शुक्रवार, 18 मार्च 2016

कौन सी माता !? कैसी माता !??

कौन सी माता !? कैसी माता !??
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देश की कल्पना एक माँ के रूप मे करना और उसकी पूजा करना एक भावात्मक विचार है !इसमें कुछ भी गलत नहीं है !साम्य यह है कि जैसे माँ जन्म देती है लालन पालन करती है उसी तरह हम इस देश में पैदा हुये , पले बढ़े और जी रहे हैं !देश के लिए भावात्मक लगाव विकसीत करने के लिए , बच्चों को समझाने के लिए , युद्ध आदि के समय भावात्मक ज्वार पैदा करने के लिए उचित है !
लेकिन जरूरी नहीं कि सभी इससे सहमत हों और देश और उससे सम्बन्धों को इसी तरीके से समझे और माने !सच्चाई यह है कि भारत एक देश है और हम इसके नागरिक !तर्क और विवेक की दृष्टि से यही सही है !देश हमारी माँ और हम उसके बच्चे -यह हर किसी के गले के नहीं उतर सकता और न ही इस बारे में जबर्दस्ती की जा सकती है , न ही की जानी चाहिए !
भारत में प्रचलित हिन्दू धर्म और संस्कृति में देश के अलावा नदी ( गंगा ) , पौधा (तुलसी ) , धरती , गाय आदि को भी माँ कहा जाता है !लेकिन दूसरे धर्म के लोगों की बात तो जाने दीजिये नास्तिक और वे हिन्दू भी जो कर्मकांडों और परम्पराओं ले प्रति बहुत आग्रही नहीं है , इन मान्यतओं को अधिक महत्व नहीं देते हैं !उनके लिए गाय एक उपयोगी पशु है भैंस और कुत्ते आदि की ही तरह !तुलसी एक औषधीय गुणो वाला पौधा है !गंगा एक नदी है !
जो इन्हे माँ मानते हैं , उनकी भावनाओं का सम्मान किया जाना चाहिए !लेकिन सम्मान करने का यह मतलब नहीं कि उन्हे यही धारणा सभी पर मढ़ने और जबरदस्ती मनवाने की छुट दी जाये !
यही बात " भारत माता" के लिए भी सही है !अगर कोई देश को माँ मानता है ,उसकी मूर्ति बनाकर पूजा करता है , जयकारा लगाता है तो यह उसका अधिकार है ! लेकिन इसे सभी पर थोपने , इसके अनिवार्य बनाने , एतराज/इंकार करने वालों पर प्रतिबंध/निष्कासन आदि की कोशिश का विरोध होना ही चाहिए ! जबर्दस्ती " भारत माता की जय " कहने के लिए कहेंगे तो हम भी पुछेंगे -कौन सी माता !? कैसी माता !? भारत हमारा देश है और हम इसके नागरिक !हम बस यही संबंध जानते और मानते हैं !


















कौन सी माता !? कैसी माता !??
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देश की कल्पना एक माँ के रूप मे करना और उसकी पूजा करना एक भावात्मक विचार है !इसमें कुछ भी गलत नहीं है !साम्य यह है कि जैसे माँ जन्म देती है लालन पालन करती है उसी तरह हम इस देश में पैदा हुये , पले बढ़े और जी रहे हैं !देश के लिए भावात्मक लगाव विकसीत करने के लिए , बच्चों को समझाने के लिए , युद्ध आदि के समय भावात्मक ज्वार पैदा करने के लिए उचित है !
लेकिन जरूरी नहीं कि सभी इससे सहमत हों और देश और उससे सम्बन्धों को इसी तरीके से समझे और माने !सच्चाई यह है कि भारत एक देश है और हम इसके नागरिक !तर्क और विवेक की दृष्टि से यही सही है !देश हमारी माँ और हम उसके बच्चे -यह हर किसी के गले के नहीं उतर सकता और न ही इस बारे में जबर्दस्ती की जा सकती है , न ही की जानी चाहिए !
भारत में प्रचलित हिन्दू धर्म और संस्कृति में देश के अलावा नदी ( गंगा ) , पौधा (तुलसी ) , धरती , गाय आदि को भी माँ कहा जाता है !लेकिन दूसरे धर्म के लोगों की बात तो जाने दीजिये नास्तिक और वे हिन्दू भी जो कर्मकांडों और परम्पराओं ले प्रति बहुत आग्रही नहीं है , इन मान्यतओं को अधिक महत्व नहीं देते हैं !उनके लिए गाय एक उपयोगी पशु है भैंस और कुत्ते आदि की ही तरह !तुलसी एक औषधीय गुणो वाला पौधा है !गंगा एक नदी है !
जो इन्हे माँ मानते हैं , उनकी भावनाओं का सम्मान किया जाना चाहिए !लेकिन सम्मान करने का यह मतलब नहीं कि उन्हे यही धारणा सभी पर मढ़ने और जबरदस्ती मनवाने की छुट दी जाये !
यही बात " भारत माता" के लिए भी सही है !अगर कोई देश को माँ मानता है ,उसकी मूर्ति बनाकर पूजा करता है , जयकारा लगाता है तो यह उसका अधिकार है ! लेकिन इसे सभी पर थोपने , इसके अनिवार्य बनाने , एतराज/इंकार करने वालों पर प्रतिबंध/निष्कासन आदि की कोशिश का विरोध होना ही चाहिए ! जबर्दस्ती " भारत माता की जय " कहने के लिए कहेंगे तो हम भी पुछेंगे -कौन सी माता !? कैसी माता !? भारत हमारा देश है और हम इसके नागरिक !हम बस यही संबंध जानते और मानते हैं !


















कौन सी माता !? कैसी माता !??
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देश की कल्पना एक माँ के रूप मे करना और उसकी पूजा करना एक भावात्मक विचार है !इसमें कुछ भी गलत नहीं है !साम्य यह है कि जैसे माँ जन्म देती है लालन पालन करती है उसी तरह हम इस देश में पैदा हुये , पले बढ़े और जी रहे हैं !देश के लिए भावात्मक लगाव विकसीत करने के लिए , बच्चों को समझाने के लिए , युद्ध आदि के समय भावात्मक ज्वार पैदा करने के लिए उचित है !
लेकिन जरूरी नहीं कि सभी इससे सहमत हों और देश और उससे सम्बन्धों को इसी तरीके से समझे और माने !सच्चाई यह है कि भारत एक देश है और हम इसके नागरिक !तर्क और विवेक की दृष्टि से यही सही है !देश हमारी माँ और हम उसके बच्चे -यह हर किसी के गले के नहीं उतर सकता और न ही इस बारे में जबर्दस्ती की जा सकती है , न ही की जानी चाहिए !
भारत में प्रचलित हिन्दू धर्म और संस्कृति में देश के अलावा नदी ( गंगा ) , पौधा (तुलसी ) , धरती , गाय आदि को भी माँ कहा जाता है !लेकिन दूसरे धर्म के लोगों की बात तो जाने दीजिये नास्तिक और वे हिन्दू भी जो कर्मकांडों और परम्पराओं ले प्रति बहुत आग्रही नहीं है , इन मान्यतओं को अधिक महत्व नहीं देते हैं !उनके लिए गाय एक उपयोगी पशु है भैंस और कुत्ते आदि की ही तरह !तुलसी एक औषधीय गुणो वाला पौधा है !गंगा एक नदी है !
जो इन्हे माँ मानते हैं , उनकी भावनाओं का सम्मान किया जाना चाहिए !लेकिन सम्मान करने का यह मतलब नहीं कि उन्हे यही धारणा सभी पर मढ़ने और जबरदस्ती मनवाने की छुट दी जाये !
यही बात " भारत माता" के लिए भी सही है !अगर कोई देश को माँ मानता है ,उसकी मूर्ति बनाकर पूजा करता है , जयकारा लगाता है तो यह उसका अधिकार है ! लेकिन इसे सभी पर थोपने , इसके अनिवार्य बनाने , एतराज/इंकार करने वालों पर प्रतिबंध/निष्कासन आदि की कोशिश का विरोध होना ही चाहिए ! जबर्दस्ती " भारत माता की जय " कहने के लिए कहेंगे तो हम भी पुछेंगे -कौन सी माता !? कैसी माता !? भारत हमारा देश है और हम इसके नागरिक !हम बस यही संबंध जानते और मानते हैं !


















कौन सी माता !? कैसी माता !??
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देश की कल्पना एक माँ के रूप मे करना और उसकी पूजा करना एक भावात्मक विचार है !इसमें कुछ भी गलत नहीं है !साम्य यह है कि जैसे माँ जन्म देती है लालन पालन करती है उसी तरह हम इस देश में पैदा हुये , पले बढ़े और जी रहे हैं !देश के लिए भावात्मक लगाव विकसीत करने के लिए , बच्चों को समझाने के लिए , युद्ध आदि के समय भावात्मक ज्वार पैदा करने के लिए उचित है !
लेकिन जरूरी नहीं कि सभी इससे सहमत हों और देश और उससे सम्बन्धों को इसी तरीके से समझे और माने !सच्चाई यह है कि भारत एक देश है और हम इसके नागरिक !तर्क और विवेक की दृष्टि से यही सही है !देश हमारी माँ और हम उसके बच्चे -यह हर किसी के गले के नहीं उतर सकता और न ही इस बारे में जबर्दस्ती की जा सकती है , न ही की जानी चाहिए !
भारत में प्रचलित हिन्दू धर्म और संस्कृति में देश के अलावा नदी ( गंगा ) , पौधा (तुलसी ) , धरती , गाय आदि को भी माँ कहा जाता है !लेकिन दूसरे धर्म के लोगों की बात तो जाने दीजिये नास्तिक और वे हिन्दू भी जो कर्मकांडों और परम्पराओं ले प्रति बहुत आग्रही नहीं है , इन मान्यतओं को अधिक महत्व नहीं देते हैं !उनके लिए गाय एक उपयोगी पशु है भैंस और कुत्ते आदि की ही तरह !तुलसी एक औषधीय गुणो वाला पौधा है !गंगा एक नदी है !
जो इन्हे माँ मानते हैं , उनकी भावनाओं का सम्मान किया जाना चाहिए !लेकिन सम्मान करने का यह मतलब नहीं कि उन्हे यही धारणा सभी पर मढ़ने और जबरदस्ती मनवाने की छुट दी जाये !
यही बात " भारत माता" के लिए भी सही है !अगर कोई देश को माँ मानता है ,उसकी मूर्ति बनाकर पूजा करता है , जयकारा लगाता है तो यह उसका अधिकार है ! लेकिन इसे सभी पर थोपने , इसके अनिवार्य बनाने , एतराज/इंकार करने वालों पर प्रतिबंध/निष्कासन आदि की कोशिश का विरोध होना ही चाहिए ! जबर्दस्ती " भारत माता की जय " कहने के लिए कहेंगे तो हम भी पुछेंगे -कौन सी माता !? कैसी माता !? भारत हमारा देश है और हम इसके नागरिक !हम बस यही संबंध जानते और मानते हैं !


















कौन सी माता !? कैसी माता !??
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देश की कल्पना एक माँ के रूप मे करना और उसकी पूजा करना एक भावात्मक विचार है !इसमें कुछ भी गलत नहीं है !साम्य यह है कि जैसे माँ जन्म देती है लालन पालन करती है उसी तरह हम इस देश में पैदा हुये , पले बढ़े और जी रहे हैं !देश के लिए भावात्मक लगाव विकसीत करने के लिए , बच्चों को समझाने के लिए , युद्ध आदि के समय भावात्मक ज्वार पैदा करने के लिए उचित है !
लेकिन जरूरी नहीं कि सभी इससे सहमत हों और देश और उससे सम्बन्धों को इसी तरीके से समझे और माने !सच्चाई यह है कि भारत एक देश है और हम इसके नागरिक !तर्क और विवेक की दृष्टि से यही सही है !देश हमारी माँ और हम उसके बच्चे -यह हर किसी के गले के नहीं उतर सकता और न ही इस बारे में जबर्दस्ती की जा सकती है , न ही की जानी चाहिए !
भारत में प्रचलित हिन्दू धर्म और संस्कृति में देश के अलावा नदी ( गंगा ) , पौधा (तुलसी ) , धरती , गाय आदि को भी माँ कहा जाता है !लेकिन दूसरे धर्म के लोगों की बात तो जाने दीजिये नास्तिक और वे हिन्दू भी जो कर्मकांडों और परम्पराओं ले प्रति बहुत आग्रही नहीं है , इन मान्यतओं को अधिक महत्व नहीं देते हैं !उनके लिए गाय एक उपयोगी पशु है भैंस और कुत्ते आदि की ही तरह !तुलसी एक औषधीय गुणो वाला पौधा है !गंगा एक नदी है !
जो इन्हे माँ मानते हैं , उनकी भावनाओं का सम्मान किया जाना चाहिए !लेकिन सम्मान करने का यह मतलब नहीं कि उन्हे यही धारणा सभी पर मढ़ने और जबरदस्ती मनवाने की छुट दी जाये !
यही बात " भारत माता" के लिए भी सही है !अगर कोई देश को माँ मानता है ,उसकी मूर्ति बनाकर पूजा करता है , जयकारा लगाता है तो यह उसका अधिकार है ! लेकिन इसे सभी पर थोपने , इसके अनिवार्य बनाने , एतराज/इंकार करने वालों पर प्रतिबंध/निष्कासन आदि की कोशिश का विरोध होना ही चाहिए ! जबर्दस्ती " भारत माता की जय " कहने के लिए कहेंगे तो हम भी पुछेंगे -कौन सी माता !? कैसी माता !? भारत हमारा देश है और हम इसके नागरिक !हम बस यही संबंध जानते और मानते हैं !


















कौन सी माता !? कैसी माता !??
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देश की कल्पना एक माँ के रूप मे करना और उसकी पूजा करना एक भावात्मक विचार है !इसमें कुछ भी गलत नहीं है !साम्य यह है कि जैसे माँ जन्म देती है लालन पालन करती है उसी तरह हम इस देश में पैदा हुये , पले बढ़े और जी रहे हैं !देश के लिए भावात्मक लगाव विकसीत करने के लिए , बच्चों को समझाने के लिए , युद्ध आदि के समय भावात्मक ज्वार पैदा करने के लिए उचित है !
लेकिन जरूरी नहीं कि सभी इससे सहमत हों और देश और उससे सम्बन्धों को इसी तरीके से समझे और माने !सच्चाई यह है कि भारत एक देश है और हम इसके नागरिक !तर्क और विवेक की दृष्टि से यही सही है !देश हमारी माँ और हम उसके बच्चे -यह हर किसी के गले के नहीं उतर सकता और न ही इस बारे में जबर्दस्ती की जा सकती है , न ही की जानी चाहिए !
भारत में प्रचलित हिन्दू धर्म और संस्कृति में देश के अलावा नदी ( गंगा ) , पौधा (तुलसी ) , धरती , गाय आदि को भी माँ कहा जाता है !लेकिन दूसरे धर्म के लोगों की बात तो जाने दीजिये नास्तिक और वे हिन्दू भी जो कर्मकांडों और परम्पराओं ले प्रति बहुत आग्रही नहीं है , इन मान्यतओं को अधिक महत्व नहीं देते हैं !उनके लिए गाय एक उपयोगी पशु है भैंस और कुत्ते आदि की ही तरह !तुलसी एक औषधीय गुणो वाला पौधा है !गंगा एक नदी है !
जो इन्हे माँ मानते हैं , उनकी भावनाओं का सम्मान किया जाना चाहिए !लेकिन सम्मान करने का यह मतलब नहीं कि उन्हे यही धारणा सभी पर मढ़ने और जबरदस्ती मनवाने की छुट दी जाये !
यही बात " भारत माता" के लिए भी सही है !अगर कोई देश को माँ मानता है ,उसकी मूर्ति बनाकर पूजा करता है , जयकारा लगाता है तो यह उसका अधिकार है ! लेकिन इसे सभी पर थोपने , इसके अनिवार्य बनाने , एतराज/इंकार करने वालों पर प्रतिबंध/निष्कासन आदि की कोशिश का विरोध होना ही चाहिए ! जबर्दस्ती " भारत माता की जय " कहने के लिए कहेंगे तो हम भी पुछेंगे -कौन सी माता !? कैसी माता !? भारत हमारा देश है और हम इसके नागरिक !हम बस यही संबंध जानते और मानते हैं !


















कौन सी माता !? कैसी माता !??
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देश की कल्पना एक माँ के रूप मे करना और उसकी पूजा करना एक भावात्मक विचार है !इसमें कुछ भी गलत नहीं है !साम्य यह है कि जैसे माँ जन्म देती है लालन पालन करती है उसी तरह हम इस देश में पैदा हुये , पले बढ़े और जी रहे हैं !देश के लिए भावात्मक लगाव विकसीत करने के लिए , बच्चों को समझाने के लिए , युद्ध आदि के समय भावात्मक ज्वार पैदा करने के लिए उचित है !
लेकिन जरूरी नहीं कि सभी इससे सहमत हों और देश और उससे सम्बन्धों को इसी तरीके से समझे और माने !सच्चाई यह है कि भारत एक देश है और हम इसके नागरिक !तर्क और विवेक की दृष्टि से यही सही है !देश हमारी माँ और हम उसके बच्चे -यह हर किसी के गले के नहीं उतर सकता और न ही इस बारे में जबर्दस्ती की जा सकती है , न ही की जानी चाहिए !
भारत में प्रचलित हिन्दू धर्म और संस्कृति में देश के अलावा नदी ( गंगा ) , पौधा (तुलसी ) , धरती , गाय आदि को भी माँ कहा जाता है !लेकिन दूसरे धर्म के लोगों की बात तो जाने दीजिये नास्तिक और वे हिन्दू भी जो कर्मकांडों और परम्पराओं ले प्रति बहुत आग्रही नहीं है , इन मान्यतओं को अधिक महत्व नहीं देते हैं !उनके लिए गाय एक उपयोगी पशु है भैंस और कुत्ते आदि की ही तरह !तुलसी एक औषधीय गुणो वाला पौधा है !गंगा एक नदी है !
जो इन्हे माँ मानते हैं , उनकी भावनाओं का सम्मान किया जाना चाहिए !लेकिन सम्मान करने का यह मतलब नहीं कि उन्हे यही धारणा सभी पर मढ़ने और जबरदस्ती मनवाने की छुट दी जाये !
यही बात " भारत माता" के लिए भी सही है !अगर कोई देश को माँ मानता है ,उसकी मूर्ति बनाकर पूजा करता है , जयकारा लगाता है तो यह उसका अधिकार है ! लेकिन इसे सभी पर थोपने , इसके अनिवार्य बनाने , एतराज/इंकार करने वालों पर प्रतिबंध/निष्कासन आदि की कोशिश का विरोध होना ही चाहिए ! जबर्दस्ती " भारत माता की जय " कहने के लिए कहेंगे तो हम भी पुछेंगे -कौन सी माता !? कैसी माता !? भारत हमारा देश है और हम इसके नागरिक !हम बस यही संबंध जानते और मानते हैं !


















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