शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2016

नास्तिकता के पक्ष में

नास्तिकता के पक्ष में
- एक धर्मप्रधान देश में नास्तिक होना खतरे से खाली नहीं । सबसे ज्यादा विरोध घर और निकट परिजनों से ही झेलना पड़ता है । वे आपको बारबार अहसास कराएँगे कि आप असामान्य हैं और घर में होने वाली समस्याएँ उनके कारण है जो ई्श्वर का दंड है ।
- नास्तिक समाज में या तो अलग थलग पड़ जाते हैं या सामाजिकता के नाम पर समझौता कर लेते हैं । उन्हें अपने समाज में - खासतौर से गाँवों, कस्बों और शहरों में नास्तिकों से मुलाकात ही नहीं होती ।
-ऐसे में फेसबुक पर समान विचार के ढेर सारे नास्तिकों से परिचय आश्वस्त करता है कि नास्तिक होना असामान्य होना नहीं है ।
- मैं मानता हूँ कि नास्तिकों का सम्मेलन इसे धर्म के रुप में स्थापित करने के लिए नहीं है , बल्कि उनके बीच बेहतर संवाद के लिए , सामाजिकता के विकास के लिए , आपसी परिचय बढ़ाने , सपोर्ट सिस्टम विकसित करने के लिए जरुरी है ।
- ऐसे सम्मेलन मुहल्ला स्तर से लेकर देशव्यापी स्तर पर होना चाहिए और हालिया विरोध से हतोत्साहित होने की जरुरत नहीं है । प्रशासन और कट्टरपंथियों द्वारा विरोध तो होना ही था । और आगे भी होगा ।
- नास्तिकों को खुलकर सामने आना चाहिए और सामाजिकता और संबंधों के नाम पर धर्मों और उनसे जुड़े कर्मकांडों /आयोजनों में शामिल नहीं होना चाहिए । उत्सव के लिए विकल्प बनाना चाहिए - पुस्तक मेला, सृजन गोष्ठी , समाजसेवा से संबंधित कार्य , खेलकूद आदि .
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