सोमवार, 21 अगस्त 2017

बैंक- बैंकर : युनियन 1

- अच्छा तो कल हड़ताल है !
- किसलिए हड़ताल है ?
- होना जाना कुछ नहीं , बस कल फिर एक दिन वेतन कट जाना है ।
- कल फिल्म देखने चलते हैं ।बैंक तो जाना नहीं है ।प्रदर्शन में जा कर क्या करेंगे । 
- मैनेजमेंट और सरकार बहुत स्ट्राँग है । कुछ भी नहीं युनियन के बस का ।
-युनियन तो हड़ताल बस इसलिए करती है कि बता सके युनियन अभी भी है ।
- मै तो नहीं जा रहा हड़ताल पर !
ये और ऐसी ही कई प्रतिक्रिया हो जो कल बैंकों में हड़ताल के बारे में आम बैंकरों की राय है ।
इनसे इतना तो स्पष्ट हो जाता है कि आम बैंकर हड़ताल में जाने का इच्छूक ही नहीं है । जाता है तो भी अनिच्छा से । उसे न युनियन पर भरोसा है और न ही उसके कार्यक्रमों पर । उसे युनियन की जरुरत बस ट्रांसफर , चार्जशीट जैसे मौकों पर लगती है । एक तरह से वह युनियन को मैनेजमेंट और उसके बीच ब्रोकर के रुप में देखता है जो संकुचित दृष्टिकोण है ।
किसी भी संगठन की ताकत उसके सदस्यों का सामुहिक रुप से सबके हित के उद्देश्य की प्राप्ति के लिए संघर्ष करने की इच्छा होती है । अफसोस कि बैंकरों में इस सामुहिकता का हाल फिलहाल घोर अभाव है । वे थके हुए भेड़चाल में शामिल होकर युनियन गतिविधि में शामिल होते हैं । अधिकांश तो औपचारिक रुप से भी कार्यक्रमों में शामिल नहीं होते हैं ।
ऐसे में युनियन का कमजोर होना अचरज की बात नहीं है ।
अगले पोस्ट में जारी रहेगा ‍!
#बैंक_बैंकर युनियन - 1

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