बुधवार, 16 अगस्त 2017

धर्मनिरपेक्ष राज्य की आवश्यकता

दो खबरों पर गौर कीजिए !
- पहला गोरखपुर में मेडिकल में प्रशासन और प्रबंधन की असफलता की वजह से कई बच्चे मौत के ग्रास बन गये ।भले ही लीपा पोती और बलि का बकरा ढूँढ लिया गया हो , भले ही भाजपा सरकार में इस्तीफे न होते हों , तंत्र की विफलता नंगी सामने खड़ी है । 
-दूसरे ठीक इसी वक्त प्रशासनिक तंत्र को 'जन्माष्टमि ' भव्य स्तर पर मनाने के लिए निर्देशित किया गया । हालाँकि यह त्योहार लोग अपने मोहल्ले स्तर पर ही सामुदायिक सहयोग से मना लेते हैं । धूमधाम भी रहती है । लेकिन इसमें प्रशासन का  "लॉ एंड ऑर्डर " बनाए रखने के अलावा किसी और हस्तक्षेप की जरुरत नहीं है ।
यहाँ जनसामान्य को यह समझना चाहिए कि धर्म और उत्सव वे अपने संसाधन और सहयोग से मना सकते हैं । लेकिन सबके लिए स्वास्थ्य , शिक्षा, देशव्यापी परिवहन आदि के लिए जिस स्तर के संसाधन की जरुरत पड़ती है , वह सरकार ही कर सकती है । व्यक्तिगत स्तर पर यह संभव नहीं और पूँजीपति वर्ग की प्राथमिकता मुनाफा होगी , सबके लिए स्वास्थ्य , शिक्षा नहीं ।
अभी भारत की बहुसंख्यक जनता खासतौर पर बहुजन हिंदू राष्ट्र के लिए लहालोट हो रही है , और शिक्षा , स्वास्थ्य , सार्वजनिक परिवहन आदि मुद्दे हाशिए पर चले गए हैं , यह स्थीति जनता के लिए ही घातक है । सरकार के लिए यह आसान है कि वह जन्माष्टमि का लड्डू खिला दे और शिक्षा आदि पर अंडा थमा दे । जनता के लिए आवश्यक और लाभदायक है धर्मनिरपेक्ष राज्य , न कि धार्मिक राज्य -चाहे वह कोई भी धर्म हो ! धर्म के पालन के लिए सरकार पर निर्भरता जरुरी नहीं है ।

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