नास्तिकता के पक्ष में – 3
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अक्सर
कहा जाता है नास्तिक असामाजिक तत्व हैं और वे खामखा दूसरों की धार्मिक भावना आहत
करते हैं । वे खुद को अलग दिखाने के लिए नास्तिक होने का ढोंग करते हैं ।
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स्पष्ट
करना चाहूँगा कि धर्म विरोधी होने के बावजूद मैं आपके धर्म के पालन करने , उसका
प्रचार करने , धार्मिक संगठन बनाने , धार्मिक आयोजन करने आदि अधिकारों का समर्थन
करता हूँ । ऐसा करना धर्म का समर्थन नहीं बल्कि धार्मिकों के नागरिक अधिकारों का
समर्थन है ।
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नास्तिकता
एक विचार है , धर्म नहीं । इसका प्रचार करना , इसके समर्थन में आयोजन करना आदि
आपकी आस्था को ठेस पहचाने के लिए नहीं किया जाता , बल्कि नास्तिक होने के लिए
अनिवार्यत: धर्म और ईश्वर से टकराना पड़ता है ।
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धार्मिक
आयोजन में शामिल होना न होना किसी नास्तिक का व्याकितगत चुनाव है । वह सामाजिकता
निभाने के लिए जाता है तो ठीक है , लेकिन वह नहीं जाने का चुनाव करता है तो वह
असामाजिक नहीं हो जाता । उसके निर्णय का सम्मान होना चाहिए ।
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धार्मिक
आस्था का सम्मान करने का मतलब यह है कि आपके धर्म पालन में मैं बाधा नहीं बनूँगा,
यह मतलब नहीं है कि आपके धर्म का मैं भी पालन करुँगा । यह मतलब नहीं है कि मैं
अपने विचार आपकी आस्था के आहत होने के डर से बंद कर दूँगा । मेरे नास्तिक और
अधार्मिक होने से आप आहत होते हैं तो यह आपकी समस्या है , मेरी नहीं ।
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आप
अपनी धार्मिकता मुझपर मत थोपिए , जैसे मैं आप पर अपनी नास्तिकता नहीं थोपता हूँ ।
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