूद को मानवतावादी और आध्यात्मिक मानते हैं ,  किसी धर्म से लगाव महसूस नहीं करते , लेकिन ईश्वरीय सत्ता को मानते हैं ।
-         मैं नास्तिक होने के साथ अधार्मिक ( non- religious ) भी हूँ ।
-         दिक्कत है कि नास्तिक होने के बावजूद आपको ताउम्र उस धार्मिक पहचान से छूटकारा नहीं मिलता जिसके साथ आप पैदा हुए हैं । आपका परिवार और परिजन आपको उसी धर्म का अंग बनाए रखता है ।
-         किसी भी नास्तिक को सबसे ज्यादा संघर्ष उसी धर्म से करना पड़ता है जिसमें उसका जन्म हुआ है ।
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