रविवार, 22 जनवरी 2017

संघ के आरक्षण विरोधी बयान पर प्रतिक्रिया



पिछले दिनों संघ के एक पदाधिकारी ने आरक्षण के खिलाफ बयान दिया । विरोध के बाद संघ ने खंडन कर दिया । लेकिन संघ को हल्के में नहीं लिया जा सकता है , बावजूद खंडन के । संघ का अपना एजेंडा है और वे उस पर लगातार काम करते है । उनके उद्देश्यों और विचारों से आपत्ति हो सकती है लेकिन उनके संगठन और क्षमता को कम करके आंकना भूल होगी । यह ध्यान रखना चाहिए कि देश का प्रधानमंत्री उनका स्वयंसेवक है और संसंद से ज्यादा अपनी जवाबदेही संघ के प्रति मानता है ।
संघ जिस हिंदू राष्ट्र की बात कहता है , उसकी नींव में वर्णाश्रम व्यवस्था है जो परंपरागत जाति व्यवस्था को बनाए रखना चाहती है । आरक्षण पर हमला अकारण नहीं है यह वह टूल है जिसके द्वारा शासन और समाज में बहुजनों की भागिदारी बढ़ी है ।संघ और सवर्ण तबकों द्वारा इसकी आलोचना अधिकाँश मामलों में जातिगत अहंकार और घृणा से संचालित हैं , न कि किसी वस्तुनिष्ठ विवेचना के कारण ।
इससे पहले भी संघ ने आरक्षण के खिलाफ बयान दिया है । वे कोई नई बात नहीं कह रहे हैं ।वे बस सवर्ण तबके की आकांक्षा व्यक्त कर रहे हैं और उनके हित के लिए प्रयासरत हैं । उनके बयान वापस लाने को उनकी हार और हमारी जीत मानना भूल होगी ।
हकीकत है कि आरक्षण को कई जगहों पर लागू नहीं किया गया है और तमाम तरह की धाँधलियाँ करके इसे निष्प्रभावी बनाने का प्रयास सत्ता संस्थानों में जड़ जमाए सवर्ण करते रहे हैं ।
बहुजनों के लिए आरक्षण नॉट नेगोशिएबल है ।

संघ के आरक्षण विरोधी बयान पर प्रतिक्रिया



शुक्रवार, 20 जनवरी 2017

डिजीटल लेनदेन निजी अनुभव



इन दिनों मोबाइल में  भीम , यूपीआई , मोबाइल बैंकिंग एप्प सभी रख लिया है । प्रयोग के तौर पर अलग अलग दुकानों में जा रहा हूँ । खरिदारी कर रहा हूँ । भूगतान के लिए डिजीटल पेमेंट की जिद करता हूँ । अलग अलग अनुभव हो रहा है ।
- पहली बात लोग अभी भी नकद भूगतान ही चाहते हैं । लगभग ढाई महीने के बाद भी अधिकाँस के पास स्वाइप मशीन नहीं है और न ही सभी जगह पेटीएम की सुविधा है । रहने पर भी सुविधा के लिए नकद का आग्रह करते हैं ।
- कई दूकान कर्मचारियों के भरोसे चलते हैं । उसे बैंक के खाते का भी पता नहीं रहता है । न ही अलर्ट में उसका नंबंर रहता है । इसलिए खाते में भूगतान संभव नहीं होता है ।
- जो लोग मुझे पहचानते हैं - जिनसे नियमित लेनदेन हैं - वे खाते में भूगतान ले लेते हैं । मैनें ऑफिस के बगल में फल की दूकान से एक संतरे के लिए दस रुपए का भूगतान उसके खाते में किया । लेकिन सब्जी/फल बाजार में कोई भी खाते में भूगतान के लिए तैयार नहीं हुआ । नकद ही माँगा गया । वरना सामान न खरीदूँ - सीधा जवाब था ।
- सैलून वाला सभी से नकद भूगतान ले रहा है । पोटीएम का भी विकल्प नहीं रखा । मेरे जिद पर उसने खाते में भूगतान लेना स्वीकार किया । उसके फोन में यूपीआई इनस्टॉल कर चालू मुझे ही करना पड़ा । लेकिन भूगतान खाते में ले लिया ।
- एक दो दवाईयों की दूकान छोड़कर सब पर दवाईयों के लिए भी नकद भूगतान करना पड़ता है ।अस्पतालों में भी नकद भूगतान करना पड़ा है ।
- फेसबुक पर सब्जी वाले /गोलगप्पे वाले - यहाँ कार्ड/पेटीएम स्वीकार करते हैं - बोर्ड के साथ नजर आते हैं , लेकिन डिब्रुगढ़ में अभी तक एक भी ऐसा सब्जीवाला /गोलगप्पे वाला/रेहड़ी वाला नहीं मिला है ।
- छूट्टे/छोटे नोट की समस्या बनी हुई है । लेकिन इस कदर नहीं कि खाना और आना जाना ही दूभर हो जाए ।

गुरुवार, 19 जनवरी 2017

पोस्ट बैंकरों के लिए - दवाब में न आएँ !



पोस्ट बैंकरों के लिए !
नोटबंदी के सिलसिले में रिजर्व बैंक के गवर्नर ऊर्जित पटेल को संसदीय समिति का सामने पेश होना पड़ा है और उनके सवालों का जवाब देना पड़ रहा है । रघुमान राजन - जो अपनी बात दो टूक कहने के लिए जाने जाते थे और सरकार के दवाब मे नहीं आते थे -के उलट पटेल एक "यस मैन " के रुप में जाने माने जा रहे थे । और रिजर्व बैंक की स्वायत्ता और साख को दाँव पर लगाने के लिए उनकी आलोचना होती रही है ।
हमारे जैसे आम बैंकरों के लिए इस प्रकरण में एक सबक है । यह स्थिति शाखा स्तर पर बैंककर्मियों के पास भी आती है । जब एक तरह बिजनेस बढ़ाने के दवाब होते हैं , उच्चाधिकारियों का दवाब होता है , सरकार -जिलाधिकारी कार्यालय , रसूखदार , धनी , राजनीति्क संबंध वाले ग्राहकों का दवाब होता है । ऐसे में कई बार प्रतिरोध करना संभव नहीं होता है । कई बार व्यवहार में हमें ही यह ध्यान नहीं रहता है कि ग्रहक को सेवा देने और बिजनेस बढ़ाने के चक्कर में कब हमने नियमों की सीमारेखा लाँघ दी ।
ध्यान देने वाली बात है कि ऐसी स्थिति में कोई भी हमारे बचाव में नहीं आने वाला है । आखिरकार हम ही जिम्मेदार ठहराए जाएंगे । हमसे ही जवाबतलब होगा ।उस समय वे दवाब भी नहीं होंगे जो निर्णय लेते समय थे । तो जाँचकर्ताओं और खुद आपको भी वे निर्णय गलत लगेंगे और आप बचाव की स्थिति में नहीं होंगे ।
इसलिए निर्णय लेते समय तत्कालिक दवाबों के बजाए नियमों और संस्थान के व्यापक हित में निर्णय लेना चाहिए । निस्संदेह कहना आसान है और करना मुश्किल - लेकिन इसे लाइटहाउस की तरह इस्तेमाल करना चाहिए ।
#बैंक_बैंकर

शनिवार, 14 जनवरी 2017

संस्थान और सदस्य



कोई भी संस्थान - चाहे वह परिवार हो , कंपनी हो , सेना हो - सवाल करने वालों को पसंद नहीं करता । कोई भी सत्ताधारी - चाहे वह पिता हो , बॉस हो , नेता हो - सावल को अपनी सत्ता को चुनौती के रुप मे देखता है । जनसामान्य के लिए भी वह एक ट्रबलमेकर होता है ।
उसके सवालों का जवाब देने के बजाए , उसके शंकाओं पर विमर्श करने के बजाए उनसे ही सवल होने लगते हैं । तुम्हें क्या प्रॉब्लम है । हकीकत है कि समस्या सभी को होती है । लेकिन वे बिगाड़ के डर से आवाज नहीं उठाते हैं । वे समस्या के समाधान के बजाए खुद के लिए जुगाड़ बैठाने में भिड़ जाते हैं । या इसे ही नियती मान कर एडजस्ट करते हैं ।
सिस्टम के पास तमाम साधन होते हैं कि किसी भी आवाज के कुचल देने के लिए । इसका अहसास उन्हें भी होता है जो आवाज उठाते हैं । डर उन्हें भी लगता है । लेकिन वे नुकसान झेल कर भी सच कहने का साहस करते हैं ।
ऐसे लोग संस्थान को नुकसान पहुँचाने वाले, बदनाम करने वाले माने जाते हैं । लेकिन हकीकत है कि नुकसान तो वे सत्ताधारी पहुँचाते हैं जो सत्ता का उपयोग व्यापक हित के बजाए अपने निजी लाभ लोभ के लिए करते हैं ।समस्याओं से मुँह चुराते हैं ।
कोई भी संस्थान अपने सदस्यों को कमजोर कर , डरा कर मजबूत बनी नहीं रह सकती है । संस्थान में अनुशासन जरुरी है , लेकिन अनुशासन के नाम पर दमन को प्रश्रय नहीं दिया जा सकता है ।
एक सैनिक के वीडियो अपलोड करने पर प्रतिक्रिया ।
यह बैंक के बारे में भी सच है ।

मंगलवार, 3 जनवरी 2017

इरादे 2017



इरादे 2017
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नए साल के संकल्प टिकते नहीं हैं । इसलिए बनाने की इच्छा भी नही रही अब । पुरे कर नहीं पाता हूँ । लेकिन इरादे तो रख ही सकता हूँ । न सही पुरा, कुछ तो करुँगा ही ।
इसलिए कुछ इरादे हैं इस साल और आने वाले हर साल के लिए ।
1 ) लड़ना है ।
लोग कहते हैं कि मैं लड़ाकू हूँ । लड़ता हूँ , यह सच है । लेकिन कभी - यदा कदा छोड़कर - झगड़ा करने के लिए कभी झगड़ा नहीं किया । हमेशा कुछ न कुछ मुद्दा रहा , जहाँ "यस सर " की अपेक्षा होती है , वहाँ प्रतिरोध किया , गलत को गलत कहा , निजी फायदा नुकसान को तौलने के बजाए सही और गलत तौल कर कहा और लिखा , इमेज की परवाह नहीं की , न ही संबंधों की । यह सब मेरे ज्ञान , अनुभव और सामर्थ्य की सीमा के बावजूद किया । और यह रवैया इस साल और आगे भी रहेगा । लड़ाई जारी रहेगी और कलम ही मेरा हथियार रहेगा ।
2 ) लिखना है !
कभी लेखक बनने की ख्वाहिश थी । अब बस लिखने की इच्छा होती है , लेखक बनने की नहीं । मैं वही लिखुँगा जो मैं लिख सकता हूँ । न सही लेख , फेसबुक टिप्पणियाँ ही सही । न छपूँ पत्र पत्रिकाओं में - मेरा ब्लॉग ही सही । न सही कहानी या उपन्यास - वनलाइनर ही सही । क्या फर्क पड़ता है जो मिरे लिखने से फर्क न पड़े ? क्या फर्क पड़ता है जो मेरा लिखा कोई न पढ़े ?
बस, लिखना है !
3 ) पढ़ना है !
सबकुछ पढ़ना है । सेक्स से लेकर दर्शन तक , राजनीति से लेकर फिल्म तक , खेल से लेकर कला तक , धर्म , मनोविज्ञान , खानपान , अपराध सब । अध्ययन और पढ़ने के आनंद के लिए पढ़ना जारी रहेगा । देश और दुनिया के बेहतरीन लेखकों को पढ़ना है । जिन मुद्दों पर लिखता हूँ , उन मुद्दों पर संदर्भ ग्रंथ माने जाने वाली कुछ किताबों को पढ़ना है । अखबार में संपादकीय और विचार /मंतव्य अवश्य ही पढ़ना है ।
हर रोज सोने से पहले पढ़ना है - भले ही दस सिर्फ दस पन्ने !
4) घूमना है !
ज्यादा लंबे टूर पर न जा सकूँ तो आजू बाजू के शहर ही सही ,घूमुँगा जरुर ! महीने में एक बार तो घूमने के लिए निकलना ही है । कोशिश करुँगा कि साल में चार नई जगहों पर जा सकूँ । संभव हुआ तो विदेश का बैकपैक टूर करुंगा ।
साथ में अच्छो फोटो और अपने अनुभव भी दर्ज करुँगा ।
ये इरादे हैं । कोशिशे भी होंगीं । सब नहीं तो कुछ पुरी भी होंगी ।
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